पंगत के मजे
पंगत के मजे
पंगत में जमीन में बैठकर दोना पतरी में खाने का यदि आपने आनंद नहीं लिया, तो खाने के असली सुख से वंचित रह गए।
एक बार परिवार मे संझले भाई की शादी में बारात में गए। गांव की बारात थी। डग्गा में डगमगाते कूदते फांदते दो घंटा में बारात लगी। बारात गांव के गेवड़े में बने खपरैल स्कूल में रोकी जानी थी पर लड़की वालों का सरपंच से झगड़ा हो गया तो लड़की वालों ने आमा के झाड़ के नीचे जनवासा बना दिया।
आम के झाड़ के नीचे पट्टे वाली दरी बिछा दी। सब बाराती थके हारे दरी में लेट गए। आम के झाड़ से बंदर किचर किचर करन लगे और एक दो बाराती के ऊपर मूत भी दिये। एक बंदर दूल्हे की टोपी लेकर झाड़ में चढ़ गया। रात को आगमानू भई तब बंदर झाड़ छोड़ कर भगे।
दूसरे दिन दोपहर में पंगत बैठी। पंगत में बड़ा मजा आया, औरतों की गारी चालू हो गई थी... जैसे कुत्ता की पूंछ वैसे समधी की मूंछ... कुत्ता पोस लो रे मोरे नये समधी... कुत्ता पोस लेओ...
बड़े बुजुर्गों को सब परोसा गया, फिर कुछ लोगों की मांग पर अग्निदेव परोसे गए। नाई ने जब देखा कि भोग लगने पर खाना चालू हो जाएगा, भोग लगने के पहले भरी पंगत में नाई खड़ा हो गया, बोला - साब, इस पंगत में गाज गिर सकती है।
बड़े बुजुर्ग बोले गंगू यदि गाज गिरी तो सब के साथ तुम्हारे ऊपर भी तो गिर सकती है।
गंगू नाई ने सबके सामने तर्क दिया, साब, मैं तब भी बच जाऊँगा! क्यूॅंकी जैसे सबके पत्तल में मही-बरा परसा गया है पर मुझे छोड़ दिया गया है, यदि गाज बरा में गिरी तो मैं बच जाऊँगा...!
तुरंत गंगू नाई को दो दोना में मही-बरा परसा गया तब कहीं, पंगत में भोग लग पाया।
फिर लगातार चुहलबाजी चलती रही परोसने वाले थक गए। औरतें डर गई कहीं खाना न खतम हो जाय, इसलिए औरतों ने गारी गाना बंद कर दिया और पंगत में बंदरों ने हमला कर दिया। सब अपने अपने लोटा लेकर भागे। लड़की वालों की इज्जत बच गई।