पितृ सेवा
पितृ सेवा
अच्छा भरा पूरा ख़ुशहाल परिवार। सब कुछ ठीक चल रहा था। पर नियति अगले ही क्षण क्या दिखा देगी ,कुछ पता नहीं चलता। हँसते खेलते परिवार पर वज्र गिरा, पिता की तबीयत ख़राब हो गई ,पता चला हार्ट अटैक पड़ा है। उस समय आज जितनी सुविधाएँ नहीं थीं। शहर के ही वैद्य जी का इलाज चला। घर की ज़िम्मेदारी व देखभाल कैसे हो ,साथ ही साथ पिता की सेवा । फिर वैद्य जी के बताये अर्क वग़ैरह निकालने का काम। कुछ काम तो माँ कर लेती थी, रसोई में खाना पीना देख लेती थी , पर घर के और भी काम थे। कैसे कौन सँभाले। पिता के पास भी हर समय किसी एक को बैठना ज़रूरी था । कमज़ोरी के कारण वे लेटे रहते थे।
दोनों बड़े बेटे अपने करियर में सेटल हो रहे थे। उसके लिए एग्ज़ाम वग़ैरह देने थे। छोटा बेटा अभी पढ़ रहा था। इंटरमीडिएट का एग्ज़ाम दिया था। वह पढ़ाई में बहुत होशियार था। उस ज़माने में हाई स्कूल में व इंटर में फ़र्स्ट डिवीज़न लाया था, जबकि पूरे ज़िले में एक दो फ़र्स्ट डिवीज़न आती थी। उसने अपने परिवार व स्कूल का गौरव बढ़ाया था। पिता को उस पर बहुत गर्व था। उसको इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए जर्मनी भेजना चाहते थे।
पर पिता की बीमारी से सब पर रोक लग गई। परिवार में निश्चय किया गया कि पहले दोनों बड़े बेटे ठीक से सेटल हो जाए ,अपना करियर बना लें। फिर छोटे बेटे को सहारा देकर उसके सपने को पूरा करेंगे।
छोटा भाई बड़ों का आज्ञाकारी था। उसने बात मान ली। दोनों बड़े भाई अपनी नौकरी पर चले गए और छोटे ने शहर में ही BSC में एडमिशन ले लिया कि घर पर रहेगा, पिता की देखभाल भी करता रहेगा और पढ़ाई भी करता रहेगा।
पर पिता की देखभाल में सारा समय निकल जाता । उसे पढ़ने का समय नहीं मिलता। परीक्षा हुई, उसका कंपार्टमेंट आया। किसी तरह परीक्षा पास की। सोचा कि पिता ठीक हो जाएंगे तो सब सुधर जाएगा।
पर अनहोनी को कौन टाल सकता है। पिताजी जो बीमार हुए है तो फिर ठीक नहीं हो सके। छोटा बेटा उनकी लगन से सेवा करता रहा। उसका आदर्श था—
"जिन माता पिता की सेवा की,
तिन तीरथ व्रत किया न किया।
जिनके द्वारे पर गंगा बहे ,
तिन कूप का नीर पिया न पिया"।
छोटे बेटे ने पितृसेवा में अपने अध्ययन की भी परवाह नहीं की, सोचा कि पढ़ाई तो बाद में भी कर लूँगा, अभी पिता को ज़रूरत है।
उसने पिता की हर ख़ुशी का ,इच्छा का ख्याल रखा। उसकी सेवा से पिता को बहुत आराम मिला, माँ को भी सहायता मिली। पर विधि को कुछ और ही मंज़ूर था।
एक दिन पिता के दो हम वयस्क मित्र मिलने आए हुए थे, उनसे बात करते करते ही पिता के अचानक प्राण पखेरू उड़ गए। घर में मातम मच गया। बेटे ने स्थिति सँभाली। बड़े भाइयों को ख़बर दी। सब इंतज़ाम किया।
समय पर सब कुछ काम हुआ। छोटे भाई को दोनों बड़े भाइयों ने सहयोग दिया। फिर छोटे को पढ़ाई के लिए कहा। पर घर की ज़िम्मेदारी बहुत थी। छोटा भी बाहर निकल जाता तो मॉं व छोटी बहिनों को कौन देखता। छोटे ने बाहर जाकर पढ़ाई करने का विचार त्याग दिया। यहीं शिक्षा पूरी करने का और परिवार के साथ ही रहने का निश्चय किया। उसके इस निश्चय से समस्या का समाधान हो गया,।उलझन सुलझ गई।छोटे पढ़ाई पूरी कर कॉलेज में अध्यापक हो गया और घर का काम संभाला। परिवार के लिये किसी को तो त्याग करना पड़ता है।
