पंछी
पंछी
चेप्टर -3 भाग-1
‘कहाँ थी? कितनी देर से इंतज़ार कर रहे हैं तेरा…’ अंशिका लगभग मुझ पर चिल्ला रही थी। वजह बड़ी खास थी मैं फिजिक्स की कोचिंग पर लगभग 10 मिनट लेट आई थी। सोचने वाली बात ये है कि सिर्फ 10 मिनट लेट होने से कोई क्यों बिगड़ेगा, तो जी आपको साफ-साफ बता दूं कि हमारी कोचिंग पर हम तीनो मतलब अंशिका, पिया और मैं 20 मिनट पहले ही पहुंच जाते हैं और फिर गहन चर्चाएं शुरु होती हैं जो कि 20 मिनट तक चलती रहती है। आज मैं 10 मिनट लेट थी, शायद कोई गहन चर्चा होनी होगी जो मेरी वजह से रद्द करनी पड़ी।
‘क्या हुआ? हर छोटी-छोटी बात पर क्यों बिगड़ती रहती है?’ कहते हुए मैं पिया और अंशिका के बीच में आकर खड़ी हो गई।
सर अभी हमसे पहले वाला बेच पढ़ा रहे थे तो जितने भी स्टूडेंट आए थे सब बाहर खड़े होते जा रहे थे मतलब हम तीनों ही आए थे। गली संकरी है सर के घर की तो हम लोग सामने वाली आंटी के घर की सीढ़ियों पर बैठ जाते हैं और वहीं हमारी चर्चाएं चलती रहती हैं।
‘कितनी खास बात करनी थी तुझसे और तू है कि जब जरूरी काम होता है तभी लेट होती है।’ कहते हुए पिया ने अपने बैग से टिफिन निकाला। बात तो मेरी समझ में नहीं आई कि ऐसा क्या है जो खास मुझसे ही डिस्कस करना है पर टिफिन देखकर मेरे विचार बदल गए। बात जो भी हो फिलहाल खाने पर कंसंट्रेट करते हैं।
पिया, मेरी गली की पिछली वाली गली में रहती है। वैसे तो हम दोनों अलग-अलग कॉलेज में पढ़ते हैं पर एक ही कोर्स और एक जैसी वीकनेस के चलते फिजिक्स की कोचिंग एक ही जगह करते हैं। यहीं मेरी और अंशिका की मुलाकात पिया से हुई। हम मिले और अच्छे दोस्त बन गए और आज ये आलम ये है कि जब तक साथ बैठकर बातों का सिलसिला ना जमा ले ऐसा लगता है जैसे दिन ही पूरा नहीं हुआ है। हम तीनों में पिया ही एक ऐसी लड़की है जो कुछ करने की, लाइफ में कुछ कर दिखाने की तमन्ना रखती है। मैं भी ऐसी ही हूँ पर पिया जैसा जज़्बा नहीं है मेरे अंदर। अंशिका के तो कहने ही क्या हैं वो सोचती नहीं है बस दूसरों को सोचने के लिए मजबूर करती है।
पिया की मां, हमारी आंटी, खाना बहुत अच्छा बनाती हैं। अलग-अलग तरह की डिशेज़ बनाना और हम लोगों को टेस्ट कराना उनका मन पसंद काम है और हमारा भी। मुझे लगता है उन्हें शेफ़ बनना चाहिए था पर ऐसा जरूरी नहीं है कि हम जो काम अच्छा करते हों उसे ही करियर बना ले अगर ऐसा होता तो आंटी आज सचमुच शेफ होती पर ऐसा नहीं है होता वही है जो हम नहीं चाहते...। आज भी पिया कुछ लेकर आई थी, खाने के लिए मेरा इंतज़ार हो रहा था। आज पिया इडली केक लेकर आई थी।
‘वाह!.. इडली…।’ अंशिका ने खुश हो कर कहा।
‘नो स्टुपिड ,ये इडली केक है।’ पिया ने मुस्कुराते हुए कहा।
ये दोनों जब तक केक देखती रही तब तक मैंने एक पीस उठा कर खा लिया।
‘पेटू कहीं की…’ अंशिका ने घूरते हुए मुझसे कहा।
‘खाने दे ना यार तेरे लिए भी तो है।’ पिया ने अंशिका को समझाया पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा ।
‘नहीं… तू अब एक भी पीस नहीं लेगी।’ अंशिका ने फरमान जारी कर दिया। तब तक मैं अपना पीस खा चुकी थी जो सबसे बड़ा था। बाकी के तीन पीस थोड़े छोटे थे। पर क्या फर्क पड़ता है। मेरा काम तो हो गया न। तभी मेरी नज़र गली के लास्ट वाले घर की बालकनी में खड़ी आंटी पर पड़ी।
‘देख पिया, वो आंटी हमें घूर रही है।’ मैंने पिया को थपकी देते हुए कहा। अंशिका और पिया ने आंटी की तरफ देखा और पिया बोली ’देखने दे ना यार... इनका तो रोज़ का है ।’
तभी अंशिका ने आंटी को चिढ़ाने के लिए अपनी इडली का आधा टुकड़ा उनकी तरफ किया। ये देखकर आंटी ने अपनी नजरें इधर-उधर घुमाई और अंदर चली गई।
‘यार... आंटी को कुछ काम नहीं है क्या?’ मैंने अंशिका की तरफ देखते हुए कहा।
‘यही इनका काम है यार…’
अंशिका के जवाब ने मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया इतने में ही मुझे शोर शराबे की आवाज सुनाई दी। बैंच छूट चुका था, और अब हमारी बारी थी सज़ा भुगतने की। फिजिक्स पढ़ना किसी उम्र कैद से कम थोड़े ही होता है।