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Padma Agrawal

Inspirational

4  

Padma Agrawal

Inspirational

पिचकारी

पिचकारी

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कल रात सुखिया की उसके बेवड़े पति ने बहुत पिटाई की थी और वह रोते रोते भूखी ही सो गई ....वह अपने जख्मों को सहलाती हुई बासी रोटी अपने जिगर के टुकड़े लालू को देकर रोज की तरह अपने काम पर निकल गई थी । वह सड़क पर बैठ कर कुछ फल या सब्जी बेच कर कुछ कमाई कर लेती है ... आज वह गन्ना लेकर आई थी और गन्नों पर होरा (हरा चना )और गेहूं की बाली बांध कर बेच रही थी ।

लोगों को उसका बंधा बंधाया हुआ पूजा के लिये तैयार गन्ना बहुत पसंद आया और उसका हाथों हाथ बिक गया था आज उसकी कमाई भी अच्छी हुई थी । उसके चेहरे पर मुस्कान थी वह अपने लालू के लिये आज पिचकारी और रंग लेकर जायेगी तो वह कितना खुश होगा ... तभी उसको ध्यान में आया कि बूढी अम्मा जो खिलौना बेचा करती थीं , आज अपनी जगह पर खिलौना लेकर नहीं बैठी हैं ... उसे अम्मा की फिकर हुई ... चलो पहले अम्मा से मिल लें तब घर जायें , सोचते हुये उसके कदम अम्मा की झोपड़ी की ओर बढ गये थे ।

टीन का दरवाजा ऐसे ही भिड़ा हुआ था , अम्मा बुखार में तपती हुई कराह रहीं थीं ...वह अम्मा को रिक्शा में बिठा कर डॉक्टर के पास ले गई , दवाई खिलाकर वह खाली हाथ अपने घर की ओर बढी तो लालू की पिचकारी उसे याद आई ....वह उदास कदमों से घर की तरफ बढ चली तो लालू का उदास चेहरा उसकी आंखों के सामने घूमने लगा ... वह उसका सामना करने से कतरा रही थी कि लालू खुशी से उछलता कूदता हाथ में लाल नई पिचकारी लेकर अम्मा ... अम्मा... पुकारता हुआ आया ...

"अम्मा हम मंदिर के बाहर खेलत रहै वहीं पर एक बाबू आयें और सबहिन का पिचकारी और खाने का पैकिट दीहिन । उनके बेटवा का जनम दिन रहै ।"

सुखिया की आंखों में बेटे की खुशी देख होली के रंग चमक उठे ... वह पिचकारी को छूकर निहाल हो रही थी ... नम आंखों से बोली ..."ऊपर वाले तेरी लीला !"


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