Nisha Singh

Drama

4.3  

Nisha Singh

Drama

पंछी

पंछी

4 mins
237


चेप्टर -9 भाग-1

‘आज पिया कहाँ रह गई?’ अंशिका ने घड़ी देखते हुए कहा। 5 बजने में अभी 15 मिनट बाकी थे पर हमलोग तो 20 मिनट पहले आ जाते हैं आज पिया नहीं आई थी। शायद कुछ काम होगा इसलिए लेट हो गई होगी।

‘आ रही होगी, कभी-कभी लेट हो ही जाते हैं।’ मैने अंशिका को दिलासा देते हुए कहा पर पता था मुझे मेरे दिलासे का कोई असर नहीं होने वाला था उसके दिल में तो सैलाब आया हुआ था ना… पिया को पूरी कहानी जो सुनानी थी कि रोहित ने मुझे प्रपोज किया और मैंने कह दी। जब तक पूरी कहानी सुना नहीं देगी, चैन नहीं आएगा। लोग कहते हैं कि लड़कियों के पेट में बात नहीं पचती, पहले सुनती थी तो बुरा लग जाता था आज तो आंखों से देख रही हूँ। कितनी बेचैन है पिया को बताने के लिए, कितनी बेसब्र है… ना जाने कब पिया आये और ये शुरू करें अपनी अमृतवाणी। वो सोच रही है कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा… पर मुझे नासमझ समझने वालो… तुम्हें जनता माफ़ नहीं करेगी। टीवी पर सुना था कैसी सिचुएशन पर याद आया… तुम्हें जनता माफ़ नहीं करेगी। ख्यालों के समंदर में डूबते उभरते अचानक मेरी नज़र पिया पर पड़ गई।

‘ले… आ गई पिया…’ जैसे ही मैंने बताया, अंशिका खुशी के मारे 2 फीट ऊपर उछल गई।

‘ए पिया… जल्दी आ… मरे-मरे कदम मत रख जल्दी आ, एक तो देर से आई है और ऊपर से कैटवाक कर रही है…’ इतनी बेताबी थी कि एक ही सांस में सब कुछ बोल दिया।

‘क्या है… ऐसे क्यों रिएक्ट कर रही है… आज भइया आए थे इंदौर से उनसे बात कर रही थी तो देर हो गई क्यों चीख रही थी तू?’

‘चल इधर आ… मुझे और पिया को अपने अड्डे पे खींच कर ले गई।

‘तुझे पता है… रोहित ने इसे प्रपोज़ किया…’ ऐसे खुश होकर बता रही थी जैसे इंडिया के लिए कोहिनूर वापस लाई हो और सबको बता रही हो कि कोहिनूर वापस आ गया।

‘रोहित… कौन रोहित…?’

पिया दूसरे कॉलेज में पढ़ती है तो वो रोहित को क्या जाने भला… 


‘अरे… वही इसका दीवाना जो इसे क्लास में निहारता रहता है और कॉलेज के गेट पर आते वक़्त…. रोज मिलता है तुझे बताया तो था…

ये तो भाई हद हो गई, तारुफ़ तो पहले ही हो चुका है मुझे तो पता ही नहीं था। आज समझ आया कि हर एक फ्रेंड कमीना होता है का क्या मतलब होता है… कमीनी कहीं की डूब मर जा कर… दिमाग खराब कर दिया मेरा, जी कर रहा था कि गला दबा दूँ साली का… ओह ये मैं क्या कर रही हूँ… गाली और मैं यूज कर रही हूँ… गलत बात… हम लखनवी लोग तो तहजीब के लिए जाने जाते हैं।

‘अच्छा तो ये बात है… ठीक किया इसने पहले दोस्ती ही होनी चाहिए, कम से कम सामने वाले को समझने का मौका मिल जाता है…’ पिया ने मेरी बात को समझा बहुत अच्छा लगा मुझे। अंशिका की कहानी खत्म हो चुकी थी और हमारे ट्यूशन क्लास का टाइम भी हो गया था। अंदर जाकर हम फिर से वही पिछली सीट पर बैठ गए और वही फिजिक्स की बोरिंग बातें शुरू हो गई।

‘कल घर पर मिलते हैं… तब कुछ बात करेंगे मुझे भी तुम लोगों को कुछ बताना है…’ पिया ने हम दोनों से धीरे से कहा।

‘प्लीज़, शांत रहिए…’ अरविंद सर की आवाज़ अब क्लासरूम में गूंज रही थी।

‘तो क्या खास बात करनी थी तुझे…’ छत पर कॉफ़ी के 3 मग के साथ बैठे हुए हम तीनों शाम का मज़ा ले रहे थे। आज मौसम काफ़ी अच्छा था हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। और ऐसी बारिश के मौसम में अगर गरमागरम कॉफ़ी और दोस्तों का साथ हो तो समां ही बन जाता है । अंशिका ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा ‘काफी सीटरयस मैटर लग रहा था जब तूने कल कहा था।’

‘पिछली बार हमने क्या बात की थी कुछ याद नहीं तुम लोगों को…’

पिया की आवाज़ से थोड़ी सी नाराज़गी साफ ज़ाहिर हो रही थी।

‘कौन सी बात यार…’ सर खुजलाते हुए अंशिका ने कहा।

‘कौन सी बात से क्या मतलब है… कुछ भी याद नहीं तुम लोगों को कि क्या बात की थी पिछले हफ्ते…’ पिया के सब्र का बांध टूट चुका था। ठीक भी था, हद होती है लापरवाही की भी…


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