खुली खिड़की
खुली खिड़की
ततैया हैरान था, दो दिन होने को आए पर लोग दिख नहीं रहे बगीचे में। ऐसा चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब ततैया खुद को ही डंक मार कर मर जाएगा। आखिर करे क्या बेचारा, उसे लोगों को बेवजह डंक मारने की आदत पड़ चुकी थी, और यहाँ लोग थे जो कि अपने घरो में ही दुबके पड़े थे।
अब ततैये से रहा नहीं जा रहा था, तो उसने सोचा, क्यों न चलकर पता किया जाए कि आखिर माज़रा क्या है। फिर क्या था उसने भरी उड़ान और पहुँच गया, सर्वज्ञानी गुरु घंटाल ततैये के पास। अपना ततैया हाथ जोड़कर बोला, " गुरुजी ये क्या हो रहा है चारों ओर, बाहर कोई निकलता ही नहीं, आप ही बताओ किसको मारूँ डंक, यहाँ तो कोई दिखता ही नहीं"। गुरु घंटाल क्रुद्ध होकर बोले, "अबे तूझे बड़ी चूल मची है नशेड़ी, भूल जा डंक मारने का मजा, सुना है किसी मरते चमगादड़ के श्राप के डर से सारे मानव अपने घरो में दुबके पड़े हैं, और बेटा अगर तू घर के भीतर गया तो समझना तू गया "। थोड़ा रुककर गुरु फिर बोले, " ये भी सुना है कि शायद कोई सनकी आदमखोर नेता साजिश करके लोगों को मरवा रहा है, पर जो भी हो हमारी तो मौज है, खाओ पियो ऐश करो, और हाँ डंक मारने की बात भूल जा"। " पर गुरुजी... ", ततैया कुछ कहने की कोशिश ही कर रहा था की अचानक उसके पार्श्व अंगो से गुरु घंटाल के चरणों का संपर्क हुआ और जोरदार आवाज आई " लट्...", और ततैया डाल से नीचे जमीन पर गिर पड़ा। उसने उपर देखा तो गुरू गुस्से में चिल्ला रहे थे,"बहुत सवाल करता है, चुपचाप भाग यहाँ से"।
ततैया अपने दुखते पिछवाड़े और भारी मन को लेकर दिनभर यहाँ वहाँ घुमता रहा। उसने अपनी तलब मिटाने के लिए रास्ते किनारे सुस्ता रहे कुछ मासूम कुत्तों को अपना शिकार बनाया, पर इससे उसकी प्यास बुझने के जगह और भड़क गई, वह तड़पने लगा।
अभी शाम ही हुई थी कि उसने देखा दूर एक घर से रौशनी आ रही है और साथ ही हँसने बोलने का स्वर भी सुनाई दे रहा है। ततैये ने आव देखा ना ताव और भर दी उड़ान उस घर की ओर। उसने देखा दो कमरों के उस मकान के एक कमरे में माता-पिता, पुत्र-पुत्री हास्य विनोद कर रहे थे। बड़ा ही प्यारा परिवार था, सज्जन माता पिता और भोले भाले बच्चे।
ततैया खुशी से फुला नहीं समा रहा था, उसने तय किया कि वह रात में बालक को अपने डंक का शिकार बनाएगा। रात हुई और एक कमरे में माता-पिता सोने चले गये और दुसरे में उनके पुत्र-पुत्री। बालक के अंधेरे के डर के कारण बच्चे कमरा रौशन कर के ही सोते थे। जैसा की तय था, बच्चों के सोने के बाद, ततैया बालक को डंक मारने चल पड़ा, पर यह क्या, अभी ततैया बालक के पास ही पहुँचा था कि बालक की आँखें खुल गईं और उसने बिजली की फुरती से एक अखबार उठा कर ततैये पर हमला कर दिया। ततैया गिरता पड़ता बचता बचाता किसी तरह एक शीशे के डब्बे के पिछे जाकर छिप गया। डब्बे के भितर जब उसकी नजरें पड़ी, तब उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं, ततैया थर थर काँपने लगा, अंदर धागे से बंधी हुई कई सारी ततैयों की लाशें पड़ी हुई थी। उस बालक में उसे साक्षात ततैयों के यमराज नज़र आने लगे थे। बालक ततैये को ढुंढते हुए, अपनी जाग चुकि दीदी को निर्देश दे रहा था,"दीदी जल्दी दरवाजे को बंद करो, यह ततैया भाग न पाए, इसे पकड़कर मैं अपना पालतू बनाउँगा", यह सुनकर बालिका ने तुरंत दरवाजा बंद कर दिया। तभी अचानक ततैये की नज़र एक खुली हुई खिड़की पर पड़ी, उसे लगा वह शायद बच सकता है।उसने अपना पूरा दम लगाकर उस खिड़की की ओर तेज उड़ान भरी, पर यह क्या, खिड़की पर आकर उसकी उड़ान थम गई, वह खिड़की के पार देख तो रहा था पर जा नहीं पा रहा था, वह शीशे की खिड़की बंद थी, फिर एक आवाज आई "चटाक.."।
ततैये की जब आँखें खुली तो उसने खुद को धागे से बंधा हुआ, शीशे वाले डब्बे के अंदर पाया। उसे अपनी मुर्खता पर पछतावा हो रहा था और उसे ऐसा लग रहा था मानो बाहर से उसे चिढ़ा रही थी, वह खुली खिड़की।