Vikas Sharma

Inspirational

4.8  

Vikas Sharma

Inspirational

प्रेरक कहानियों की पोल

प्रेरक कहानियों की पोल

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सब कुछ खोना, बस होंसला मत खोना , ऐसे जुमलो से काशवी अब तंग आ चुकी थी, हर कोई आता कोई ना कोई सूक्ति सुना जाता – जो होता है, अच्छे के लिए होता है, जो हो चुका, सो हो चुका –आगे हम क्या कर सकते हैं –इस पर ध्यान दो .

हर बार ऐसा ही तो करती हूँ, कोशिश करती हूँ, अच्छा होने की उम्मीद रखती हूँ, मन में सकारत्मक विचार लाती हूँ, अच्छे के बारे में ही सोचती हूँ –वो सुना है ना लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन, बस इसीलिए, पर हर बार की तरह इस बार भी हाथ क्या लगा, नहीं मिल पायी मुझे ये नौकरी, इन प्रेरक कहानियों की वजह से तो रो भी नहीं सकती, कुछ और अच्छा होगा मेरे भाग्य में, आई एम् द बेस्ट ,आखिर कब तक इन झूठी कहानियों में जीती रहूंगी, नहीं हूँ में बेस्ट, हाँ फैल हुईं हूँ मैं, ये ही है सच्चाई –और अब मैं इस सच्चाई से भागना नहीं चाहती – (काशवी ये कहते कहते फूट-फूट कर रोने लगती है )

रोते – रोते उसके पापा की छवि उसके मानस में जीवन्त हो उठती है, पापा आप ही तो कहते हो की हारना भी अच्छा है, हारना हमें हमारे जिन्दा होने का सबूत देता है, जिन्दा लोग ही तो हारते हैं है, क्या राम हार सकते है ?, क्या कृष्ण हार सकते हैं ? नहीं, क्यूंकि वो अब जीवित नहीं हैं, मैं हार गई पापा, मैं हार गई, पर मुझे अच्छा क्यूँ नहीं लग रहा ? ऐसे जिन्दा होने का क्या मतलब है ? नहीं रहना चाहती मैं जिन्दा इस तरह हारकर ( फिर रोने लगती है )

हारकर –मुस्कराने की वजह मिलती है, तुम खुद पर मुस्करा सकती हो, सोचो तो इस बार कहाँ चूक हुई ? जब सब तैयारी थी, कहीं कोई कमी नजर नहीं आती ? हार ने तुम्हारे देखने के चश्मे को भी हरा डाला है, हार को जैसे ही हम स्वीकार कर लेते हैं –हम जीतना शुरू कर देते हैं . हारना हमें हमको हमारे और नजदीक ले आता है, अब हम अपनी छिपी परतों को भी उकेरने लगते हैं, हम हारते हैं –मतलब हम हारना हम में छिपा था कहीं ,...(पापा अपनी बात रखने लगते है )

मतलब हार मेरे अन्दर थी, उसी वजह से मैं हारी, मैंने इतनी तैयारी की थी, अपना बेस्ट दिया था, उसका क्या ? (झल्लाते हुए काशवी बोली )

तुमने ईमानदारी से कोशिश की थी ना, तुम जीती भी, अपनी पहली परफॉरमेंस से, तुम इस पर ध्यान दो की तुमने जिन एरिया में काम किया, मेहनत की उनमें तुम पहले से बेहतर हो, तुम ये नौकरी नहीं पा पाई क्यूंकि तुम अपने इंटरव्यूअर को अपनी बात अच्छे से नहीं समझा पाई, मतलब उसके दिमाग में कुछ और ही था अच्छे कैंडिडेट को लेकर, तुमने ऐड के मुताबिक तो अच्छी तैयारी की पर उस वन्दे के पैरामीटर इस एड से मैच नहीं खाते, सिंपल है, इसे ज्यादा कोम्प्लक्स मत करो, तुमने जो स्किल बढ़ाएं हैं, उन पर काम करती रहो, इतना करो की जॉब देने वाले खुद खोजते हुए तुम्हे संपर्क करें ,.(पापा की फिलोसोफी जारी रही )

