"आमंत्रण"
"आमंत्रण"
राजन का कार्ड मिलते ही सुमन कलकत्ता जाने के लिए उत्साहित होने लगी।राजन-- लॉ कॉलेज का ऐसा साथी, जो पूरे कॉलेज का चहेता था। गाना, डिबेट, ड्रामा, पढ़ाई-हर बात में अव्वल...न जाने कितनी लड़कियाँ उससे शादी के सपने देखा करती थीं।खुद सुमन उसे मन ही मन में इतना चाहने लगी थी कि राजन के विवाह की खबर सुनकर हफ्तों रोती रही थी।राजन सुमन के क्लास में ही पढ़ने वाली ऋचा से प्रेम करता था और उसी से उसने शादी कर ली थी। पढ़ाई के बाद इन्टर्नशीप और फिर लॉ फर्म की नौकरी...सुमन पढ़ाई में अच्छी थी इसलिए राजन अक्सर उससे केस डिस्कस किया करता था।ऐसे वक्त सुमन यही सोचती रहती कि काश ये समय कभी खत्म ही न हो...पर ऋचा के आते ही राजन मानो उसका हो जाता और उसके चेहरे पर फिर से उदासी छा जाती थी। राजन भी सुमन के मन की बात समझता था पर ऋचा के लिए उसकी चाहत बेशुमार थी।
धीरे-धीरे समय बीता और राजन और ऋचा कलकत्ता शिफ्ट हो गये।घर वालों के लाख कहने पर भी सुमन ने शादी नहीं की और अपना ध्यान पूरी तरह से काम में लगा कर सब भुलाने की नाकाम कोशिश करती रही।कुछ हद तक सफल हो भी गई थी पर आज छ-सात सालों के बाद अचानक राजन का आमंत्रण-पत्र पाकर एक बार फिर दिल में हलचल होने लगी थी। राजन को अवार्ड मिलने वाला था,इसीलिए उसने अपने सभी वकील दोस्तों को कलकत्ता आने का आमंत्रण
दिया था।आखिर राजन का आमंत्रण वह कैसे ठुकराती..?
नियमित दिन वह फ्लाइट लेकर कलकत्ता पहुँच गई।रास्ते भर यही सोचती रही पता नहीं उसके कितने बच्चे होंगे... क्या गिफ्ट लेना चाहिए वगैरह..वगैरह।
राजन के घर पहुँचकर वह हैरत म़ें पड़ गई जब उसे पता चला कि शादी के दो सालों के बाद ही ऋचा उसे छोड़कर किसी और के साथ जा चुकी है और वह बिल्कुल अकेला पड़ गया है।
राजन की बातें सूनकर सुमन की आँखें भर आयीं... ऋचा पर बहुत गुस्सा भी आया..एक बार फिर राजन को पाने की चाह ने सर उठाया पर संकोची सुमन ने उसे वहीं दबा दिया।शाम को राजन के अवार्ड फंक्शन के बाद जब वह वापस जाने की इजाजत माँगने राजन के पास गई तो राजन ने उसका हाथ पकड़ लिया--"रुक जाओ सुमन...मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।"
"ले..किन..ऋ..चा.." सुमन ठिठकते हुए बोली.
"ऋचा अब कभी वापस नहीं आयेगी.. उसने मुझसे तलाक ले लिया है और कम्पनसेशन भी..मैं उसकी दौलत की चाह को अपने लिए प्रेम समझने की गलती कर बैठा...मुझे पता है तुम मन ही मन मुझे चाहती हो...मुझे एक सच्चे साथी की तलाश है,जो तुमसे अच्छा कोई और नहीं हो सकता..प्लीज हाँ कह दो.."राजन की आवाज़ में बहुत अपनापन था।सुमन खुशी से रो पड़ी...भरी हुई आँखों से उसने राजन का हाथ थाम लिया और घर वालों को बताने के लिए मोबाइल निकालने लगी। एक दिन का आमंत्रण उसके लिए जीवन भर की खुशियाँ ले आया था।