दोस्त/डाक्टर/भगवान
दोस्त/डाक्टर/भगवान
पैंतालिस की उम्र में इतना मैसिव हार्टअटैक से तड़प रहे रितेश को ले संजना आननफानन में एयर एंबुलेंस से दिल्ली पहुंची... दोनों बच्चे बहुत छोटे थे उनको बहन के पास छोड़ आई थी।
" ये फार्म भर दिजिए मैम जिससे ट्रिटमेंट जल्दी शुरू हो सकें " नर्स की आवाज़ से चौंक उठी संजना।
" ज़रा भी घबराना नही संजना....रितेश को कुछ नही होगा " डा० नरेंद्र ने कंधे पर हाथ रखते हुए संजना से कहा , जो हाथ घरवालों का उसके कंधे पर होना चाहिए था वहां डा० रितेश का हाथ था ये स्पर्श एक एहसास था आत्मियता का , चिंता का और सुरक्षा का।
रितेश एमरजेंसी वार्ड में जा चुका था...बड़े हाॅस्पिटल के बड़े नियम , वेटिंग एरिया में इंतज़ार किजिए अंदर सब डा० नरेंद्र संभाल रहे थे।
दो घंटे के बाद संजना को डा० नरेंद्र का फोन आया ' मेरे केबिन में आओ संजना ' बस इतना कह डा० नरेंद्र ने फोन रख दिया।
केबिन का दरवाज़ा खोल अंदर आई संजना ' ओह ! आई एम साॅरी तुम लंच कर लो मैं थोड़ी देर बाद आती हूॅं। '
" कहां जा रही हो ये लंच तुम्हारे लिए है। "
" मेरे लिए ? "
" हां तुम्हारे लिए आओ बैठो...रितेश अंडर ऑब्जर्वेशन है यू डोंट वरी हां तुम्हे रात को रूकने की ज़रूरत नहीं है मैं रितेश के पास रहूंगा। "
देश का जाना माना काॅर्डियोलाॅजिस्ट जो इतना बिजी रहता है वो उसके खाने की चिंता कर रहा है ख़ुद ना खाकर उसे खिला रहा है ...संजना एकटक डा० नरेंद्र को देखे जा रही थी...रितेश के बचपन के दोस्त को डाक्टर को और अब भगवान को। "
" खाना खाओ संजना ठंडा हो रहा है। "
" आज तक उसने भगवान की मूर्ति को भोग लगाया था आज तो साक्षात भगवान उसे भोग खिला रहे हैं संतुष्टि के साथ संजना ने भोग का पहला निवाला मुंह में डाल लिया। "