Arun kumar Singh

Abstract Drama

4  

Arun kumar Singh

Abstract Drama

पहाड़ी चाय

पहाड़ी चाय

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सुबह की हल्की हल्की बारिश की बूंदें उस धीमे चलती कार की खुली खिड़की से अंदर आकर नैना की बंद आँखो से लगातार टकराती जा रही थीं। ऐसा लग रहा था की जैसे वो बूँदें नैना से गुहार लगा रही थी की वो आँखे खोलकर उस पहाड़ी घाटी के सुंदरता को एक बार तो देख ले। मगर वो तो उस पल की याद में खोई हुई थी जब अस्पताल के बेड पर पड़ी अपनी आखिरी साँसे गिनती उसकी माँ ने उससे कुछ ऐसा कह दिया था कि जिससे नैना की बसी बसाई दुनिया में उथल पुथल मच गई थी।

उस रात पूरा परिवार अस्पताल में नैना कि माँ रमावती को घेरे खड़ा था। बेसुध सी पड़ी रमावती के मुँह से बार बार एक ही नाम निकल रहा था,

" नैना, नैना, ..."

सभी परेशान होकर आपस में बात कर रहे थे। किसी ने हड़बड़ाते हुए कहा,

" अरे भई पता करो नैना और सुरेश कहाँ तक पहुँचे, रमावती जी की हालत बहुत ज्यादा बिगड़ गई है "

नैना की खास सहेली प्रिया ने भारी गले से जवाब दिया,

" वो लोग हवाई अड्डे से निकल गये हैं और किसी भी पल यहाँ पहुँच सकते हैं "

अभी कुछ दिनों पहले ही तो रमावती ने बड़े धूमधाम से नैना का सुरेश के संग ब्याह कराया था। नैना और सुरेश शादी के बाद घूमने फिरने के लिए विदेश को निकल गये थे। पर इस बीच जब उन्हे रमावती के सीढ़ीयों से गिरकर चोटिल होने की खबर मिली तो वे अपना घूमना फिरना आधे में छोड़कर वापसी के लिए रवाना हो गये।

अस्पताल आकर जब नैना ने रमावती जी को बेड पर निढाल पड़ा देखा तो वो भागकर आई और रमावती का हाथ अपने हाथों में लेकर भर्राये गले से रोते हुए बोली,

" ये तुम्हे क्या हो गया माँ "

अपने हाथ पर नैना के आँसुओं की छुअन से रमावती होश में आने लगी थी। नैना को अपने पास देखकर रमावती काँपती आवाज़ में बोली,

" रोओ मत बेटा, मेरे जाने का समय हो गया है, तुम्हारा ही इन्तजार कर रही थी, कुछ बोझ सा पड़ गया है मन में, तुम्हे बताये बिना नहीं जा सकती "

नैना अपने हाथों से रमावती के होंठो को बंद करते हुए बोली,

" नहीं माँ ऐसा मत कहो, कहीं नहीं जा रही हो तुम, जल्दी से ठीक हो जाओ फिर जितनी बातें करनी है कर लेना "

रमावती ने एक हाथ से धीमे से नैना का हाथ अपने होंठो से हटाया और दूसरा हाथ प्यार से नैना के माथे पर फेरते हुए बोली, 

 " बेटा हिम्मत रखना और हो सके तो मुझे माफ़ कर देना "

नैना आश्चर्य से रमावती और अपने पिता अजय आनंद को देखने लगी। रमावती के आँखों के कोनों से आँसू की कुछ बूंदें छलक पड़ी। रमावती धीमे आवाज में बोली,

" बेटा, अजय जी तुम्हारे पापा नहीं हैं, तुम्हारे पापा का नाम विजय आनंद है, वो अजय जी के बड़े भाई हैं, तुम्हारे जन्म से तकरीबन आठ महीने पहले हमें लगा था की तुम्हारे पापा की एक रेल दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी, .... उस लाश में भी तो तुम्हारे पिता के ही कपड़े घड़ी बटुआ सब थे, उनके गुजर जाने के कुछ सालों के बाद घरवालों के दबाव में और तुम्हारे सर पर पिता का साया रखने के लिए मैंने और अजय जी ने शादी कर ली लेकिन मेरे मन से तुम्हारे पिता कभी नहीं गए और अजय जी ने भी हमेशा मुझे अपने बड़े भाई की पत्नी के रूप में ही देखा, पर देखो भगवान ने कैसा खेल खेला, जिनको हम सभी ने सालों पहले मरा हुआ मान लिया था, अभी कुछ दिनों पहले ख़बर मिली की वो जिन्दा हैं, उनके दोस्त घनश्याम जी ने अपने आँखों से उन्हें शिमला के बस अड्डे में देखा है पर इससे पहले कि वो उनसे बात कर पाते वो भीड़ में कहीं गुम हो गए, तुम्हारी विदाई के दो रात बाद घनश्याम जी का फ़ोन आया था और उन्होंने बहुत ही आत्मविश्वास से तुम्हारे पिता के बारे में बताया, मेरी ख़ुशी का तो कोई ठिकाना नहीं था, मैं जल्दी से जल्दी नीचे आकर सबको ये खुशखबरी सुनाना चाहती थी, मगर जल्दबाज़ी में मैं सीढ़ियों से फिसलकर गिर पड़ी जिससे मेरी आज ऐसी हालत हो गई है, ...बेटा तुम्हे दुख ना पहुंचे इसीलिए ये बात हमने हमेशा तुमसे छुपा के रखी, पर अब ये बोझ और सहा नहीं जाता, तुम अगर कभी अपने पिता से मिल सको तो उनसे कहना की वो मुझे माफ़ कर दें मैं उनका इन्तज़ार नहीं कर पाई, मैं उनका इन्तज़ार नहीं कर पाई......"

ये कहते कहते रमावती के हाथ बेजान हो कर नैना के माथे से नीचे सरक गए। रमावती दुनिया छोड़ कर जा चुकी थी, नैना और वहां मौजूद लोगों की आँखों से आँसुओं की धार रुकने का नाम नहीं ले रही थी। 

गाड़ी चलाते हुए सुरेश ने जब नैना को भींगते हुए देखा तो उसने परेशान होते हुए कहा,

" अरे बाबा भींग क्यों रही हो, तबियत बिगड़ जायेगी, गाड़ी का शीशा बंद कर लो"

सुरेश की आवाज सुनकर नैना चौंककर अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आ गयी। रमावती के देहांत को छह महीने से ऊपर बीत चुके थे। सुरेश कारोबार का जिम्मा अपने मैनेजर को सौंप कर नैना के साथ उसके पापा की खोज में निकल पड़ा था। दो घंटे से सुरेश गीली सड़क में लगातार कार चला रहा था। अभी शिमला पहुंचने में सौ कुछ किलोमीटर बाकी थे। और इस बीच हलकी बारिश के होते रहने से ठण्ड बढ़ गयी थी ।

