अनुभव अनंत सुख की सफलता का
अनुभव अनंत सुख की सफलता का
जनवरी की उस शाम धारासार बरसात शुरू हो गई थी; वह नखशिख तक भीगा हुआ था फोटोग्राफी के चक्कर में जंगल के अंदर आ गया था और जंगल में पेड़ के नीचे खड़ा कांप रहा था, तभी जोर की बिजली कड़की और उसने देखा उस पेड़ के ठीक पीछे एक मकान था। मकान देखते ही उसके दिमाग़ ने एकबार सोचा कि मकान वो भी शहर से दूर इतने घने जंगल में वो भी इतनी ऊँचाई पर ? उसने दिमाग़ के सोचने वाला दरवाज़ा बंद किया और मकान का दरवाज़ा खटखटाने चल दिया। अंधेरा इतना घुप्प था कि हाथ को हाथ नही सूझ रहा था बिजली का चमकना रौशनी का काम कर रहा था। दरवाज़ा खटखटाने पर भी नही खुला ज़रा सा धक्का दिया और चर्रsssssss की आवाज़ के साथ खुद - ब - खुद खुल गया , अंदर कोई भी नही था पास पड़ी चारपाई जो बिजली चमकने से दिख गई थी उस पर पड़े गद्दे को पलट कर पसर गया कब नींद ने धर दबोचा पता ही नही चला.....भोर होते ही सूरज ने अपने होने का एहसास कराया चेहरे पर रौशनी पड़ते ही हड़बड़ा कर उठ बैठा। उसको ये घर कुछ कुछ जाना पहचाना सा लगा दोनों कमरों को देखा लेकिन कुछ याद नही आ रहा था तभी उसकी नज़र वहाँ पड़ी एक छोटी सी लकड़ी की अलमारी पर पड़ी , उसको उत्सुकता वश खोल लिया खोलते ही उसमें एक क़मीज़ दिखाई दी अरे ! ये तो उसकी क़मीज़ है कितना ढ़ूंढ़ा था इस क़मीज़ को लेकिन नही मिली थी , पर ये यहाँ कैसे आई ? तभी उसे याद आया ' ओ तेरी के ' इतनी बड़ी बात मैं कैसे भूल गया सच कहा है " सफलता मिलते ही इंसान पिछला भूल जाता है।
पिछला सब याद आने लगा.....1995 की भयावह बाढ़ गाँव के गाँव डूब गये थे वो डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट था और बाढ़ का जायज़ा लेने निकला था , फँसे लोगों को निकालते निकालते काफ़ी समय हो गया अंधेरा होने को आ रहा था। अचानक से तेज़ धारासार बरसात शुरू हो गई " एक तो कोढ़ ऊपर से खाज " तभी पता नही कैसे नाव पलट गई और वो तेज़ धार में बह निकला होश आया तो देखा एक औरत उसको पानी में से खिंच रही थी उसने भी थोड़ा दम लगाया और पानी से बाहर आ गया। पास ही में एक मकान था उसी में इस औरत ने उसको ले जाकर चारपाई पर लिटाया और छोटी लकड़ी की अलमारी में से एक क़मीज़ और पजामा निकाल कर दिया और तुम कपड़े बदल लो मैं चाय लाती हूँ बोल कर अंदर चली गई। पूरे छ: दिन वहीं रहा बहुत सेवा की उस औरत ने....नही नही काकी ने अब काकी बोलने लगा था , पानी कम होने पर उसको ढ़ूंढ़ लिया गया और आभार व्यक्त कर फिर मिलने की कह चला आया था ऐसा लगा जैसे किसी अपने को छोड़ कर जा रहा है लेकिन अपने काम और गृहस्थी में इतना उलझा की फिर मिलना कभी ना हो पाया ना ही उसे याद रहा।
आज ज़िंदगी ने उसी मकान में ला कर खड़ा कर दिया है शायद उसको उसका वादा याद दिला रही थी , अपनी क़मीज़ ले बाहर निकल आया बाहर उसे एक बुज़ुर्ग व्यक्ति दिखाई दिया उससे पूछने पर पता चला कि काकी पिछले पाँच महीनों से सरकारी अस्पताल में भर्ती है। कोई आगे पीछे तो था नही उसके की उसकी घर पर देखभाल करता ये सुन वो वहाँ से चला आया उसको अपने आप पर बहुत ग़ुस्सा आ रहा था और साथ में शर्मिंदगी भी हो रही थी , सोच रहा था जिस काकी की वजह से आज वो ज़िंदा है उसी को भूल गया इतना कृतघ्न कैसे हो गया वो ? सरकारी अस्पताल में तलाश शुरू हुई दो चार औरतें उसी उम्र के आस पास की थीं पता चलते ही सारे काम छोड़ क़मीज़ ले पहुँच गया अस्पताल , चारों औरतों में से काकी को तुरंत पहचान गया बैड पर बैठ उनका हाथ पकड़ कर बोला....काकी....कौन कौन है ? मैं मैं हूँ काकी तुम्हारा नितिन ये कहते हुये क़मीज़ खोल कर खड़ा हो गया। बूढ़ी आँखें जार - जार रो रही थीं.....कहाँ था इतने साल तू बता ? बोल कर भी नही आया सालों तेरा आसरा देखा....काकी से लिपट मैं सिसक पड़ा....मुझें माफ़ कर दे काकी अब मैं कहीं नही जाऊँगा हम साथ रहेगें....काकी को अपने बाँहों में पकड़े हुये उसने पीछे खड़े बॉडीगार्ड्स से कहा काकी हमारे साथ चल रही हैं पी ए को फ़ोन करके बोलो की मैडम से कह कर मेरे बग़ल वाला कमरा काकी के लिये तैयार करवा दें। बॉडीगार्ड ने पी ए को फ़ोन पर सब कह दिया ये सुन पी ए ने फ़ोन रखते कहा....मिनिस्टर साहब भी कमाल के हैं 25 साल बाद क्या इन्हीं काकी के लिये लौटे हैं ? इधर नितिन काकी को पकड़ कर कार में बैठा जीवन के अनंत सुख की सफलता का अनुभव कर रहा था।