हां वो मुझसे कहकर गए
हां वो मुझसे कहकर गए
कपिल वस्तु को दुल्हन की भाँति सजाया जा रहा था आयोजन था राजकुमार सिद्धार्थ के विवाह का, राजा सुप्पबुद्ध औऱ रानी पमीता की पुत्री यशोधरा से सिद्धार्थ का विवाह हो रहा था सिद्धार्थ बचपन से सब बालकों से अलग थें उनके मन में सभी जीव - जंतुओं, मनुष्यों के प्रति अपार दया भाव था राजा शुद्धोधन सिद्धार्थ को लेकर बहुत चिंतित रहते थे की कैसे वो इस कोमल हृदय के साथ दुनिया का सामना करेगा हर तरफ छल - कपट से भरे लोग हैं। राजा शुद्धोधन ने सोचा की सिद्धार्थ का विवाह हो जायेगा तो शायद उसके व्यवहार में कुछ बदलाव आयेगा ये सोच सोलह वर्ष की अवस्था में ही यशोधरा से सिद्धार्थ का विवाह ठीक कर दिया। सिद्धार्थ अपनी मौसी को ही माँ समझते थे सिद्धार्थ की माँ महारानी महामाया देवी तो सिद्धार्थ के जन्म के सातवें दिन ही चल बसी थी महारानी की सगी छोटी बहन महाप्रजापति गौतमी ने ही सिद्धार्थ का लालन - पालन किया। महामाया गौतमी सिद्धार्थ के सरल हृदय को देख बहुत प्रसन्न होती थीं उन्हें लगता था सिद्धार्थ जैसा बालक कभी किसी की पीड़ा का कारण नही बन सकता।
विवाह विधि पूर्वक सम्पन्न हुआ सिद्धार्थ के जीवन का नया पड़ाव प्रारंभ हो चुका था उनके जीवन में संगीनी के रूप में यशोधरा प्रवेश ले चुकी थी। दोनो ज्यादा वक्त एक दूसरे के साथ व्यतीत करते कभी चौसर खेलते तो कभी दूर आखेट के लिए निकल जाते, इन सबके बीच में सिद्धार्थ का रह - रह कर कही खो जाना चुप बैठ कर आसमान को निहारना यशोधरा से छुपा नही था, उसका मन हुआ की वह सिद्धार्थ से इसका कारण ज्ञात करे लेकिन उसने खुद को रोक लिया उसे लगा इतना उतावलापन ठीक नही हम एक दूसरे को थोड़ा वक्त देते हैं, सच ! यशोधरा का धैर्य काम आया और एक शाम जब वो चौसर खेलने बैठे तो सिद्धार्थ ने यशोधरा से कहा ...यशोधरा मुझे तुमसे कुछ पूछना है वैसे ये सब मैं तात और आचार्य से भी पूछ चुका हूँ परंतु किसी के पास इसका जवाब नही है मैं तुम्हे भी अपने प्रश्नो से अवगत कराना चाहता हूँ जिससे तुम मेरे मन की दुविधा समझ सको। यह सुन यशोधरा बोली मेरा सौभाग्य होगा आप अपने प्रश्न बताइये मान्यवर !