अनाथालय में पले बढ़े सुरेश का नैना के अलावा अपना कहने को और कोई नहीं था। कॉलेज में उनका मिलना हुआ था, धीरे धीरे प्यार परवान चढ़ा और पढ़ाई पूरी होते तक दोनों ने साथ जीने मरने की कसमें भी खा लीं। कॉलेज ख़त्म होने के बाद सुरेश ने बहुत ही कम समय में अच्छा खासा कारोबार जमा लिया और जब रमावती को उनके रिश्ते के बारे में पता चला तो उन्होंने भी खुशी खुशी बड़े धूमधाम से उनकी शादी करा दी। पर उनकी खुशियाँ बहुत कम दिनों की मेहमान थीं। रमावती के गुजर जाने के कुछ महीनों के बाद तक उसने देखा की नैना खोई सी रहने लगी है और खुद में घुलती जा रही है। उन्ही दिनों एक दिन सुरेश ने नैना से कहा,

" नैना ऐसे कब तक माँ को याद कर करके आँसू बहाती रहोगी, चलो हिमाचल चलते हैं तुम्हारे पापा को ढूँढने "

नैना की तो मानो मनमांगी मुराद पूरी हो गयी थी, उसने हाँ कर दी। दोस्तों और घरवालों ने उन्हे बहुत समझाने की कोशिश की, की हो सकता है की घनश्याम जी को गलतफहमी हो गई हो, इतने दिनों के बाद, सालों पहले मरा हुआ आदमी जिंदा कैसे हो सकता है। पर सुरेश ने किसी की एक न सुनी। वह कैसे भी करके अपनी नैना की उदासी को दूर कर देना चाहता था। घनश्याम जी से अच्छी तरह जानकारी ले लेने के बाद, नैना के पिता की पुरानी फोटो लेकर वो दोनों हिमाचल के लिए निकल पड़े थे। 

सैलानीयों की गाड़ीयों से भरे सड़क में गाड़ी चलाते चलाते सुरेश का अब जी ऊबने लगा था । तभी उसे आगे सड़क के किनारे एक टिन की चादरों और खपरैल से बनी चाय की दुकान दिखी। उस दुकान के ऊपर बोर्ड पर सफेद रंग से हिन्दी के बड़े बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था " पहाड़ी चाय "। सुरेश ने गाड़ी उस चाय की दुकान के सामने खड़ी कर दी। सुरेश बहुत प्यार से नैना की ओर देखते हुए बोला,

" नैना चलो एक एक कप चाय पी लेते है, पता नही आगे कितनी दूर जाकर दोबारा मौका मिले "

नैना ने मुस्कुराते हुए हामी भर दी। दोनो गाड़ी से निकल कर उस चाय की दुकान के अंदर पहुँचे। एक कमरे वाली झोपड़ी के सामने वाले हिस्से मे दुकान बनी हुई थी। तरह तरह के बिस्किटों से भरे जारों की कतार के पीछे लगभग नैना के ही उम्र की एक लड़की चाय बना रही थी। जब उस लड़की ने नैना और सुरेश को दुकान के अंदर आते देखा तो वो चहकती हुई बोली,

" आओ आओ साहब जी अंदर आओ, मेमसाहब आप भी अंदर आओ, आपलोग थोड़ा अंदर ही बैठना बाहर की तरफ सबकुछ बारिश से गीला हो गया है " 

नैना ने मुस्कुराते हुए उस उस लड़की से कहा,

" बहन दो कड़क चाय बना दे अदरक वाली"

सुरेश ने भी माहौल को खुशनुमा रखने की कोशिश करते हुए नैना की कही बात से बात जोड़ते हुए कहा,

" और साथ में गरमागरम पकोड़े मिल जाए तो मजा ही आ जाए "

चायवाली लड़की ने चहकते हुए जवाब दिया,

" हाँ हाँ क्यों नही साहब जी अभी पाँच मिनट में गरमागरम पकोड़े और चाय तैयार किये देती हुँ "

चुल्हे पर पतीले पे चाय चढ़ाने के बाद उस लड़की ने पकोड़े तलते तलते नैना की ओर देखते हुए पुछा,

" शिमला घूमने जा रही हो मेमसाहब ? "

नैना ने ठंडी साँस छोड़ते हुए जवाब दिया,

" नही, हम एक जरूरी काम से शिमला जा रहे हैं "

थोड़ा रुककर नैना आगे बोली,

" मेरे पापा कई साल पहले खो गये थे, उन्हे कुछ महिनों पहले शिमला में देखा गया है, हमलोग उन्हे ही ढूंढने जा रहे हैं "

चायवाली थोड़ा ठिठक गई, पर वापस अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोली,

" आप चिंता मत करो मेमसाहब आपको आपके बाबा जरूर मिल जायेंगे, अगर मेरे बाबा यहाँ होते तो आपकी कुछ मदद कर सकते थे, उनका तो शिमला रोज का आना जाना था "

सुरेश उनकी बातों को बीच में काटता हुआ बोला,

" तुम्हारे बाबा कहीं बाहर गये हैं क्या ? "

चायवाली, सुरेश और नैना के सामने वाली टेबल पर चाय के कुल्हड़ और पकोड़े का प्लेट रखते हुए बोली,

" क्या बताऊँ साहब जी इस छन्दा की तो किस्मत ही खराब है, पहले तो हमारा घर चला गया, किसी तरह यहाँ झोपड़ी बनाकर रहने लगे तो अब बाबा के, घर पर पैर ही नहीं टिकते "

नैना ने छन्दा की आँखो में झाँकते हुए कहा,

" अच्छा, तो तुम्हारा नाम छन्दा है "

जवाब में छन्दा बस मुस्कुरा दी। नैना और सुरेश चाय खत्म कर, छन्दा को पैसे देकर अपने सफर में आगे बढ़ चले।

दो हफ्ते से अधिक हो चला था, नैना और सुरेश ने शिमला के सैकड़ों लोगों से पूछताछ कर ली थीं। पर उन्हे अब तक विजय आनंद का कोई सुराग नही मिल पाया था। आज भी सुबह जल्दी शुरुआत कर उन्होने बस अड्डे के आसपास के लगभग सारे दुकानों, घरों और खाने पीने के होटलों में खोजबीन कर ली थीं, पर इतनी मेहनत के बावजूद भी उनके हाथ कोई जानकारी नही लगी। इस वक्त उन्हे मायूसी के साथ साथ थकान और भूख भी लगने लगी थी। नैना ने सुरेश से थकी हुई आवाज में कहा,

" सुरेश चलो ना किसी रेस्तराँ में थोड़ी देर बैठते हैं, कुछ देर आराम भी कर लेंगे और कुछ खा पी भी लेंगे "


सुरेश को नजदीक ही एक छोटा सा नास्ते का होटल दिख गया। उस छोटे से होटल में गद्दे वाली आरामदायक कुरसीयाँ लगी हुई थी। नैना ने होटल के अंदर आते ही एक कोने की कुरसी पर बैठ कर अपनी आँखे मूंद ली। उसे सुरेश के लिए बुरा लग रहा था। उसने सोचा कि अपनी नई नई शादी से सुरेश की भी कितनी उम्मीदें रही होंगी पर नैना की वजह से बेचारे को शादी के बाद भी सुख नसीब नही हुआ और यहाँ अलग से दर दर की ठोकरें खानी पड़ रही है। नैना ने जब आँखे खोली तो उसने सुरेश को मुस्कुराता हुआ उसकी ही ओर देखता हुआ पाया। उसे ऐसा लगा मानो उसके बिना कुछ कहे ही सुरेश ने उसके मन की सारी बातें सुन ली हैं और उसकी सारी परेशानीयों को अपनाकर भी सुरेश चेहरे पर सिर्फ मुस्कुराहट और आँखों में बस प्यार है। दोनो के होंठों से एक शब्द तक नही निकल रहा था और वो एक दूसरे की आँखों में खोने से लगे थे। तभी सामने से वेटर की खाँसने की आवाज आई, " ह्म्म्म्म.... ह्म्म्म्म...."। दोनो ने सकपकाकर कर देखा तो सामने खड़े वेटर ने उनसे कहा,

" नमस्ते साब, नमस्ते मेमसाब, क्या लेंगे आडर बोल दिजिए "

नैना ने चाय नास्ते का ऑडर कर दिया। उसके बाद नैना सुरेश से बोली,

" सुरेश तुम्हे नही लगता कि हम पापा की कुछ ज्यादा ही पूरानी फोटो ले आये हैं, हो सकता है आज के दिन पापा अगर कुछ अलग ही दिखते हों "

सुरेश, नैना की हाथों से फोटो अपने हाथों मे ले कर देखता हुआ बोला,

" नैना अब आदमी कि शक्ल बिल्कुल ही तो नही बदल जाती, हाँ आदमी थोड़ा मोटा पतला हो सकता है, बाल कम ज्यादा हो सकते हैं, पर इन्हे देखकर कम से कम अंदाजा तो लग ही जाएगा "

नैना ने हाँमी में सर हिलाते हुए कहा,

" तुम सही कह रहे हो सुरेश, मैं कुछ ज्यादा ही बेचैन हो रही हूँ, अब से हमलोग और अधिक मेहनत करेंगे और ज्यादा से ज्यादा लोगों से पूछताछ करेंगे "

सुरेश ने भी मुस्कुराते हुए हाँमी में सर हिला दिया। तभी वेटर भी ऑडर ले कर आ गया। ऑडर में आई चीज़ें मेज में सजाते वक्त सुरेश के हाथों में रखी फोटो को देखकर वेटर कुछ पल के लिए रुक सा गया। ऑडर मेज पर रखकर वो उत्सुकता से सुरेश कि ओर देखकर बोला,

" साब ये आपके हाथ में किसकी फोटो है, जरा दिखाएंगे मुझे "

सुरेश थोड़ा चौंककर फोटो वेटर के हाथ में देते हुए बोला,

" भाई ये मेरी पत्नी के पिताजी की फोटो है, कई सालो से लापता हैं, कई दिनों से हमलोग शिमला भर में इन्ही को ढूंढ रहे हैं "

फोटो को देखकर वेटर की आँखें फैलने सी लगी थीं। उसने होटल के मैनेजर की ओर देखते हुए आवाज लगाई,

" ओ सोनु भैय्या एक सेकेंड आना जरा यहाँ, देखो तो ये फोटो अपने भोला मास्टर के जवानी की नही लगती ?

मैनेजर, वेटर के पास आकर फोटो को घूरकर देखता हुआ बोला,

" हाँ यार, भोला मास्टर की दाढ़ी साफ करा के अगर अच्छे कपड़े पहना दो, और थोड़ी चेहरे पर चमक आ जाए तो थोड़े थोड़े ऐसे ही लगेंगे "

नैना और सुरेश इतना सुनते ही अपनी भूख और थकान को भूल चुके थे और उनकी आँखों मे एक चमक सी आ गई थी। वेटर ने भी तभी सुरेश की कही बातें अपने मैनेजर से बोल दीं। नैना लगभग मिन्नतें करती सी बोली,

" कहाँ मिलेंगे ये आपके भोला मास्टर, क्या आप हमलोगों को इनसे मिलवा सकते हैं ? "

वेटर जैसे कुछ बोलने के लिए मुँह खोलने वाला था, नैना और सुरेश की आँखें उसके चेहरे पर आकर टिक गई। पर तभी पीछे से मैनेजर ने वेटर से आँखों ही आँखों में कुछ इशारा किया। वेटर अपना भाव बदलता हुआ बोला,

" साहब जी मुझे तो कुछ ख़ास पता नहीं, मैनेजर बाबू ही आपको भोला मास्टर की कोई जानकारी दे पाएँगे "

अबकी तीन जोड़ी आँखें मैनेजर की ओर घूम गईं। कुछ पल के लिए मैनेजर सकपका गया पर तुरंत अपने आप को संभालता हुआ बोला,

" हाँ हाँ क्यों नहीं, आपलोग बस मुझे बस थोड़ा सा समय दीजिये, मैं पता करता हूँ, तब तक आपलोग नास्ता कर लीजिये "

इतना कहकर वेटर और मैनेजर अपने चेहरों में अजीब सा भाव लिए सुरेश और नैना से दूर चले गए। नैना और सुरेश ने किसी तरह से अपना नाश्ता खत्म किया, और उसके बाद सीधा होटल के मैनेजर के पास लगभग भागते हुए गए। मैनेजर के चेहरे पर भी एक अजीब सी सकपकाहट थी। वह देख रहा था कि नैना और सुरेश किस तरह जल्दबाजी में उसकी तरफ बढ़े आ रहे हैं, पर ना जाने क्यों वह उनसे नजरें चुरा रहा था। मैनेजर के पास आते वक्त उसके हाव भाव देखकर सुरेश को किसी अनहोनी का थोड़ा-थोड़ा अंदेशा सा होने लगा था। पर नैना तो अपने पापा को ढूंढ पाने की उम्मीद भर से ही मानो भावनाओं में बह सी की गई थी। इससे पहले कि सुरेश मैनेजर से कुछ बोल पाता, नैना बिल्कुल बेचैन सी होते हुए मैनेजर से बोली,

" भैया आप कुछ बताने वाले थे मुझे मेरे पापा के बारे में, क्या आपको और कोई जानकारी मिल पाई, आपको जो भी पता है या फिर आपके पास जो भी जानकारी है आप मुझे जल्दी से जल्दी बता दीजिए "

मैनेजर सुरेश की ओर देखते हुए थोड़ा हिचकिचाता हुआ बोला,

" सर चलिए सामने वाले सोफे पर बैठ कर बात करते हैं, मैडम आप भी चलिए "

मैनेजर की कुर्सी के पास ही एक छोटा सा सोफा रखा हुआ था। उस सोफे में सुरेश और नैना दोनों बैठ गए। मैनेजर के हाव-भाव और बात करने के तरीके को देखकर अब नैना का भी मन बैठने लगा था। किसी बुरी खबर के भय से नैना ने अपने आप को संभालने के लिए अपना सर सुरेश के मजबूत कंधों पर टिका दिया था। सुरेश ने भी मजबूती से नैना का हाथ अपने हाथों में ले लिया। मैनेजर ने एक गहरी सांस ली और फिर बोला,

" मैडम, भोला मास्टर हमारे यहां पिछले तीन चार सालों से काम कर रहे थे, बहुत ही नेक आदमी थे, हमारे होटल में वो चाय पकोड़े हल्के-फुल्के नाश्ते वगैरा बनाया करते थे, वैसे तो वो काफी भले आदमी थे पर बहुत चुप चुप रहा करते थे और बहुत ही कम बात करते थे, बहुत पूछने पर उन्होंने बताया था कि वह शिमला के पूरब में पब्बार नदी के किनारे किसी तालसोना नाम के गाँव में रहते थे, पर इधर छः महीने से वो हमारे होटल पर नहीं आ रहे थे, जब हमलोगों ने उनके बारे में पता करने की कोशिश की तो तालसोना के ही रहने वाले एक आदमी से पता चला कि भोला मास्टर और उनकी बेटी पब्बार नदी में आए एक बरसाती उफान में बह गए..."

