पंछी
पंछी
चैप्टर आठ- भाग- 2
क्लास का टाइम कब निकल गया पता ही नहीं चला। जब तक क्लास चल रही थी ठीक था, फिर से वही सब बातें दिमाग में घूमने लगी। आज तो मैंने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा रोहित आया भी है या नहीं ।
'तूने शायद डरा दिया रोहित को…' अंशिका ने कहा। क्लास खत्म होने के बाद हम दोनों बाहर निकल आए थे। रोहित क्लास में नहीं था,मुझसे ज्यादा अंशिका को खुशी थी उसने मुझे प्रपोज़ किया। झल्ली है एक नंबर की…
हम कैंटीन में आ कर बैठे। आज समीर नहीं आया था शायद अपसेट होगा।
'हाय गर्ल्स...'
वही आवाज़ जिसे मैं नहीं सुनना चाहती थी। वजह कुछ नहीं… बस एक डर था, ऐसा डर जिसे मैं समझ नहीं पा रही थी। दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था कि बाहर ही निकल आएगा। इतने में रोहित हम दोनों के सामने वाली चेयर पर आ कर बैठ गया।
मैंने रोजहत की तरफ़ देखा तो वह सवालिया नज़रों से मेरी तरफ़ देखे जा रहा था। शायद मेरी हाँ के इंतज़ार में पर मुझे हाँ कहने का मौका नहीं दिया अंशिका ने।
'हाँ... ऑफकोर्स, तुम दोनों बातें करो मैं कॉफी लेकर आती हूँ… यू कैरी ऑन'
वह तो कह कर चली गई। मेरे दिमाग का दही कर दिया, क्या ज़रूरत थी जाने की… मैं बात नहीं करना चाहती थी।
'अवनी…'
'हम्म्…'
'तो क्या जवाब है तुम्हारा ?'
मैंने बिना कुछ कहे उसकी तरफ देखा… वो अब भी मुझे सवालिया नज़रों से देखे जा रहा था।
'रोहित… हम एक ही क्लास में ज़रूर पढ़ते हैं पर एक दूसरे को जानते ही कितना है…'
'तो जान जाएंगे ना… इसमें क्या बड़ी बात है…'
'तुम समझते क्यों नहीं हो रोहित, हमारी बात भी तो 2 दिन पहले ही शुरू हुई है और तुम… हम तो अभी तक दोस्त भी नहीं बने ठीक से…'
शायद… मेरी बातें रोहित को ठीक नहीं लग रही थी। क्योंकि आगे उसने जो बात कही थी उसके लहज़े से से ही ये ज़ाहिर हो गया था कि वो चिढ़ रहा है…
'क्या यार अवनी… मेरा मतलब, चलो ठीक है, दोस्त तो बनोगी… अब प्लीज़ मना मत करना…'
मना करने का तो खैर कोई सवाल ही नहीं था क्योंकि मैं खुद रोहित को पसंद करती थी।
'ठीक है रोहित…'
'ओक्क्के…' रोजहत ने ज़ोर से चिल्ला कर कहा कैंटीन में सब हम दोनों को देखे जा रहे थे।
'क्या हुआ…' अंशिका कॉफी लेकर आ चुकी थी। तुम लोग लड़ क्यों रहे हो ?'
'लड़ कौन रहा है ?, ये तो खुशी की चीख है।'
रोहित ने मुस्कुराते हुए अंशिका को जवाब दिया।
'अबे खुशी की चीख ? ये क्या होता है ?'
'जैसे खुशी के आंसू होते हैं वैसे खुशी की चीख भी होती है।'
'मतलब ये मान गई ? अंशिका ने खुश होते हुए कहा।
'हाँ… लगभग…'
'मतलब ? ये लगभग क्या है ? या तो मानी या नहीं मानी…'
'मतलब, मैडम पहले दोस्ती से शुरुआत करना चाहती है…' कहते हुए रोहित ने मेरे हाथो पे अपने हाथ रख दिए। पर मुझे न जाने क्या हुआ मैंने झटके से अपने हाथ खींच लिए, समझ नहीं पाई कि क्या हो गया मुझे। प्यार तो मैं भी रोहित से करती हूँ तो एक दूसरे का हाथ थामने में क्या बुराई थी पर शायद ये मेरे अन्दर की झिझक होगी जिस वजह से मैने ऐसा किया।
'अरे… क्या हुआ ?' रोहित को थोड़ा बुरा लगा।
'नहीं, कुछ नहीं, बस ऐसे ही…' अपनी झिझक चिपाने की कोशिश कर रही थी।
'हम्म… ठीक है यार…'
'चल अंशिका चलते है…' मैंने अंशिका की तरफ़ देखते हुए कहा तो मेरी बात सुन कर रोहित के चेहरे पर एक उदासी सी छा गई।
'ओ.के. रोहित… फिर मिलते है' कहते हुए मैं उठ कर जाने लगी।
'हाँ जी… अब तो मिलना जुलना लगा ही रहना है…' रोहित ने शरारती अंदाज़ में जवाब क्रदया। मैं मुस्करा कर आगे बढ़ गयी। अब कुछ हल्कापन महसूस हो रहा था पर एक बात थोड़ी सी अजीब लग रही थी मुझे मैंने सोचा नहीं था की क्लास में शांत रहने वाला रोहित नेचर में इतना नॉटी होगा। पर इस बात को मैंने यहीं छोड़ दिया। आज फिजिक्स की क्लास थी,अरविंद सर के यहाँ जाना था। जल्दी में मैं और अंशिका निकल आये इस बार कोई बाहर के गेट पर नहीं था मेरा इंतज़ार करने के लिए। सही है, हम जोचाहते है… हमे मिल जाये तो उसकी कीमत उतनी नहीं रह जाती…