पहचान
पहचान


एडवोकेट रीमा की पहचान शहर में एक ऐसी नारी की थी, जो हर प्रताड़ित लड़की की सहायता के लिए हर कदम उसके साथ रहती थी। जो भी लड़की उनके पास मदद के लिए आती, वह पहले उसकी सच्चाई से पूरी तरह से वाकिफ होतीं, फिर, उसके सच की ईमानदारी देखकर उसकी मदद के लिए बिल्कुल मां की तरह उसके पीछे खड़ी हो जातीं।
उनके इन्हीं गुणों की वजह से उनका नाम देश के सर्वोच्च नारी सम्मान के लिए भेजा गया था और आज उन्हें राष्ट्रपति के हाथों वह सम्मान प्राप्त हो रहा था।
न्यूज़ चैनलों पर उनकी तारीफ हो रही थी और एडवोकेट रीमा अपने घर के कमरे में अकेली एक तस्वीर के सामने खड़ी आँखों की नमी के बीच एक लड़की को देख रही थी, जो उन्हें पुकार-पुकार कर कह रही थी,"माँ मुझे बचा लो, मैं मरना नहीं चाहती"... रीमा ने पहचान लिया था..वह उनकी बेटी नीला ही थी। रीमा सोच रही थीं-" अगर मेरी बेटी नीला उन मनचलों की हवस का शिकार होकर मृत्यु तक न पहुँचती तो आज मेरे पास होती.. मुझे कोई सम्मान, कोई पहचान नहीं, बस मेरी बेटी चाहिए।