इससे आगे और कुछ मैनेजर से बोला नही गया। उसकी आवाज फंसने से लगी थी। नैना ने सुबकते हुए, अपने चेहरे को सुरेश के कंधों पर छुपा लिया। मैनेजर थोड़ी हिम्मत बटोर कर फिर से नैना और सुरेश की ओर देखते हुए बोला,

" मैडम आप हिम्मत मत हारिए आप एक बार तालसोना जाकर वहां के लोगों से पूछ कर देखिए क्या पता भोला मास्टर और उनकी बेटी की कोई खबर मिल गई हो "

सुरेश बिल चुका कर नैना को संभालते हुए भारी मन से होटल के बाहर ले आया। उसने नैना को ढाँढस बंधाते हुए कहा,

" नैना देखो होनी को तो कोई टाल नहीं सकता, पर तुम अभी हिम्मत मत हारो, चलो हम लोग तालसोना जाकर पता करते हैं शायद तुम्हारे पापा की कोई खबर मिल गई हो"

अगली सुबह नैना और सुरेश तालसोना के लिए निकल गए थे। आधे एक घंटे के अंदर वो दोनों शिमला के पूर्व में पब्बार नदी के किनारे उस छोटे से गाँव तालसोना पहुँच चुके थे। पहाड़ी नदी के किनारे बसे उस छोटे से गाँव में बहुत ही कम घर थे। आबादी तो ना के बराबर लग रही थी। घरों के बाहर सड़क पर खेल रहे इक्का दुक्का बच्चों के अलावा कोई दिख भी नही रहा था। उन्ही बच्चों ने बताया कि गाँव के ज्यादातर लोग काम धाम के सिलसिले में गाँव से बाहर चले गए थे और गाँव की औरतें घर के काम धाम में व्यस्त थी। नैना और सुरेश ने एक-एक कर काफी घरों की औरतों से पूछा कि क्या वह उनको भोला मास्टर और उनकी बेटी के बारे में कोई जानकारी दे सकती हैं। गाँव की औरतों ने सुरेश और नैना की बातों को सुनकर बड़े ही अजीब तरीके से उनसे बात करने से मना कर दिया और उनके मुंह पर ही दरवाजा बंद कर दिया। गाँव के कुछ बुजुर्ग लोगों से भी नैना और सुरेश ने बात करनी चाही, पर उन लोगों ने जब नैना और सुरेश के मुंह से भोला मास्टर का नाम सुना तो उन लोगों ने भी उनसे बात करने से मना कर दिया। नैना और सुरेश को तालसोना वालों का यह व्यवहार बड़ा अटपटा लग रहा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आमतौर पर मिलनसार पहाड़ी लोग उनसे इतनी रुखाई से क्यों बात कर रहे थे। तभी उन्हें कुछ दूर एक पैंतीस चॉलिस साल का मोटा सा आदमी अपनी मोटरसाइकिल पर आता हुआ दिखा। उस आदमी ने अपनी मोटरसाइकिल बिल्कुल नैना और सुरेश के बाजू में लाकर खड़ी कर दी। उस आदमी ने अकड़ भरे अंदाज में सुरेश की ओर घूरते हुए पूछा,

" क्या बात है बाबू क्यों हमारे गांव के लोगों को परेशान कर रहे हो किसे ढूंढ रहे हो और क्यों ढूंढ रहे हो "

सुरेश उस आदमी के बिना वजह के अक्खड़पन पर हैरान था। तभी नैना उस आदमी को अपने पापा की फोटो दिखाते हुए बोली,

" हम किसी को परेशान नहीं कर रहे हैं भैया, हम तो खुद ही परेशान हैं, आप यह जो फोटो देख रहे हैं ना यह मेरे पापा की फोटो है जो कि कई सालों पहले लापता हो गए थे, उन्हीं को ढूंढने के सिलसिले में हम लोग तालसोना आए हैं, पर यहां गांव में कोई हमसे बात ही नहीं करना चाह रहा है "

 उस आदमी ने दोबारा बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा,

" देखिए मैडम आपको जिसको ढूंढना है ढूंढिए पर इस तरह घर-घर जाकर हमारे गाँव की भोली भाली औरतों को परेशान मत कीजिए, वैसे आप जो यह फोटो लेकर घूम रही है ना ये आदमी यहां का रहने वाला नहीं था, ये तो बाहर कहीं से उठ कर आया था और इसने गाँव की कुछ जमीन हड़प ली थी, वो आप लोगों ने गाँव घुसते वक्त गांव के बाहर जो बाएं तरफ टूटी सी झोपड़ी देखी होगी उसी झोपड़ी में रहते थे बाप बेटी, बह गए दरिया में, भगवान भला करे "

सुरेश को उस आदमी के बात करने के तरीके पर बहुत गुस्सा आ रहा था पर किसी तरह उसने अपने गुस्से को पी लिया और नैना का हाथ पकड़कर उस टूटी हुई झोपड़ी की तरफ बढ़ गया जहां वह मोटा आदमी इशारा कर रहा था।

वहां पहुंचकर सुरेश और नैना ने देखा कि वहां उस टूटी फूटी झोपड़ी के पास एक बुजुर्ग आदमी वहां बिखरे सामानों को चुनकर एक जगह इकट्ठा कर रहा था। नैना और सुरेश को अपने पास आता देख वह बुजुर्ग आदमी थोड़ा ठिठक सा गया। नैना उस बुजुर्ग आदमी से मिन्नतें करती हुई बोली,

" बाबा डरिए मत, मैं कुछ पूछना चाहती हूं आपसे, क्या मैं पूछ सकती हूं? "

वह बुजुर्ग आदमी हिम्मत जुटाता हुआ बोला,

" माफ करना बेटी वह ऐसा है ना कि जिसके घर में ही राक्षस हो उसे तो हर किसी से डर लगता है, वैसे क्या पूछना चाहती हो? "

इस बार सुरेश ने उस बुजुर्ग आदमी की ओर देखते हुए कहा,

" बाबा यह मेरी पत्नी नैना है, कई सालों पहले इसके घर वालों को लगा था कि इसके पापा का देहांत हो गया है, पर अभी कुछ माहिनों पहले हमें खबर मिली कि इसके पापा को शिमला के आसपास देखा गया है, हमारे पास इसके पापा की एक पुरानी फोटो है जिसे दिखाकर शिमला में खोजबीन के दौरान एक होटल में पता चला कि इसके पापा से मिलती जुलती शक्ल वाला एक आदमी जिनका नाम भोला मास्टर था वह इसी गांव तालसोना में रहते थे हम लोग उन्हीं की खोज में भटक रहे हैं पर यहां तो गांव वाले हम लोगों से बात भी नहीं करना चाहते और तो और एक मोटरसाइकिल में बैठा मोटा आदमी है वह तो हम लोगों से बदतमीजी ही करने लगा "

