STORYMIRROR

फेयरवेल

फेयरवेल

3 mins
1.1K


कॉलेज कैन्टीन

“अरे क्या बात है भाई बड़े चुप चाप बैठे हो?”

“बस यार मूड ठीक नही।”

“अब ऐसा क्या हो गया यार। रोज़ समोसे पे समोसे निपटाने वाला आज खाली ग्लास लेकर बैठा है।”

“तुम्हें तो पता है ना अनुज।”

“हाँ पता है और मैने इसका सॉल्यूशन भी बताया। जा एक बार कोशिश तो कर।”

“अबे वो सिधे मुंह देखती नहीं लड़कों को और हम उसको प्रोपोज कर दे।”

“बेटा तीन साल तो तुमने मोहब्बत ढूढ़ने में निकाल दी। जब कोई पसंद भी आयी तो कॉलेज की सबसे पढ़ाकू लड़की। जिसे लड़कों मे कोई दिलचस्पी नही। तुम्हारे तो सारे ग्रह ही खराब है।”

“अबे ऐसा ना बोलो बे। कोशिश तो बहुत की मैने।”

“घन्टा कोशिश की तुमने। आखिर किया क्या उसे बताने को।”

“यार तुम तो सब जानते हो।”

“हाँ हाँ जानता हूँ। तुम्हारी कौपियों के पीछे के पन्ने उसके नाम से भरे हैं। उसके नाम शायरी और कविताएं लिख लिख के डायरियाँ भर रखी हैं। हर पांचवे मिनट उसका जिक्र मुझसे करते हो। मगर ये उसको पता है क्या?

“नहीं यार उसे कहाँ पता है।”मुंह लटकाते हुए मैने कहा।

“अमा मुंह ना लटकाओ यार। अभी भी टाईम है। परसों फेयरवेल है। मेरी मानो इससे बढ़िया मौका ना मिलेगा।”

“बात तो तुम ठीक कह रहे हो अनुज। पर कुछ सुझाओ तो।”

“वाह बेटा कहानी लिखे हम और नॉवेल बिके तेरे नाम पर। चल तेरे लिये ये भी।”

“भाई तेरे तजुर्बे है इसमे।”

“हाँ हाँ ठीक है। करता हूँ कुछ। ज्यादा मक्खन ना लगा।”

अगले दिन सुबह जब मैं उठा तो देखा अनुज तैयार हो रहा था।

“कहाँ चल दिये भाई?और ये बैग कैसा है?”

“अरे कुछ ज़रुरी काम है यूँ गया और यूँ आया।”

कहते कहते अनुज बाहर चला गया।

दोपहर तक लौटा तो एकदम शान्त था।

“क्या हुआ बे? कहाँ गया था?”

“अरे मत पूछ भाई। बड़ी मुश्किल हुई उसे समझाने में। मान ही नहीं रहा था। बड़ी देर समझाया तब जाके माना है।”

“कौन नहीं मान रहा था भाई।”

“अरे है एक पुराना दोस्त। अपनी ख़ुशियों को नज़र अन्दाज करता जिन्दगी जी रहा था। उसको जिन्दगी के सबसे खुबसूरत ख़ुशियों का तोहफ़ा देकर आ रहा हूँ।”

“ऐसा कौन है भाई? और ऐसी क्या ख़ुशियाँ दे दी तुने?”

“सब बताऊंगा पहले खाना तो खा लूँ ।”

खाना खा के जनाब सिधे सोने चले गये। शाम मे भी ग़ायब। फिर मैं भी अगले दिन के तैयारियों मे लग गया। फेयरवेल जो था। और फिर हमने इस दिन को इज़हार ए मोहब्बत के लिये चुना था। डर से हमारी हालत पतली थी।

“अरे जल्दी तैयार हो जाओ श्रवन आज बस प्रोपोज करना है। शादी नही करनी।”

“तुम भी ना यार। हाँ चलो अब।”

“चलो।”

कॉलेज कैन्टीन

“अरे वो रश्मी ही है ना? कितनी खुबसूरत लग रही है आज।”

“हमे तो हर दफा वो इतनी ही खुबसूरत लगती है।”

“अब गुरु यहाँ शुरु मत हो जाना।”

“लगता है तुम्हें ही देख रही है श्रवन बाबू।”

“अब फिरकी ना लो यार।” होठों को दोनो ओर खिच कर मुस्कुराते हुए हम बोले। मगर शायद देख तो वो रही थी।

“अच्छा जरा आना हमारे साथ।”कहकर अनुज हमे खिच कर कहीं ले जाने लगा।

“अबे अब तुम दिदार भी ना करने दो हमको।”खिसीयाते हुए हमने कहा।

“अरे चल तो।”

“कहाँ ले जा रहे हो यार इस वक़्त।”

“चल आखिरी बार कॉलेज का एक चक्कर मार ले।”

घूमते घूमते हम लाइब्रेरी सेक्शन मे पहुंचे।

“इधर तो पूरा सन्नाटा है आज।”

“वैसे भी कौन सा बहुत भीड़ होती है।”

“हाँ मगर आपकी प्रेमिका तो होती है ना इधर।”

“हाँ वो तो लगभग रोज़ ही इधर…”

“रुक मेरा फ़ोन बज रहा है। अभी आया।”

“अबे कहाँ चला?”

“आया आया।”

कहकर वो चला गया। और मैं अकेला खड़ा रहा लाईब्रेरि की ओर ताकता जिसमे वो रोज़ आया करती थी। मैं इधर उधर नज़रे घूम रहा था तभी,”कैसे है श्रवन जी?”

“अरे रश्मी जी आप इधर?”

“जी क्यूँ आज मनाही है क्या घूमने पे?”

“अरे नहीं नहीं। मगर आप तो अपनी सहेलियों के साथ थी ना?”

“जी थी तो मगर कल किसी ने कुछ बताया उसपर अमल करने आ गई।”

एक पल को तो मुझे कुछ समझ ना आया मगर फिर मैने पूछा,”कल अनुज मेरी डायरी और कॉपियां लेकर आपके यहाँ आया था।”

“जी।”उसने अपनी हमेशा वाली प्यारी सी मुस्कान बिखेरते हुए कहा।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama