प्राकृतिक संसाधन
प्राकृतिक संसाधन


आज की स्थिति एक जटिल विसंगति की है। एक ओर संसाधन घटते जा रहे हैं तो दूसरी ओर लोभ,संचय, परिग्रह और लिप्सा की भावना दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यथोचित उपभोग की भावना समाप्त होती जा रही है। हम भविष्य की कोई तैयारी नहीं कर रहे हैं। हम सोचते हैं कि हम सभी समस्याओं का समाधान कर लेंगे। हम बात कर रहे हैं नदियों का अस्तित्व बचाने की।
नदियां सिर्फ आशा नहीं है अर्थव्यवस्था भी हैं। प्रकृति द्वारा नदियों की शक्ल में प्रदत इन जीवन धाराओं का महत्व हम याद नहीं रख पाए और इन्हें स्वार्थ, बेपरवाही और दूरदर्शिता का शिकार बनाया। सर्वाधिक नुकसान नदियों को औद्योगिक इकाइयों की संकीर्ण सोच और नगर निकायों की गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली ने पहुंचाया। नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर खरबों रुपए पानी में बह गए। कागजी कवायद हुई किंतु ,नदियों की हालत बद से बदतर ही हुई। निराशाजनक है कि लोग अभी भी नदियों में शव, सीवर, नालों का पानी और पूजन सामग्री प्रवाहित करने की धृष्टता से बाज नहीं आ रहे।
जीवन एवं मोक्षदायी नदियों का जल जहर बन चुका है। इसे जल्द ही फिर अमृत न बनाया गया तो यह जहर किसी को नहीं बख्शेगा।
सुखद समाचार है कि नदियों के उद्धार के लिए पारदर्शी प्रयास शुरू हुए हैं। पृथक मंत्रालय स्थापित हुए हैं और गंगा उद्धार को अभियान भी बना दिया गया है किंतु,सिर्फ सरकार के प्रयास से नदियों को प्रदूषण मुक्त करके अविरल, निर्मल बनाना संभव नहीं है। इसके लिए हर आम -ओ - खास को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।