" अरे वो लोग तुमसे कैसे बात करेंगे बेटा, उन लोगों को तो उस मोटरसाइकिल वाले मोटे आदमी 'भदरा' ने डरा धमका के रखा हुआ है कि भोला मास्टर और उसकी बेटी के बारे में गांव में कोई किसी से बात ना करें ",

 एक व्यंगात्मक हंसी के साथ उस बुजुर्ग आदमी ने कहा। बुजुर्ग ने दुखी होकर आगे कहा,

"इस गुंडे भदरा से पूरे गांव के लोग परेशान हैं, और क्या बताऊं बेटा जाने किस जन्म का पाप था जो ये राक्षस मेरे ही घर पैदा हुआ, ये भदरा और कोई नहीं, मेरा ही बेटा है "

नैना भय से कांपती हुई उस बुजुर्ग से बोली,

" बाबा क्या भदरा ने बोला मास्टर और उनकी बेटी के साथ कुछ बुरा कर दिया है? "

उस बुजुर्ग हॉमी में सर सर हिला दिया और फिर नैना के हाथों से उसके पापा की पुरानी तस्वीर को अपने हाथों में लेकर गौर से देखते हुए कहा,

" बेटा चाहे कोई माने या ना माने यह फोटो तो जरूर भोला मास्टर की ही है, बड़े भले आदमी थे, अच्छे खासे पढ़े-लिखे भी थे, पर जाने किस कारण से इस बीहड़ में आकर रहना चाहते थे, ऐसा लगता था मानो जमाने से भागना चाह रहे थे, होगा कोई दुख उनका अपना, उन्होंने कभी बताया नहीं और मैंने भी कभी पूछा नहीं, मुझे तो पहली नजर में ही वह बहुत भले आदमी लगे थे, तभी तो मैंने अपनी जमीन का यह टुकड़ा उनको रहने के लिए दे दिया था, यही झोपड़ी बनाकर रहते थे हमारे भोला मास्टर और उनकी बेटी, पर इस पापी भदरा की नजर इस जमीन पर कब पड़ गई मुझे पता ही नहीं चला, वो चाहता था कि इस जमीन को मैं उसे बेचने दूं, पर जब मैंने खुद ही भोला मास्टर को यहां बसाया था तो मैं कैसे उन्हें बेघर कर सकता था, ये सब इस पापी भदरा से सहा नहीं गया, उसने रातों-रात जाने कैसी दुर्गत कर दी भोला मास्टर और उनकी बेटी की, और मैंने तो सुना है कि उसी ने मारपीट कर उन्हें दरिया में फिकवा दिया और ये धमकी भी दी है कि अगर शिमला तालसोना के आसपास भी दोनों बाप बेटी दिखे तो दोनों को जान से मरवा देगा "

नैना लगातार सुबकती जा रही थी पर सुरेश उस बुजुर्ग की बातों को बड़े ही ध्यान से सुन रहा था। बुजुर्ग की आखिरी बात ने सुरेश के मन में एक उम्मीद जगा दी थी। सुरेश अपनी आंखों में उम्मीद की चमक लिए उस बुजुर्ग से बोला,

" बाबा मतलब भदरा ने उस दिन भोला मास्टर और उनकी बेटी को जान से नहीं मारा था, भोला मास्टर अभी भी जिंदा हो सकते हैं "

बुजुर्ग अचरज जताते हुए नैना और सुरेश से बोला,

" हाँ हो सकता है क्योंकि उन दोनों का मृत शरीर तो किसी ने नहीं देखा, मगर उस दिन के बाद से आज तक महीनों बीत गए पर उन लोगों को दोबारा किसी ने यहां देखा नहीं "

सुरेश उस बुजुर्ग का हाथ अपने हाथों में लेकर उसकी आंखों में झांकता हुआ बोला,

" बाबा क्या आप हमारी थोड़ी और मदद कर सकते हैं, क्या आपने जो बातें हम लोगों को बताई, वही बात पुलिस को भी बता सकते हैं, हम लोगों की काफी मदद हो जाएगी "

बुजुर्ग ने झिझकते हुए अपना हाथ सुरेश के हाथों से छुड़ा लिया और बोला,

" मुझे माफ कर दो बेटा पर मैं ऐसा नहीं कर पाऊंगा, यह भदरा अच्छा बुरा पापी, चाहे जैसा भी हो, पर यह मेरा इकलौता लड़का है, मेरा पूरा परिवार तबाह हो जाएगा अगर भदरा को पुलिस उठाकर ले गई, तुम लोगों का दुख देखकर मैंने तुम्हारी इतनी मदद कर दी, पर इससे आगे और कुछ कर पाना मेरे बूते का नहीं है बेटा, मुझे माफ कर दो "

नैना और सुरेश निराश होकर अपने होटल वापस लौट आए थे। उन्हें ऐसा लग रहा था कि मानो अपनी मंजिल के इतने पास आकर भी वह अपनी मंजिल तक पहुंच नहीं पाए और वो हार गए। नैना भी बुत बनकर बैठी हुई थी। काफी दिन हो गए थे उन दोनो को शिमला की गलियों में, पहाड़ों में, वादियों में, विजय आनंद की खोज में घूमते घूमते और इस बीच घरवाले भी बार बार उनसे लौट आने की जिद कर रहे थे। कमरे में काफी देर तक सन्नाटा पसरा रहा। नैना और सुरेश दोनों अपने ही विचारों में खोए हुए थे। तभी नैना ने सन्नाटे को चीरते हुए आवाज ऊंची करके सुरेश से कहा,

"सुरेश हम लोग कल की सुबह घर लौट चलते हैं, शायद मेरे भाग्य में अपने पापा से मिलना लिखा ही नहीं है, तभी तो जब से पैदा हुई तब से लेकर आज तक मैंने उन्हें कभी देखा ही नहीं "


नैना की बातें सुनकर सुरेश ने नैना को समझाना चाहा,

" नहीं नैना ऐसी कोई बात नहीं है, हम लोग कुछ दिन और रुक कर और कोशिश करते हैं तुम्हारे पापा को ढूंढने की "

नैना तेजी से सुरेश के पास जाकर अपने नाजुक हाथों से सुरेश के होठों को बंद करते हुए बोली,

" नहीं सुरेश अब कुछ और मत बोलना, तुम्हें मेरी कसम, कल की सुबह हम लोग वापस घर लौट जाएंगे... "

इतना कहते हुए नैना, सुरेश से लिपटकर, फूट-फूट कर रोने लगी। सुरेश ने भी नैना को अपनी बाहों में भर लिया। अब उस कमरे में सन्नाटे की जगह दो आवाजों ने ले लिया था एक थी नैना की सुबकती सिसकियों की और दूसरी सुरेश के प्यार भरी थपकीयो की।

नैना और सुरेश को शिमला से निकले हुए कई घंटे बीत चुके थे। सुरेश को गाड़ी चलाते चलाते थकान महसूस होने लगी थी। नैना भी काफी देर से देख रही थी कि सुरेश थका थका सा लग रहा है। नैना ने सुरेश को टोकते हुए कहा,

