लाल घोड़ा
लाल घोड़ा


पटना के रसूखदार दबंग नेता चुल्लन प्रसाद, पिछले चार दिनों से लगातार पूरे बिहार के चप्पे चप्पे की धूल फाँक रहे थे। कुछ बात ही ऐसी थी, अभी दस दिन पहले, टीले वाली मज़ार के पीर बाबा ने उनसे कहा था," बच्चा, तुमरा और बिधायक की कुरसीया का रास्ता, ललका घोड़वा से ही पार लगेगा "। पीर बाबा ने बस बोला ही था कि नेताजी ने अपने सारे चेले चपाटीयों की फौज, लगा दी लाल घोड़े की खोज में। अभी जोर शोर से खोजबीन चल ही रही थी की अचानक एक दिन कर्फ्यू लग गया, उस दिन के लिए खोजबीन का काम मोबाइल फोन पर ही सिमट गया। अगले ही दिन बिहार के चारों कोनों से खबर आई, पश्चिम चंपारन के बड़े ठेकेदार भूबल प्रताप, भभूआ के जमीन्दार बाबू जगभुलावन, जमुई के इंजीनियर साहब सूर्यप्रकाश कुमार और किसनगंज के हाजी मकसूद के यहाँ लाल घोड़ा होने की बात पता चली। नेताजी ने आदेश दिया कि तुरंत सफर का पूरा बंदोबस्त किया जाए। अगली शाम तक चेलों ने सफर के सारे बंदोबस्त कर दिये। चुल्लन जी तैयारियों का जायजा लेकर घर घुसे तो देखा, पत्नी टीवी पर समाचार देख रही है, उनसे रहा नहीं गया, बोले," क्या दिन भर बिमरिया का न्यूज देखते रहती हो, चैनल बदलो चाहे टीवीया बंद करो ", पत्नी ने भी खिसियाते हुए तुरंत पलटकर जवाब दिया," थोड़ा चुप रहियेगा, बहुत जरूरी खबर आने वाला है टीवी पर, सुनने दिजिए "।
नेताजी पत्नी के साथ बैठकर समाचार सुनने लगे, पर समाचार सुनते सुनते चुल्लन प्रसाद के चेहरे का रंग बदलता जा रहा था, तभी चुल्लन जी का सबसे भरोसेमंद चमचा सुखिया भागता हुआ आया और बोला," नेताजी, सुने? कल से भारत बंद कर दिया है इक्कीस दिन के लिए, अब कल कैसे निकलिएगा? "। नेताजी बोले," वही तो देख रहे हैं समाचार में, मगर तुम लोग चिंता नही करो, हमलोग कल ही निकलेंगे, साला कोई बंदी हमको विधायक बनने से नही रोक सकता "। " ठीक है नेताजी, फिर कल सवेरे आते हैं ", कहता हुआ सुखिया बाहर निकल गया।
अगली सुबह निकलते वक्त जब चुल्लन प्रसाद ने देखा की सुखिया के साथ उसका भाई दुखिया भी आ रहा है तो उन्होने पूछा," अरे सुखिया इ मतवार को कहाँ लेकर आ रहा है "। सुखिया बोला," नेताजी इ अकेला रहेगा तो देसी पी पी कर मर जाएगा, यहाँ कम से कम चौकीदार लोग के साथ रहेगा, अगर आप परमीसन देंगे तो "। " हाँ हाँ ठीक है, अब चलो सब बैठो गाड़ी में, निकलने का टाईम हो रहा है ", कहते हुए चुल्लन प्रसाद ने अपने सारे चमचों को गाड़ियों में बैठने का इशारा किया। पौने छः घंटे का सफर तय करके चुल्लन जी की टोली चंपारन में ठेकेदार भूबल प्रताप की कोठी पर पहुँचे। भूबल प्रताप को अपने उपहार में मिले घोड़े से कोई लगाव नहीं था, वह खुशी खुशी चुल्लन प्रसाद को अपना घोड़ा दिखाने को तैयार हो गये। पर यह क्या कत्थे रंग के घोड़े की दुम सफेद थी, यह घोड़ा नेताजी के किसी काम का न था। नेताजी और उनकी टोली निराश होकर रात बिताने एक नजदीकी होटल में वापस आ गए।
रास्ते में कई बार पुलिस मिली, पर नेताजी की गाड़ीयों में लगे पार्टी के झंडों और उनके चमचों के हाथों की राइफलों को देखकर पुलिसवालों की उन गाड़ियों को रोकने की हिम्मत ही नही हुई। रात में बैठकी के दौरान नेताजी के एक चमचे ने पूछा," नेताजी, हमलोग पुरा बिहार का उत्तर दक्खिन पूरब पच्छिम कोना घुमेंगे, इ बिमरीया हमलोग को नही लगेगा ना ", " नही रे बुड़बक, इ जो स्मगलिंग करा के बिदेसी दारु काहे के लिए मंगाए हैं, इसको पीने से इ बिमारी नही लगता है, हम वाट्सएप में देखे हैं ", नेताजी ने जवाब दिया। नेताजी सुखिया की ओर देखकर बोले," अरे सुखिया तुमरा भाई इतना दारू कहाँ पाता है जो पी लेता है, परसासन तो बहुत कड़ाई से दारुबंदी लगाए हुए है "," क्या बताएँ नेताजी, वहीं लोकल में छिप छिपा के दारु बनाता है लोग और कोड नाम से बेचता है ",सुखिया झेंपते हुए बोला।
अगले तीन दिनों तक टोली पूरे बिहार का भ्रमण करती रही पर वो लाल घोड़ा उनके हाथ नहीं लगा। बाबू जगभुलावन के पास घोड़ा तो था ही नही, उनकी तो जमीन्दारी भी जुए की भेंट चढ़ चुकी थी, बस एक अफवाह थी की कभी उनके परदादा के पास लाल रंग का घोड़ा हुआ करता था। इंजीनियर सूर्यप्रकाश कुमार के पास घोड़ा नही घोड़ी थी, और वो भी गर्भवती। जिस दिन चुल्लन प्रसाद, हाजी मकसूद के पास पहुँचे, उसके पिछले ही शाम उनके अजीज घोड़े का इंतकाल हो गया था, वैसे घोड़ा जिंदा भी होता तो वह अपने जान से प्यारे घोड़े को कतई किसी को न देते।
आखिर थक हार कर नेताजी वापस घर को लौटे। उनकी तबियत काफी बिगड़ गई थी, सीने में दर्द था, साँस लेने में भी काफी तकलीफ थी। उनके तीन चमचों का भी यही हाल था। शाम होने तक नेताजी की पत्नी भी गाड़ी बुलवा कर अपने माईके जा चुकी थी। नेताजी से रहा नही जा रहा था, वे अपने ठीक ठाक तबीयत वाले चमचों से बोले," पकड़ के लाओ साले मजार वाले फकीर को, और हाँ रास्ते भर कूटते हुए लाना "। " मालिक काहे जूलुम कर रहे हैं, हमरी गलती का है ",पिटता हुआ फकीर हाॅय तौबा मचाते हुए पुछा। " तुमरे लाल घोड़ा के चक्कर में हमरी जान पर बन आई है, और मारो इसको", नेताजी ने अपने चमचों को आदेश दिया। फकीर बेहोश पड़ा था, अचानक सुखिया का भाई दुखिया मतवार बोला," नेताजी, आप भी लेते हैं लाल घोड़ा, पहले बोलते हम पहले ला देते। बेहोश होने तक चुल्लन जी के आँखों में दौड़ता रहा वह देशी दारू के पैकेट में छपा 'लाल घोड़ा'।