पहला प्यार
पहला प्यार
नारी जीवन के सात पड़ाव मैं चौथा पड़ाव यानी कि अपने किशोरावस्था के बारे में लिखने जा रही हूं।
रिश्तों का चक्र इस दुनिया में हमारे आगमन के साथ ही शुरू हो जाता है। सभी रिश्ते हमारे लिए महत्पूर्ण होते हैं और उनका अपना-अपना महत्व होता है।
लेकिन प्यार एक ऎसा रिश्ता होता है जिसे हम स्वयं चुनते हैं। प्यार की उमंगे किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही अंगडाई लेने लग जाती है। यह वह अवस्था है जिसके दौरान शरीर और हार्मोन्स में परिवर्तन होता है।
आपको उसका साथ अच्छा लगने लगता है। आप उसके बारे में और ज्यादा जानना चाहते हैं।
जैसा कि आपने पढ़ा किशोरावस्था में प्यार होना एक आम बात है , वैसे ही मुझे भी एक बार प्यार हुआ था , गलत मत सोचिए मुझे किसी इंसान से नहीं , बल्कि ! किताबों से प्यार हुआ था। क्योंकि मैं एक किताबी कीड़ा थी।
मैं किसी लड़कों की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखती थी , सभी फ्रेंड के पास बॉयफ्रेंड थे , वह लोग मुझे बहुत चिढ़ाते थे , यह तो किताबी कीड़ा है , यह का क्या जाने प्यार !
आज मैं आप लोगों को अपने प्यार के बारे में बता रही हूं , मुझे किताबों के प्यार का ऐसा नशा चढ़ा , जो आज भी नहीं उतरा है।
अब मेरी शादी हो चुकी है , मेरी शादी लव विद अरेंज हुई है। जिस कॉलेज में मैं पढ़ती थी उसी कॉलेज का एक लड़का जोकि बहुत सीधा-साधा था , वह मुझे पसंद करता था।
मैं भी उसे पसंद करती थी , लेकिन ? बॉयफ्रेंड के रूप में नहीं , मैं उसकी सादगी को पसंद करती थी। लेकिन वह मुझसे सच्चा प्यार करने लगा था , शायद किस्मत को भी यही मंजूर था ,कि उसका सच्चा प्यार और मेरी सादगी दोनों मिलकर पति पत्नी बन जाए।
बस फिर क्या था मेरे घर वाले तो रिश्ता ढूंढ ही रहे थे। उसके पिताजी मेरे घर हमेशा आया करते थे , वह मेरे पिताजी के दोस्त थे। जब पापा ने उनसे पूछा शास्त्री जी कोई रिश्ता हो तो बताइए मेरी बेटी के लिए।
उन्होने कहा क्या पंडित जी बगल में छोरा गांव में ढिंढोरा , पापा बोले मैं कुछ समझा नहीं , शास्त्री जी बोले मैं आपकी बेटी को अपनी बहू बनाना चाहता हूं , बस फिर क्या था पापा को लगा घर बैठे भगवान मिल गए। और कुछ ही दिनों में हम दोनों की शादी हो गई।
मैंने जिसकी कल्पना भी नहीं की थी उससे भी ज्यादा अच्छा ससुराल है मेरा।
और मेरे पति तो दुनिया के सबसे बेस्ट पति है।
किशोरावस्था के सादगी और प्यार नें एक सच्चे रिश्ते का नाम ले लिया।

