वो सफर जिसने ख़्वाब सच किया
वो सफर जिसने ख़्वाब सच किया
ट्रेन अपनी रफ़्तार पे थी अचानक से अंगूठी वाले शरीर ने करवट ली हे भगवान ! ये तो मीरा है उसे यकीन करना मुश्किल हो रहा था कि कहीं वो ख़्वाब तो नहीं देख रहा, एक पल को लगा जैसे उसे झकझोर कर उठा दे और पूछे कि कहां गायब हो गई थी ? और ऐसा क्या हो गया कि आज तक तूने एक बार भी एक फोन तक नहीं किया।
तभी मीरा ने आंख खोली सामने श्वेतांक को देख कर झट उठ कर बैठ गई फिर अचानक से बिना कुछ बोले खिड़की से बाहर देखने लगी ... अच्छा तो अब पहचाना भी नहीं जा रहा...उधर से कोई जवाब नहीं आया, आखिर ऐसा क्या हो गया जो मुझसे मुंह मोड़ लिया कोई गलती हुई मुझसे ? अगर हुई भी तो मुझे मेरी गलती जानने का हक़ तो है।
नहीं-नहीं तुझसे कोई गलती नहीं हुई कहती हुई मीरा अपनी हथेलियों से अपना मुंह ढक रोने लगी उसके आंसुओं के साथ सालों का दर्द बह निकला। वो तो अच्छा था कि फर्स्ट क्लास के कूपे में वो ही दोनों थे, थोड़ा संभलने के बाद मीरा ने अपने बैग से एक फाइल निकाल श्वेतांक की ओर बढ़ा दिया। पेशे से डाक्टर श्वेतांक ने फाइल पढ़ना शुरू किया और मीरा की तरफ देख कर बोला कैंसर है तुमको ? हां... इसीलिए मैं तुमसे दूर चली गई...अरे ! कैंसर का इलाज तो हो रहा है तुम्हारा और ये कोई बड़ी बात नहीं है तुम तो जिजिविषा वाली औरत हो हरा दोगी इस नामुराद को। इस छोटी सी बात के लिए तुमने खुद को और मुझे इतनी बड़ी सज़ा दी...तुमसे ये उम्मीद नहीं थी मुझे, कहां हैं तुम्हारे पति उनसे मैं बात करता हूं और ये अंगूठी अभी तक पहनी हुई है ?
मैंने शादी नहीं की और ये अंगूठी ही तो मेरे जीने का सहारा है मेरा ख़्वाब है, अच्छा एक इंसान सहारा नहीं बन सकता अंगूठी सहारा बनने चली है तल्ख होकर श्वेतांक ने कहा और झट मीरा का हाथ पकड़ कर बोला इतने साल अंगूठी पर विश्वास किया अपना सहारा समझा ख़्वाब माना अब इस नाचीज़ को भी एक मौका देकर देखो। आश्चर्य से मीरा ने श्वेतांक को देखा जो उसके ख़्वाब को हक़ीक़त में बदलने के लिए उतावला हो रहा था...अरे ! ऐसे क्या देख रही हो मैंने भी तुम्हारी तरह शादी नहीं की है आओ तुम्हारे ख़्वाब को हम दोनों सच में जीते हैं ये कह वह जोर से हंस पड़ा।