परायी
परायी
मम्मीजी और राकेश को चुपचाप बात करते देख मेरा दिमाग गर्म हो रहा था। आखिर ऐसी कौनसी बात है जो वे मुझसे छुपा रहे है। वे लगातार धीरे धीरे बात करते और मैं जैसे ही उनके पास पहुॅंचती तो वे बात बदल देते। उन्हें लगता है, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, पर मैं सब समझती हूं। वे कुछ ऐसी बात कर रहे है जो मुझे पता नही चलनी चाहिये।
मुझे बुरा लग रहा था... मैं भी तो इस घर की मेम्बर हूँ, मुझे क्यो पराया समझा जा रहा है?
मैं दक्षा इस घर की लाड़ली इकलौती बहू, तीन तीन ननदे है मेरी। मै सबसे छोटी हूँ तो सभी मुझे बहुत प्यार करती है। मेरे सास ससुर भी बहुत अच्छे है, वे भी मुझे बहूत प्यार करते है । पर पता नहीं ये चार दिन से क्या हो गया है? मुझे पूरा घर अजनबी सा लगने लगा।
मैंने राकेश से एकांत में पूछा भी पर वह गोल मोल बाते घूमाने लगा। मैं समझ गयी की ये मुझे बताना नही चाहते, इसलिये मैंने भी पूछना उचित नही समझा।
बाद में पता चला की बड़ी दीदी का बेटा अन्तरजातीय विवाह करने की जिद कर रहा था और घरवाले उसे समझाने कि कोशिश कर रहे थे। परन्तु, वो नही माना तो अब शादी हो रही है।
इस घटना क्रम से मुझे पता चला कि घर मे मेरा क्या स्थान है। और मैं आज भी पराई हूॅं।