पहला आकर्षण
पहला आकर्षण
"हायss देख कितना हैंडसम है ये विनोद सर को कहां से ऐसे लड़के मिल जाते हैं अपने पोट्रेट के लिए ? मनीषा चहकती हुई वंदना से बोली।"
"चल आ ना उसके बारे में पता करते हैं कहती हुई मनीषा विनोद सर के कमरे की तरफ बढ़ गई।"
कमरे में पहुंच कर देखा विनोद सर पोट्रेट बनाने में मशगूल थे और वो ' जो भी नाम होगा ' एक ही पोजीशन में बिना हिले सिगरेट पीने में मगन। किसी ने उसके उपर ध्यान ही नहीं दिया, धीरे से दरवाज़ा बंद कर नीचे आ गई।
"मुॅंह क्यों लटका रखा है ? वंदना ने उसका कंधा पकड़ कर पूछा।"
"यार ! कैसे पता चलेगा इसके बारे में ? "
"चल जायेगा तू परेशान क्यों होती है अब तू देख मेरा कमाल। "
सामने से जाते लड़के को देख वंदना ने आवाज़ लगाई अरूण... अरूण यहां आओ।
"अब क्या खुराफात चल रही है तुम दोनों के दिमाग में ? अरूण ने हॅंस कर कहा।"
"एक काम करोगे ? "
"क्यों नहीं...मेरा तो जन्म ही तुम दोनों की आज्ञा का पालन करने के लिए हुआ है कहिए क्या आज्ञा है ?"
"वो उपर विनोद सर के कमरे में एक बहुत हैंडसम सा लड़का पोट्रेट बनवा रहा है ज़रा उसका बायोडाटा पता कर सकते हो ?"
"ये कौन सी बड़ी बात है पता करके बताता हूॅं।"
शाम को फैकल्टी से निकल ही रहीं थीं दोनों कि अरूण आ गया।
"अभी दो - तीन दिन लगेगा पता करने में।"
"बड़ा भाव ले रहे हो एक काम भी जल्दी नहीं कर सकते ?"
करीब पांच दिन लगातार वो आया वही हाथ में सिगरेट और सर के कमरे में जाते हुए बहुत ध्यान से देखता, ऑंखों में अजब सा नशा, जींस के अपर बाहर निकली शर्ट कभी बायें तरफ की शर्ट जींस के अंदर ख़ुशी हुई, जो भी कहो ग़ज़ब का हैंडसम उसके हाव भाव से लगता था कि उसको अपने कुछ ज्यादा ही हैंडसम होने का एहसास था।
"साॅरी मनीषा.... अरूण ने दुखी सा मुंह बनाते हुए कहा।"
"किस बात के लिए सॉरी... क्या हुआ ?"
"वो लड़का जिसका बायोडाटा मांगा था तुमने...अरे वाह ! जल्दी बताओ क्या पता चला उतावली हो वंदना ने पूछा।"
"दरअसल वो शादी शुदा है और उसे ड्रग्स की भी आदत है।"
"क्याsss तो ये वजह थी उसकी नशीली आंखों की ? ये कह जोर से हंस पड़ी वंदना।"
"तुझे दुख नही हो रहा है मनीषा ? " अरूण ने पूछा।
" दुख ? किस बात का...उसके शादी शुदा होने का ? अरे नहीं कौन सा मेरा उससे अफेयर था हां अच्छा लगता था।"
" हम प्रैक्टिकल लड़कियां हैं कोई इमोशनल फूल नहीं...आये भी वो गये भी वो...लो खतम फ़साना हो गया।"
" यार तुम ऐसी ही रहना ज़रा भी नहीं बदलना अरूण ने सेंटी होते होते हुए मनीषा से कहा।"
" पागल है तू मैं क्यों बदलने लगी भला "...हॅंसती हुई मनीषा ने दोनों की नज़रों से छुप कर झट अपनी आंखों के कोरों को पोंछ लिया।
पहला आकर्षण था दुख कैसे ना होता भला।