पंछी
पंछी




चेप्टर -7 भाग-2
'तो ?'
'उनको हिंदू दामाद नहीं चाहिए, किसी मुसलमान लड़के से ही आफ़रीन की शादी होगी।'
'अबे ये क्या है ?'
'यही तो…'
अब तो मेरा भी सर चकरा चुका था।
'यार मैं अब मरना चाहता हं, मैं उसके बिना नहीं जी सकता।'
'तू बेकार की बातें मत कर… रुक जा थोड़ा, कुछ सोचने दे…'
'तू क्या कर लेगी, छिपकली जैसी तो है …'
'तू ज्यादा दिमाग खराब मत कर…'
मुझे गुस्सा आ गया.. छिपकली क्यों कहा मुझे… जलील इंसान।
मेरी डांट सुनकर… समीर ने बिल्कुल ऐसा मुंह बनाया जैसा रोने वाली इस्माइली का होता है उस पर भी नीचे वाला होंठ और बाहर निकाल लिया। कहाँ इतना सीरियस मैटर दिमाग में चल रहा था और कहाँ उसकी शकल देखकर मुझे हंसी आ गई।
'तू हंस रही है मेरी तकलीफ देख के…'
'अरे नहीं यार, तू पागल है…'
' क्यों हंस रही है…'
' वो छोड़… अब तू घर जा, कल इस बारे में बात करेंगे तब तक अंशिका भी आ जाएगी।'
' मैं घर नहीं जाऊंगा, मैं जमुना जी में डूब के मरूंगा, मैं जा रहा हं…।'
'तू मेरी ज्यादा खोपड़ी मत सनका…' गुस्सा भी आ रहा था मुझे और फिक्र भी हो रही थी
इस नामाकूल की। इतनी देर में मुझे मनीष दिखाई दे गया।
'मनीष…' मैंने आवाज़ देकर उसे बुलाया तो ऐसे दौड़ के आया मानो पैरों में पंख लग गई हो।
'हाँ अवनी…'
'यार एक काम करेगा ?'
'बोल ना पागल तेरे लिए जान हाजिर है।'
'इसे घर छोड़ आ आज तू…।'
इस काम की सुनके उसकी तो जैसे नानी मर गई।
'क्या यार ये क्या काम है ?'
मैंने उसकी तरफ़ देखा तो शायद उसके हौसले पस्त हो गए।
'ठीक है… जा रहा हूँ, चल …'
वो समीर को लेकर चला गया। मुझे कुछ नोट्स बनाने थे तो मैं लाइब्रेरी की तरफ़ चली गई।
चलते-चलते दिमाग में कई ख्याल एक साथ आ रहे थे। समीर के बारे में ही सोच रही थी। कभी सोचा नहीं था कि समीर रो भी सकता है। कितना मस्त मौला लड़का है। हमेशा हँसते रहना, खिलजखलाते रहना, उसका नेचर ही ऐसा है। समीर मेरा स्कूल फ्रेंड है, समीर अवस्थी, लिटरेचर का स्टूडेंट है, बी.ए इंग्लिश ऑनर्स कर रहा है। एक बड़ी सी फैमिली का सबसे छोटा बेटा है। पांच भाई बहन है ना तो बड़ी फैमिली ही तो हुई उस पर भी चाचा-चाची साथ रहते हैं, उनके भी चार बच्चे हैं घर कम जिला ज्यादा लगता है। नरेश अवस्थी, समीर के पापा और महेश अवस्थी समीर के चाचा जी, दोनों मिलकर बेकरी का बिजनेस चलाते हैं और उनकी संताने उनका कमाया पैसा उड़ाती है। वैसे तो पूरी की पूरी फैमिली मेंटल है पर समीर कुछ ज्यादा ही तूफानी है। मेरी मुलाकात समीर से 12 क्लास में हुई थी हुई थी साथ में स्कूल एजुकेशन कंप्लीट की और आज कॉलेज में भी साथ में ही पढ़ते हैं। अपने ख्यालों में डूबी मैं लाइब्रेरी पहुंच चुकी थी।
' हेलो… अवनी'
आवाज़ बिल्कुल अजनबी थी। मैं अपने नोट्स बनाने में बिज़ी थी। अचानक किसी अजनबी आवाज़ में अपना नाम सुनकर थोड़ा अजीब सा लगा मुझे। मुड़ के देखा तो समझ में आया कि होश फ़ाख्ता होने का क्या मतलब होता है। कभी सोचा नहीं था कि तुम इस तरह अचानक आकर मुझसे बात करोगे।
' हेलो… रोहित…'
मेरी आवाज़ में झिझक और खुशी दोनों साफ़ ज़ाहिर हो रही थी।
'तुमसे थोड़ी देर बात कर सकता हूँ ?' रोहित ने पूछा तो मैं मुस्कुराए बिना रह ना सकी। ये सवाल पूछने में बड़ी देर लगा दी। वैसे पूछने की कोई ज़रुरत भी नहीं थी। जवाब तो 'हाँ' ही था। इस बात का अंदाज़ा शायद उसे भी था। मेरी मुस्कुराहट का मतलब 'हाँ' समझ कर वह मेरी पास वाली सीट पर आकर बैठ गया।
'कैसी हो अवनी ?'