" सुरेश कुछ देर में उस छंदा चाय वाली की दुकान पहुंचने वाली है, चलो ना कुछ देर चाय पीकर आराम कर लेते हैं "

सुरेश ने भी हामी भर दी। अभी छंदा चाय वाली का दुकान कुछ सौ मीटर दूर थी। गाड़ी एक से रफ्तार में आगे बढ़ती जा रही थी। बिल्कुल छंदा चाय वाली की दुकान के पास आकर उन्होंने देखा कि कुछ लोगों की भीड़ लगी हुई थी। थोड़ा और पास जाने पर सुरेश और नैना ने देखा कि ये छंदा ही थी जो कि बेतहाशा चीख-पुकार मचाते हुए इधर-उधर बदहवास होकर भाग दौड़ कर रही थी और पास ही एक आदमी घायल पड़ा हुआ था। आसपास कई लोग खड़े थे पर उनमें से कोई भी छंदा की मदद नहीं कर रहा था। सुरेश ने सड़क के दोनों तरफ से आती गाड़ियों का जायजा लेकर अपनी गाड़ी छंदा के पास में ले जाकर रोक दी। गाड़ी से उतरते सुरेश और नैना को देखकर छंदा उनके पास भागते हुए आई और गिड़गिड़ाने लगी,

" मेरे बाबा को बचा लो मेमसाहब, मेरे बाबा को बचा लो बाबू साहब, देखो ना किसी गाड़ी ने मेरे बाबा को टक्कर मार दी है, बाबा के माथे पर कितनी चोट लग गई है, कितना खून बह रहा है, इनको जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुंचाना होगा बाबू साहब, मेरी मदद कर दो बाबू साहब "

नैना ने तुरंत छंदा को संभाल लिया। सुरेश ने भी छंदा को समझाते हुए कहा,

" तुम चिंता मत करो छंदा हम तुम्हारे बाबा को कुछ नहीं होने देंगे हम लोग ले चलेंगे तुम्हारे बाबा को अस्पताल तुम हिम्मत रखो"

सुरेश ने देखा कि बरसात के पानी से भरे एक छोटे से गड्ढे के बगल में पड़े छंदा के बाबा दर्द से कराह रहे थे। सुरेश उन्हें संभाल कर उठाते हुए गाड़ी तक ले जाने की कोशिश करने लगा। इतने में सुरेश की जेब से उसका मोबाइल निकलकर उसी छोटे से गड्ढे में गिर गया। यह देख पास खड़ी नैना ने जल्दी से सुरेश के मोबाइल को पानी से निकालकर अपनी साड़ी से पौंछ कर वापस सुरेश की जेब में डाल दिया। छंदा के बाबा को गाड़ी में बैठाने के बाद वो लोग जल्दी ही अस्पताल पहुंच गए। छंदा का रो रो कर बुरा हाल हो गया था। छंदा के बाबा के खून से सने सर और चेहरे में बहुत गंभीर चोट थे और उनका खून भी बहुत तेजी से बह रहा था। जब वो लोग अस्पताल के अंदर पहुंचे तब छंदा के बाबा की बुरी हालत देखकर डॉक्टर ने भी तुरंत इलाज शुरू कर दिया। डॉक्टर ने नैना, सुरेश और छन्दा को कमरे से बाहर जाने को कह दिया। बाहर निकल कर नैना सुरेश और छन्दा तीनों अस्पताल के कमरे के बाहर लगी बेंच पर बैठे गए। बाहर भारी बरसात होने लगी थी। तभी नैना के मोबाइल पर अजय आनंद का कॉल आने लगा। नैना ने फोन उठा लिया। अजय आनंद नैना से उसके और सुरेश का हाल चाल जानना चाह रहे थे। पर मोबाइल के नेटवर्क में गड़बड़ी होने के कारण उनकी बात सही से हो नहीं पा रही थी। आते जाते नेटवर्क के बीच नैना ने कोशिश की कि वह अजय आनंद को बता दें कि किसी के इलाज के सिलसिले में वो और सुरेश, थानेसर सदर अस्पताल आए हुए हैं। पर इसी बीच फोन भी कट गया और नैना के मोबाइल की बैटरी भी खत्म हो गई। ठीक तभी अस्पताल के कमरे का दरवाजा खुला और अंदर से डॉक्टर बाहर आया। डॉक्टर बाहर आकर सुरेश के पास आता हुआ बोला,

" देखिए मरीज की हालत बहुत खराब है, आगे का इलाज करने से पहले हमें मरीज को तुरंत खून चढ़ाना पड़ेगा, मरीज के ब्लड ग्रुप का खून भी बहुत ही मुश्किल से मिलता है, एबी नेगेटिव, अगर आप लोग कुछ व्यवस्था कर सकते हैं तो जल्दी कर दीजिए वरना इनका बचना मुश्किल है "

डॉक्टर के मुंह से यह सब सुनकर छंदा बिलख बिलख कर रोने लगी। छंदा बदहवास होती हुई बोली,

" डॉक्टर साहब अगर बहुत मुश्किल से मिलता है ये ब्लड ग्रुप तो मैं कहां से ढूंढ के लाऊंगी, मेरा ब्लड ग्रुप भी तो ए पॉजिटिव है "

नैना ने छंदा को टोकते हुए कहा,

" घबराओ मत बहन मेरा ब्लड ग्रुप एबी नेगेटिव है "

यह सुनकर छंदा के चेहरे पर सुकून के कुछ भाव आ गए। डॉक्टर भी खून लेने से पहले नैना की जांच करने के लिए उसे लेकर एक दूसरे कमरे में चले गए। अब उस बेंच पर बस सुरेश और छंदा ही रह गए थे। सुरेश शांत बैठा हुआ था पर छंदा के लाल हो चुके आंखों से आंसूओं की धारा का रुक रुक कर बहना बंद नही हुआ था। थोड़े समय के बाद नैना वापस उन लोगों के पास आ गई। छंदा और सुरेश ने आँखों ही आँखों में नैना से पूछा "सब कुछ ठीक तो है ना"। नैना ने भी अपनी पलकों को हल्के से गिराते हुए अपने चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कान के साथ उनको आश्वस्त कर दिया कि सब कुछ ठीक ही है। सुरेश के बगल में बैठते हुए नैना ने पूछा,

" सुरेश क्या तुम्हारी पापा से बात हुई है, पापा मुझे कॉल कर रहे थे पर नेटवर्क ठीक नहीं था और बात हो नहीं पाई, और इसी बीच देखो ना मेरी मोबाइल का चार्ज भी खत्म हो गया "

यह सुन जब सुरेश ने अपनी मोबाइल पर नजर डाली तो उसने देखा की उसका मोबाइल तो काम नहीं कर रहा था। थोड़ा सोचने पर उसे याद आया कि पानी भरे उस गड्ढे से निकालने के बाद उसने एक बार भी अपने मोबाइल का इस्तेमाल ही नहीं किया था। अंदर पानी चले जाने के कारण उसका मोबाइल काम नहीं कर रहा था। सुरेश, नैना से बोला

