पिता का दिल
पिता का दिल
फ़ोन लगातार बज रहा था...अजनबी नंबर देख विकास उठा नहीं रहा था।
घर में महज़ चार दिन का राशन ही बचा है..आगे कैसे चलेगा चार लोगों का पेट सोच सोच कर चिंता में घुला जा रहा था।
शायद ,सेठ फिर से बुला रहा हो ?नए नंबर से फ़ोन कर रहा हो?अचानक यह बात दिमाग़ में कौंधीं और विकास फ़ोन लगा दिया -उस अनजान नंबर पर-“आपका एकांउट समाप्त हो चुका है कृपया रीचार्ज करने के लिए ...दबाए।”उस ओर से यह आवाज़ सुन कर विकास,मन मसोस कर रह गया।
रात के ग्यारह बजे एक बार फिर उसी नंबर से फ़ोन आते ही लपक कर विकास ने फ़ोन उठाया..."क क कौन? प्रणाम-बाबूजी!मेरा नंबर कैसे मिला?"
आँखों से अश्रु धार बह कर पुराने गिले शिकवे को धो रहे थे।
“लॉकडाउन में मेरी भी नौकरी चली गई है पिताजी!"
"हाँ-“मगर किस मुँह से आएँ। मैं तो आपसे लड़ झगड़कर अपना हिस्सा का पैसा लेकर शहर आकर बस गया हूँ।आपसे ,भइया -भाभी ,सबसे नाता तोड़कर पाँच साल हो गए ,एक बार भी आप लोगों की सुध नहीं ली।"
दूसरे तरफ़ से पिताजी ने कहा "भइया से बोल कर तुम्हारा फ़ोन रीचार्ज करवा देंगे और बस का भाड़ा भी पे :टी :एम करवा देंगे।कल हम सब तुमलोगों का इंतज़ार करेंगे “सबको लेकर यहाँ आ जाओ परिस्थिति ठीक होने के बाद में चले जाना तुम्हें मेरी क़सम।”