काशवी - बस भी करो अब – (हँसते हुए ), आप तो हारने को भी अच्छा साबित कर देते हो,

पर सच में रोने से, गुस्सा करने से मैं कुछ कम सोच पा रही थी, अब लगता है की उम्मीद, सपने ही सबसे जरूरी हैं, ये हार को भी हरा देते हैं, अभी नौकरी ना मिलने से मुझे बुरा लगा पर अब देख पा रही हूँ, ऑप्शन, कहाँ कम है ? ये नहीं तो मैं और कई इंटरव्यू के लिए तैयार हूँ, मुझे अपनी स्किल पर भरोसा है, जो मैं दिन –प्रतिदिन बढ़ाती ही जा रही हूँ, सिंपल तो है, इस आर्गेनाईजेशन को ये स्किल्ल्सेट नहीं चाहिए, तो ना सही, मैं वहां जाउंगी जहाँ इनकी जरूरत है, या वो मुझे खुद सर्च कर लेंगे, मैंने वैसे भी कई जगह अपना रिज्यूमे अपलोड किया हुआ है, तो अब मैं शुरू करती हूँ, नेक्स्ट टाइम अप्लाई करना –और इस बार पक्का, मैं इसे कर ही लुंगी।

काशवी जब शांत होती है तब फिर सोचती है की कैसे मैं इस सबसे ऊबर पाई, इतनी जल्दी, खुद ही पर इल्जाम लगायें, खुद ही सफाई दे दी और खुद ही फ़ैसला भी सुना दिया, पापा के डायलाग भी खुद ही बोल डाले, यार पापा की बातें हमेशा काम आ ही जाती है, प्रेरक कहानी बस कहानी नहीं होती, ये हमें कमजोर करती हैं –जब हम बस इन्हें पढ़ते रहते हैं, पर इस दुनिया का सबसे मुश्किल काम किसी भी ऐसी बात को जिसे हम अच्छा मानते हैं –क्यूंकि ये अच्छा सबके लिए एक जैसा हो, ये जरूरी तो नहीं, उसको अम्ल में लाना, चलो मान भी लिया और थोड़ी देर के लिए अम्ल में ले भी आये तो भी कुछ हासिल नहीं होता, निरंतरता –जिंदगी का दूसरा नाम, हमें उस बदलाव को जिंदगी देनी पड़ती है, उसे कायम रखना पड़ता है, कायम भी नहीं, उसे और उससे आगे ले जाते हुए, बदलाव में जीना होता है, कुछ –कुछ उधेड़ते हुए और कुछ –कुछ फिर से बुनते हुए, पूरा होने की शर्त तो है ही नहीं, मजे तो अधूरेपन में हैं ,...(हँसने लगती है )

मैं भी अब प्रेरक कहानी कह सकती हूँ, पर अभी दादी माँ नहीं हुईं हूँ, तो क्या प्रेरक कहानी कहने के लिए मुझे दादी माँ होने तक इंतजार करना होगा –फ़ोन की घंटी उसके खुद से संवाद को ठहराव देती है।

विकास को आज नींद नहीं आ रही थसही काम करने का कभी गलत वक्त नहीं होता, मैं कर सकता हूँ, यस, मैं कर सकता हूँ, मैं सोच सकता हूँ, मैं कर सकता हूँ – जैसे ही विकास सोना शुरू करता, ये वाक्य जो कभी पढ़े थे उसने, अब उसको गढ़ने लगे हैं, उससे कह रहे हैं उठ, कर कुछ नया, जो तुझे अच्छा लगता है, जिससे तुझे सकूं मिलता है, कुछ और पायेगा या नहीं ये तो नहीं मालूम पर ऐसा करते हुए जो पल तू जी लेता है, ऐसा करने से जो अहसास तुझसे होकर गुजरता है, ये वो है जिसे तू शब्दों में नहीं बता पायेगा कभी, ये आनंद होने के क्षण होते हैं, तू जब भी ऐसा करता है, जीता है इनको, फिर बाद में इसके होने से और भी कुछ मिल जाए या फायदा हो जाए तो हो जाए उससे इस पल का क्या वास्ता? तुझे फायदा मिल भी सकता है नहीं भी, ये तो तेरे इर्द – गिर्द बाजार पर है, पर जो तू जी चुका उसे कोई अनडू नहीं कर सकता, वो अहसास क्या काफी नहीं तुझे तेरे दिल की सुनने के लिए, तुझे तुझ तक पहुँचने के लिए, ये करना तुझे ना जाने कितने से ख़ास बना देता है, तू जी रहा है क्यूंकि तू लड़ रहा है नहीं तो बाकी तो जिन्दा होते हुए भी जिन्दा नहीं है, ना सपने हैं, ना बैचेनी है, ना धड्कनो में कोई गूँज बची है –तू इस फिजूल्यित से तो बचा हुआ है।