" नैना मेरा मोबाइल खराब हो गया है, तुम मुझे अपना मोबाइल दे दो मैं उसे चार्ज करने की कुछ इंतजाम करता हूँ "

उन तीनों को उस बेंच पर बैठे बैठे कुछ घंटे बीत चुके थे। सफर की थकान से थके नैना और सुरेश को पता ही नहीं चला कि कब उनकी आंख लग गई। एक किनारे में चुपचाप बैठी छंदा कभी उन दोनों को देखती तो कभी अस्पताल में भर्ती लोगों के परिजनों को इधर-उधर होते देखती। तभी अचानक दरवाजे के खुलने की आवाज से नैना और सुरेश जाग गए और दरवाजे से बाहर निकल रहे डॉक्टर पर नैना सुरेश और छंदा की नजरें जम सी गई। डॉक्टर की मुख मुद्रा बहुत गंभीर थी। वह उनके पास आकर बोला,

" आपके मरीज को होश तो आ गया है मगर अभी वह खतरे से पूरी तरीके से बाहर नहीं है, जब तक ये भारी बरसात रुक नहीं जाती हम उनको किसी दूसरे अस्पताल भेज भी नहीं पाएंगे, हमारी तरफ से हम जो कर सकते थे हमने कर दिया है, आप लोग चाहे तो उनसे जाकर अभी मिल सकते हैं "

कमरे के अंदर बेड पर छंदा के बाबा शांत लेते हुए थे। उनके चेहरे को पट्टियों ने ढक रखा था। उन पट्टियों के बीच से झांकती उनकी दो आँखों ने जब छंदा को दो अजनबी लोगों के साथ अपने पास आता देखा उनमें खुशी के साथ एक अचरज का भी भाव आया। छंदा उनकी आंखों को देखकर उनकी उलझन भाँप गई थी। उसने अपने बाबा से मुस्कुराते हुए कहा,

" बाबा इन बाबू साहब और मेम साहब ने हमारी मदद की और आपको अस्पताल तक पहुंचाया है, आपके ब्लड ग्रुप का खून तो शायद मैं ढूंढ भी नहीं पाती मगर इन्हीं मेम साहब ने आपको अपना खून देकर आपकी जान बचाई, और तो और आप को अस्पताल में भर्ती करवाने के बाद भी ये लोग वापस नहीं गए, ये मेरे साथ रहकर आपके होश में आ जाने का इंतजार कर रहे थे "

छंदा के बाबा ने अपने हाथों को आहिस्ते से जोड़कर उनका धन्यवाद देना चाहा। तभी सुरेश ने उनकी ओर देखते हुए कहा,

" अरे अरे आप यह क्या कर रहे हैं आपको अभी आराम करना चाहिए "

कुछ सोचते हुए छंदा के बाबा ने छंदा, सुरेश और नैना को अपने बगल में आकर बैठने के लिए इशारा किया। वे तीनों छंदा के बाबा के पास आकर बैठ गए। छंदा के बाबा काँपती हुई आवाज में नैना और सुरेश की ओर देखते हुए बोले,

" मैंने डॉक्टर साहब को बात करते सुना है, मेरी साँसो की डोर कभी भी टूट सकती है, इसलिए मैं आपसे कुछ विनती करता हूं, मैंने अपनी इस बेटी के साथ बहुत नाइंसाफी की है, मेरे जाने के बाद मेरी बिटिया बिल्कुल बेसहारा हो जाएगी, क्या आप इसको इसके असल पिता के पास पहुंचाने में मेरी मदद करेंगे "


नैना सुरेश और छन्दा की आंखों की पुतलियां आश्चर्य से फैल गई थी। छन्दा के बाबा ने कहना जारी रखा,

" छंदा असल में मेरे छोटे भाई की बेटी है, हम लोग हालात के मारे हुए लोग हैं, काफी सालों पहले की बात है मैं, मेरी पत्नी, मेरा छोटा भाई और मेरे माता-पिता एक खुशहाल जीवन जी रहे थे, हमारे घर में कमला नाम की एक लड़की काम करती थी, एक बार मैं दफ्तर से घर लौटने के लिए रेलवे स्टेशन पर बैठा ट्रेन का इंतजार कर रहा था, तभी कहीं से पुलिस से भाग रहा एक गुंडा मेरे पास आ गया, उसने चाकू की नोक पर मेरे कपड़े बटुए घड़ी को उतरवाकर मुझे पहनने के लिए अपने पहने कपड़े दे दिए और मेरे कपड़े वगैरह उसने पहन लिए, मैंने भी चाकू के डर से जैसा उसने कहा वैसा कर भी दिया, पर उसके बाद वो धक्का देकर मुझे सामने से आती ट्रेन के आगे फेंक देने की कोशिश करने लगा, मैंने किसी तरह अपनी जान बचाकर वापस उसे धक्का दे दिया ,और इसी सब में वह किसी तरह सामने आती ट्रेन के आगे पटरियों में गिर पड़ा, कुछ लोगों ने दूर से यह सब कुछ छोटे हुए देख लिया था और तभी वह लोग पकड़ो पकड़ो, खून कर दिया वगैरा चिल्लाते हुए मेरी तरफ भाग भाग कर आने लगे, मैं बहुत ही ज्यादा डर गया था मैंने भी आव देखा न ताव दूसरे प्लेटफॉर्म से छूट रही ट्रेन पर लपक कर चढ़ गया और उन लोगों की पहुंच से दूर हो गया... अक्ख.. अक्ख.. अक्ख.. "

एक हल्की सी खाँसी ने छंदा के बाबा की बातों को बीच में ही रोक दिया। छंदा अपने बाबा को समझाती हुई बोली,

" रहने दो बाबा, तुम अभी इतनी सारी बातें मत करो, पहले थोड़ा ठीक हो जाओ फिर हमें सबकुछ बता देना "

मगर छंदा के बाबा ने इनकार में सर हिलाते हुए कहना दोबारा शुरु कर दिया, 

" नहीं बेटी आज मुझे बात पूरी कर लेने दो, अगर ये बात बताये बिना मैं चला गया तो उपरवाले को क्या मुँह दिखाऊँगा,...

पुलिस के डर से मैं काफी वक्त तक इधर-उधर भटकता रहा घर वापस लौटने की मेरी हिम्मत नहीं हुई, कुछ सालों बाद जब आखिरकार मैं हिम्मत जुटाकर घर वापस गया तो वहां मैंने देखा कि मेरी बीवी और मेरे भाई ने शादी कर ली है और उनकी एक छोटी सी बेटी भी है, मैं यह सब काफी दूर से देख रहा था और मेरे हुलिए के वजह से आसपास के लोगों ने मुझे पहचाना भी नहीं, वहीं कुछ लोगों ने मुझे बताया कि उनकी नजरों में मैं मर चुका था, उस गुंडे की मृत देह को गलती से उन्होंने मेरा समझ लिया था, मैंने उनकी जिंदगी से दूर चला जाना ही ठीक समझा, मैं अपने घर से काफी दूर एक गांव में आकर रहने लगा, उसी गांव में संयोग से एक दिन मुझे मेरे घर में काम करने वाली लड़की कमला बहुत बुरी हालत में मिली, वो अपने किसी रिश्तेदार से मिलने आई थी, पहले तो कमला मुझे देखकर बुरी तरीके से चौंक गई पर फिर उसने मुझे बताया कि वो और मेरा छोटा भाई आपस में बहुत प्रेम करते थे, पर मेरी मृत्यु की खबर के बाद जब मेरे परिवार वालों को मेरे भाई और उसके प्रेम की भनक लगी तो उन्होंने कमला को काम से निकालकर वापस उसके गांव भेज दिया, कमला भी चुपचाप अपने गांव चली आई पर उसने किसी को भी नहीं बताया कि उसके कोख में उसके प्यार की निशानी आ चुकी थी, छंदा, कमला और मेरे छोटे भाई की ही बेटी है, मुझसे मिलने के कुछ दिनों के भीतर ही कमला का बीमारी की वजह से देहांत हो गया और उसने जाते-जाते  छंदा की जिम्मेदारी मुझे सौंप दी, तब से हम दोनों दर ब दर भटकते रहे, मैं आपसे विनती करता हूं कि मेरे चले जाने के बाद मेरी इस बिटिया को इसके असली पिता के पास पहुंचा दीजिएगा "

