पहचान

पहचान

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आज हम एक आफिशियल पार्टी थी, वहाँ से गिरीश अपने कुलीग से मिलवाया और आफिसर्स से भी उन आफिसर्स में लेडिज भी थी। सुधा थोड़ी नर्वस भी थी, वो ठहरी हाऊस वाइफ । पार्टी अच्छी रही घर आकर भी गिरीश अपने कुलीग की वाइफ ऋचा भाभी जो कहीं जाब करती थी और बड़ी सज संवर कर आई थी। उसकी तारीफ करें जा रहे थे। पार्टी में भी सबके सामने ये बोल दिया के ऋचा भाभी और राकेश से अरे यार हम तो एक ही कमाई से जैसे-तैसे काम चलाते हैं।

तुम्हारी, ऋचा भाभी की बात ही अलग है। गिरीश घर आ कर भी मोबाईल पर ऋचा के फोटो देख रहा था ,सुधा से कह रहा था यार राकेश की क्या किस्मत है ऋचा जैसी सुन्दर, इंटलिजेंट है। सुधा को लगा मेरी क़ाबलियत, मेरे मेडल, पढ़ाई सब बेकार हो गए क्यों सुधा को ईष्या हुई,आज मैं भी अच्छी पोस्ट पर होती।

मेरी भी अपनी पहचान होती, मगर जब शादी हुई तो गिरीश की माँ बीमार थी, घर की ज़िम्मेदारी सारी सुधा पर डाल दी गई, गिरीश का ये कहना मेरी अच्छी सर्विस है सुधा तुम्हें ज़रुरत नहीं है सर्विस करने की, उसके बाद हर कभी किसी भी सर्विस वाली फेमिली फ्रेंड लेडिज के सामने ये जतलाना की हमारी तो अकेले कमाई से काम चलता है, क्यों ये दोहरा मापदंड है। तब ईष्या होती है उन लेडीज़, काश आज हम इमोशनल न हो कर अपना केरियर बनाया होता तो हमारी भी अपनी पहचान होती। हम भी एक स्टेट्स लिए होते गिरीश के कुलीग हमसे ईष्या करतीं।


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