सिद्धार्थ : लोग बीमार और बुढ़े क्यों होते हैं, मृत्यु क्यों आती है ? सब लोग अपने प्रियजन की मृत्यु पर रोते हैं परंतु साधु - सन्यासीयों पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ता है वो निर्विकार भाव से रहते हैं दुख उनके पास नही आता है। मुझसे लोगों की लाचारी दुख और रूदन नही देखा जाता मैं इन सबके पीछे का कारण जानना चाहता हूँ। यशोधरा उनकी जिज्ञासा सुन कर हैरान थी इसलिये नही की सिद्धार्थ ने ऐसे प्रश्न क्यों पूछे इसलिये की उसके मन में ये विचार क्यों नही आये ? अब यशोधरा को भी सिद्धार्थ सबसे अलग लगने लगे, हर व्यक्ति सुख - संपन्नता, भोग - विलास, ईर्ष्या - द्वेष में रमा है और इन सबसे दूर सिद्धार्थ लोगों के दुख से दुखी है। यशोधरा के मन में सिद्धार्थ के लिए प्रेम तो था ही अब आदर भी जन्म लेने लगा। कुछ ही वक्त बाद यशोधरा ने एक स्वस्थ्य और प्यारे से पुत्र को जन्म दिया राजा शुद्धोदन ने इस खुशी के आने पर खूब दान किया और पोते का नाम राहुल रखा।
सब मगन और प्रसन्न थे परन्तु सिद्धार्थ अपने प्रश्नों में और उलझते जा रहे थे और एक रात अचानक से गृह - त्याग का विचार आया और तुरंत पहरेदार छंदक को घोड़ा लाने का आदेश दिया सोचा एक बार पुत्र का चेहरा देख लूँ लेकिन अगर यशोधरा उठ गई तो ? फिर सरल हृदय में यशोधरा के प्रति जिम्मेदारियों की आवाज कानों में सुनाई देने लगी दुसरों के दुख से विचलित होने वाले सिद्धार्थ को भला अपनी यशोधरा की तकलीफ कैसे ना दिखाई देती। उन्होंने सोचा की अगर बिना मिले चले जाते तो ग्लानि से यशोधरा खुद से नजरें ना मिला पाती, पत्नी के रूप में उसने हर कदम पर साथ दिया और मैं अपने जीवन का इतना महत्वपूर्ण फैसला उसको बिना बताये कैसे ले लूँ ?
सिद्धार्थ शांत मन से यशोधरा के कक्ष में गये यशोधरा को उठाया अचानक से आधी रात को अपने कक्ष में सिद्धार्थ को देख हड़बड़ा उठी, सिद्धार्थ ने अपने मन की बात बताते हुये जाने की आज्ञा माँगी यशोधरा इतने वक्त में सिद्धार्थ को समझ चुकी थी सिद्धार्थ को रोकना व्यर्थ था, उसने जाने की अनुमति के साथ एक वचन सिद्धार्थ से लिया की जब उनको अपने प्रश्नों के उत्तर मिल जायें तो वो वापस अवश्य आयेंगे। यशोधरा ने सिद्धार्थ को विश्वास भरा आश्वासन दिया की वो राहुल को पिता का भी प्यार देगी उसकी परवरिश में कोई कमी नही रखेगी। सिद्धार्थ जाने के लिए उठ खड़े हुये यशोधरा भी पुत्र को गोद में लिए साथ चल दी सिद्धार्थ ने प्रश्न सूचक दृष्टि से यशोधरा को देखा मुस्कुरा दी यशोधरा बोली इतना विश्वास किया है तो थोड़ा और सही आप को मैं खुशी - खुशी विदा करना चाहती हूँ। द्वार पर छंदक घोड़ा ले कर खड़ा था सिद्धार्थ घोड़े पर सवार हुये यशोधरा और पुत्र राहुल की तरफ देखा और तेजी से द्वार पार कर गये यशोधरा उनको जाते हुये देखती रही फिर पलट कर कक्ष की ओर चल दी, दृढ़ता से एक - एक कदम कक्ष की ओर बढ़ा रही थी और सोचती जा रही थी की कल प्रातः जब सब पूछेंगे तो वो गर्व से कहेगी की " हाँ वो मुझसे कह कर गये "।
नोट :
( यदि मैं इतिहास बदल सकती " इस विषय के अंतर्गत मेरी कहानी ये कहानी मेरे मन की एक कोरी कल्पना है। " हाॅं वो मुझसे कह कर गये " में मैने सिद्धार्थ (भगवान बुद्ध ) की पत्नी यशोधरा के मन की कही है " आपको मैं मैं खुशी - खुशी विदा करना चाहती हूँ "। यशोधरा की पीड़ा स्त्री होने के नाते मुझे सालती है और इस पीड़ा को मैंने अपनी कहानी में स्थान ना देकर उनके आत्मसम्मान को स्थान दिया है। जो काम सिद्धार्थ को करना चाहिए था उसको मैने अपनी सोच के माध्यम से इस कहानी में चरितार्थ किया " सरल हृदय में यशोधरा के प्रति जिम्मेदारियों की आवाज कानों में सुनाई देने लगी दुसरों के दुख से विचलित होने वाले सिद्धार्थ को भला अपनी यशोधरा की तकलीफ कैसे ना दिखाई देती " इसी एहसास को मैने अपनी फैंटसी के माध्यम से दर्शाया है। )