नैना और सुरेश की आँखों से आँसुओं की धारा झरझर कर बह रही थी। छंदा और उसके बाबा को भी उन्हें देखकर काफी आश्चर्य हो रहा था। सुबकती हुई नैना, छंदा के बाबा के पट्टी लगे गालों पर आहिस्ता से हाथ फेरती हुई बोली,

" बाबा क्या आपका नाम विजय आनंद है?"

इस बार तो छंदा के बाबा और भी ज्यादा चौक गए। उनके मुँह से बस इतना ही निकल पाया,

" यह बात आपको कैसे पता चली "

आँसुओं के भार से पलके बंद करती हुई नैना बोली,

" पापा मैं आपकी बेटी नैना हूं जब आप चले गए उस वक्त मेरी माँ पेट से थी, यह बात सच है की माँ और पापा... मेरा मतलब आपके छोटे भाई अजय आनंद ने घरवालों के दबाव में शादी कर ली मगर माँ के मन में हमेशा आप ही बसे रहे और आपके भाई ने भी माँ को हमेशा अपने बड़े भाई की पत्नी के ही रूप में देखा, मुझे तो आपके होने का भी पता नहीं था, घर वालों ने मुझे कभी आपके बारे में कुछ भी नहीं बताया था, अभी कुछ महीनों पहले आपके एक दोस्त ने शिमला में आपको देखा था और उसकी खबर माँ को दे दी थी, पर इससे पहले की माँ किसी को इस बारे में बताती मां का एक एक्सीडेंट हो गया और माँ अस्पताल में भर्ती हो गई, अपने गुजर जाने के कुछ घड़ी पहले माँ ने यह सारी बातें मुझे बताई थी, मैं और मेरे पति सुरेश हम लोग इतने दिनों से आपकी ही तलाश कर रहे थे "

विजय आनंद की पट्टियां उसके आंखों से निकलते आंसुओं से गीली हो रही थी। विजय आनंद ने रूंधे गले से कहा,

" मेरी रमा मुझे छोड़ कर चली गई..., एक मेरी गलती की वजह से कितनी जिंदगियां खराब हो गई, अब यह जिंदगी और सही नहीं जाती "

इस बार काफी देर से चुपचाप खड़ी छंदा बोली,

" नहीं बाबा आप ऐसा बिल्कुल भी मत सोचिए, जो कुछ भी हुआ सब कुछ हालात ने किया, इसमें आपकी कोई भी गलती नहीं थी, आप हमें छोड़कर कहीं नहीं जा सकते, आपको हम लोगों के साथ खुशी-खुशी जीना होगा, इतने सालों से मेम साहब अपने पापा से दूर रही हैं, आपको उनका इतने सालों के प्यार का बकाया चुकाना होगा, आप कहीं नहीं जा सकते आपको ठीक होना होगा "

विजय आनंद की आंखों में अब शांति का भाव था। नैना और छंदा भी आपस में गले लग कर एक दूसरे से अपने जज्बातों को साँझा कर रही थी। सुरेश को भी इस बात का संतोष था कि आखिरकार नैना अपने पापा को ढूँढने में सफल हो चुकी थी।

अगली सुबह विजय आनंद बेड पर पड़े आराम कर रहे थे। एक ही रात में उनकी हालत में काफी सुधार आ गया था। नैना सुरेश और छंदा अस्पताल के बाहर बने एक चाय की दुकान में चाय पी रहे थे तभी उन्होंने देखा कि सामने एक बड़ी सी गाड़ी आकर रुकी और उसमें से निकलकर एक आदमी बदहवास भागता हुआ अस्पताल की ओर बढ़ता जा रहा था। ये और कोई नहीं बल्कि अजय आनंद ही थे, जिन्होंने आखरी बार नैना से बात करते वक्त बस चार शब्द ही सुने थे ' इलाज, सदर, अस्पताल, थानेसर ' और जिसके बाद नैना का मोबाइल बंद हो गया था। उनकी लाख कोशिशों के बाद भी दोबारा नैना के मोबाइल पर कॉल लगी नहीं। नैना और सुरेश भागते हुए अजय आनंद के पास गए। नैना और सुरेश को ठीक देखकर अजय आनंद की साँसो में साँस आई। नैना ने उन्हें और छंदा को एक दूसरे से मिलवाया। नैना ने अजय आनंद को विजय आनंद के कमरे के बाहर से उनको दिखलाया और उसके बाद उनकी बताई हुई सारी बातें भी बतलाई। अजय आनंद को एक बड़ा झटका सा लगा। उन्हें अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। कुछ देर बाद जब उनको सारी बातें समझ में आई तब उन्होंने अपनी बरसों से बिछड़ी बेटी को, जिसके होने तक का उनको पता नहीं था, अपने सीने से लगा लिया।

आज विजय आनंद पूरे तरीके से ठीक हो चुके थे। अस्पताल में इलाज के दौरान ही विजय आनंद और अजय आनंद का मिलाप भी हो चुका था। दोनों भाइयों ने गले लग कर अपने गमों को साँझा करते हुए सारे गिले-शिकवों को दूर कर लिया था। अब दोनों के दोनों अपनी बाकी की जिंदगी अपनी बेटियों के खुशी के नाम कर देना चाहते थे। काले बादल कब के छंट चुके थे और सुनहरी धूप भी साफ धुले फूल पत्तियों पर पड़कर खिल रही थी। सुरेश की गाड़ी चमकते सड़क पर भागती जा रही थी। दोनों बेटियाँ अपने अपने पापा के साथ पिछली सीट पर बैठकर बातों में खो गई थीं। तभी सुरेश ने गाड़ी की रफ्तार को कुछ धीमा कर दिया। छंदा और विजय आनंद ने एक आखरी बार अपने चाय की दुकान को जी भर कर देख लिया। उस दुकान के बोर्ड पर लिखा पहाड़ी चाय कुछ ज्यादा ही चमक रहा था जैसे कि मानो वो एक आखरी बार छंदा और विजय आनंद को अलविदा कह रहा हो। छंदा भी कार के पीछे वाले शीशे से तब तक अपनी दुकान को देखती रही जब तक वो उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गया।


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