तू क्या आसान समझता है, इस आपाधापी की जिंदगी में लिखने के लिए, सोचने के लिए वक्त निकाल पाना, जब चाहे कविता लिख देना, जब चाहे कहानी, कभी हिंदी में तो कभी इंग्लिश में, १०० से ज्यादा तो स्टोरीमिरर पर भी लिख चुका है, तूने पैसा नही कमाया, सच है पर लाखो पाठकों ने पढ़ा है तेरी रचनाओं को, तेरे लिखने या लिखने का मकसद है – अभिव्यक्ति, उससे तुझे कोई रोक पाया है क्या ?, पैसा तो बाजार पर है, बिक जायेगा तो वो मिल जायेगा, तो फिर लिख बिकने के लिए, वो लिख जो बाजार चाहता है –तेरी चाहत तब बौनी हो जायगी, तो पैसे तो कमा लेगा पर सकूं मिलेगा या नही ये पता नहीं, नाम तो कमाएगा पर खुद को भायेगा ये पता नहीं।

तभी काशवी की आवाज उसके कानो में गूजं जाती है – पापा आप अच्छा लिखते हो क्यूंकि आप अच्छे हो, आप सपनो को जीते हो, तो अच्छा है ना, जैसे –जैसे आप बढ़ रहे हो आपके सपने बढ़ रहे है, आप तेज भागते हो, वो भी और तेज भागते हैं, रेस है पापा रेस, और ये रेस आपके जीने तक होगी, अब आप ही बताओ क्या आप दौड़ना नहीं चाहते, मेरे लिए पापा ,काशवी को बीच में रोकते हुए,

हम साथ दौड़ेंगे, दौड़ने से मजेदार कुछ भी नहीं, जमीन पर दौड़ना सेहत अच्छी करता है, और मजग में दौड़ना सीरत- कल सुबह दौड़ शुरू करने के लिए अब सो जाते हैं।

विकास अपनी आय बढ़ाना चाहता था, ऐसा नहीं की उसे अपना काम अच्छा नहीं लग रहा पर काशवी अभी डेढ़ वर्ष की है और उसकी ये जॉब घर से मतलब काशवी के दादा –दादी के घर से भी बहुत दूर है, इसलिए उसने अपने काम से मिलते –जुलते आर्गेनाईजेशन में अप्लाई किया था, पैकज अच्छा था, विकास को लगता था की ये जॉब उसे मिल ही जायगी, उसके वर्तमान रोल व् स्किल्ल्सेट से मैच खा रहा था सब कुछ, शोर्ट लिस्ट भी हुआ, प्री टास्क भी सही हुआ, फर्स्ट राउंड में उसकी मनमर्जी रिजल्ट नहीं आया, अब क्या करे बेचारा, रोने का समय भी नहीं मिला, मन में मसोस हुई जरा, फिर प्रेरक कहानियों ने मसोस को मसल डाला.

सब कुछ खोना, बस होंसला मत खोना, जो होता है, अच्छे के लिए होता है, जो हो चुका, सो हो चुका –आगे हम क्या कर सकते हैं –इस पर ध्यान दो

ये काशवी नहीं उसी की कहानी थी, काशवी तो कहानी सुनाने का सहारा बनी, प्रेरक कहानी ही आपसे बाते करने लगती है, आपको फिर से चलने को कहती है,जैसे इस कहानी में केवल दो पात्र थे –विकास और प्रेरक कहानी पर अगर इतना वक्त इन कहानियों के साथ बिता पाए तो ही ऐसा हो पाता है।


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