बरबादी का खेल
बरबादी का खेल


कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठवे दिन भगवान ने जमीन पर रहने वाले जीव जंतुओं के साथ मानव का भी निर्माण किया था, और उस दिन से लेकर आज तक मानव संसार की ऐसी की तैसी कर रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि कई सारे समानांतर ब्रह्मांड हो सकते हैं, उनमें कई सारे संसार भी होते होंगे। पर मानव को चाहे जिस संसार में भेज दो, वहां का बंटाधार होना तय है। ऐसे ही किसी समानांतर ब्रह्मांड में एक "अतुल्या" नामक ग्रह था। वह ग्रह कुल इक्कीस देशों में बंटा हुआ था। उन सभी देशों में सबसे प्रभुत्ववान, चार देश थे - आरीया, रिसाया, चियाया और भराया। परंतु धनबल, सैन्यबल, तकनीक एवं राजनीतिक प्रभाव के मानदंड से, सबसे अग्रणी देश आरीया ही था। अन्य सभी देश, आरीया से ईर्ष्याभाव रखते थे एवं उससे आगे निकलने का सपना देखा करते थे। पर ईर्ष्या के आग में सबसे ज्यादा जल रहा था, चियाया। चियाया का राजनीतिक नेतृत्व किसी भी कीमत पर विश्व का सबसे शक्तिशाली देश बनना चाहता था, चाहे इसके लिये क्यों न विश्व के अन्य देशों तबाह ही करना पड़े।
चियाया के राष्ट्राध्यक्ष "भालुसा" के आपातकालीन कक्ष में देश के समस्त प्रशासनिक, रक्षा, राजनीतिक, योजना और नीति निर्धारण एवं अन्य सारे विभागों के कर्ता धर्ता इकट्ठा थे। अत्यंत गंभीर विचार विमर्श चल रहा था। सेनाध्यक्ष कह रहे थे," राष्ट्राध्यक्ष महोदय, हमारी योजना से विश्व के अवगत होते ही, चियाया पर युद्ध का खतरा मंडराने लगेगा, हो सकता है कि सारे देश एकसाथ हमपर आक्रमण कर दें "। भालुसा गंभीर स्वर में बोले," सेनाध्यक्ष, आपका कार्य शत्रुओं से चियाया की रक्षा करना है, और जब तक पूरा विश्व, चियाया के अधीन नहीं हो जाता, यह मान के चलिए कि पूरा विश्व हमारा शत्रु है, और आपकी तैयारियों का स्तर भी उसी के अनुरूप होना चाहिए "। भालुसा जैविक अनुसंधान प्रमुख से बोले," इस योजना की सफलता, आपके विभाग की कार्यकुशलता पर निर्भर है, आपको यह सुनिश्चित करना होगा की इसके दुष्प्रभाव, अपेक्षा से अधिक न हो, अन्य सभी विभागों को आपसे बिना प्रश्न पूछे सहयोग करने का आदेश दिया जा चुका है "। जैविक अनुसंधान प्रमुख, बहुत सम्मान के साथ बोले," आपके आदेश का अक्षरशः पालन होगा "। भालुसा ने दुष्प्रचार तंत्र प्रमुख को आदेश दिया," आप समुचे विश्व में फैले अपने प्रचार तंत्र और पालतू भेदियों को सक्रिय कर दें, हर स्तर पर चियाया पर उठने वाले संदेह का दमन होना चाहिए "। अंत में भालुसा ने कक्ष में उपस्थित सभी को संबोधित करते हुए कहा," आप सभी को ध्यान रहे, चियाया को विश्व की अग्रणी शक्ति बनाने की योजना को मुर्त रुप दिया जा चुका है, हर विभाग, कठिन समय का सामना करने के लिए तैयार रहे, और हाँ, गोपनीयता भंग करने अथवा किसी के क्रियाकलापों से गोपनीयता भंग होने का खतरा होने पर, मौत की सजा तय की गई है, न्याय प्रणाली आंतरिक सुरक्षा विभाग के दिशा निर्देशों में ही काम करेगी "। इसी के साथ बैठक समाप्त हो गई और एक एक कर सभी कक्ष से बाहर निकलने लगे।
पिछले कुछ महीनों में चियाया से निकली एक बीमारी पूरे विश्व में फैले चुकी थी। चियाया में इस बीमारी से सैकड़ों लोगों की मृत्यु हुई थी, परंतु बाकी के विश्व की स्थिति तो अत्यंत ही चिंताजनक थी, दसीयों हजार लोग काल का ग्रास बन चुके थे, पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी थी, सिवाय चियाया के, वहां की अर्थव्यवस्था न केवल स्थिर थी बल्कि द्रुत गती से आगे भी बढ़ रही थी। "आरीया" भी इस बीमारी से बुरी तरह से प्रभावित था, परंतु उसने तय कर लिया था कि भले लाखों लोगों की बलि चढ़ जाए वह अपने अर्थव्यवस्था की बली नहीं चढ़ने देगा। आरीया की स्थिति उस साँप की सी हो गई थी जो न तो छछुंदर को निगल पा रहा था और ना ही उगल। उसे चियाया की करतुत का पता तो था पर अपनी चरमराती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए उसे चियाया की जरुरत भी थी। आरीया समेत पूरे विश्व की सामान्य जनता में चियाया के विरोध की दबे मुँह सुगबुगाहट शुरू हो गई थी, परंतु आरीया का ढुलमुल रवैया इस विरोध का नेतृत्व करने में अक्षम था। "रिसाया" का भी लगभग यही हाल था। वहां का नेतृत्व वेश्विक राजनीति में अपने स्थान को लेकर इतना चिंतित था कि अपनी प्रथम प्रतिक्रिया में तो उसने चियाया का साथ देते हुए आरीया पर ही दोषारोपण कर दिया, परंतु आगे परिस्थिति प्रतिकूल देख उसने अपने मुँह को पूरी तरह बंद कर लिया। "भराया" के प्रधानमंत्री भी अपने देश में इस बीमारी पर काबू करने की कोशिश करते हुए पूरे घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए थे।
वेश्विक शांति के लिए गठित संगठन में आपातकालिन अधिवेशन बुलाया गया था। चियाया, जो कि इस संगठन के अति महत्वपूर्ण पद पर स्थापित था, उसने इस अधिवेशन को रोकने का बहुत प्रयास किया, परंतु "अतुल्या" के सबसे छोटे देश, "प्रेमाया" के अडिग मनोबल के कारण, सफल न हो सका। अधिवेशन के दौरान प्रेमाया के राष्ट्र प्रमुख ने अभिभाषण दिया,
" माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रेमाया एक छोटा देश है, यहाँ के लोग आत्मसंतुष्ट रहते हैं, हमें विश्व में ना किसी से ईर्ष्या है और ना किसी से बैर, जैसा कि आपलोग जानते हैं, मेरे देश की एक चौथाई आबादी इस बीमारी की भेंट चढ़ चुकी है, परिस्थितियाँ स्पष्ट बता रही हैं कि यह एक प्राकृतिक विपदा नहीं है, बल्कि एक सदस्य देश का ही षड़यंत्र है, मैं उस देश की आपके संगठन के मंच से आलोचना नहीं करुंगा, उनकी कुछ महत्वाकांक्षाएँ रही होंगी, अब हर कोई प्रेमाया के लोगों की तरह जीवन से संतुष्ट नहीं होता, परंतु मैं आपसे यह प्रश्न जरुर पूछुंगा, क्या वेश्विक स्वास्थ्य की जिम्मेदारी जिन लोगों के कंधों पर थी उनका किसी सदस्य देश के षड्यंत्र में भागीदार बनने को आपकी स्वीकृति प्राप्त थी, क्या यह इस महान संगठन की महान विफलता नहीं, जो इस जैविक युद्ध को एक मूक दर्शक की भांती देखता रहे और इस अपराध के अपराधी की कोई जवावदेही भी न हो, मुझे यह भी ज्ञात है कि अभी भी ज्यादातर देश या तो चुप रहेंगे या फिर अपराधी का ही साथ देंगे, सबकी मजबूरीयाँ हैं, महत्वाकांक्षाएँ हैं, पर मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि प्रेमाया सत्य को सत्य और मिथ्या को मिथ्या कहने से नहीं हिचकेगा, अपने शोकाकुल देशवासियों की ओर से मैं संपूर्ण विश्व को बस इतना बताना चाहता हूँ कि आज मेरे अभिभाषण की समाप्ति के साथ ही "प्रेमाया", इस रीढ़विहीन संगठन से अपनी सदस्यता समाप्त करता है, आप सभी का धन्यवाद "
और फिर वह अस्सी बरस का युवा उस सुन्न पड़े अधिवेशन क्षेत्र से बाहर चला गया।
चियाया के राष्ट्राध्यक्ष के आपातकालिन कक्ष मे फिर से देश के सभी प्रमुख लोगों की महत्वपूर्ण बैठक चल रही थी। आर्थिक मामलों के प्रमुख, भालुसा को संबोधित करते हुए कह रहे थे," महोदय, चियाया पर भारी विपत्ती आन पड़ी है, अधिकतर देशों ने हमसे व्यापारिक संबंध तोड़ दिया है, प्रेमाया की चिन्गारी ने हमारी अर्थव्यवस्था में आग लगा दी है, अब तो बस "भराया" का ही सहारा है, उसके व्यापक बाजारों में हम अब भी अपने उत्पादों का व्यापार कर पा रहें हैं, पर वहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण वहां के लोगों को कुछ ज्यादा ही छुट है, वे लोग अपनी सरकार पर चियाया के विरुद्ध जाने का दबाव बना रहे हैं "। भालुसा क्रोधित होकर बोले," इसी लोकतंत्र का फायदा उठाकर हमने इतने सालों से अपने भाड़े के टट्टुओं को वहां के शिक्षण संस्थानों, राजनीतिक पार्टियों, न्यायालयों, समाचार माध्यमों एवं अन्य संस्थानों में क्या इसी दिन के लिए बैठाया था, क्या आज सारे के सारे एक साथ नाकारा हो गए, सबको निर्देश दे दो, चियाया के विरुद्ध उठने वाले हर कदम के आगे लाखों रोड़े अटका दो, विरोध में उठने वाली हर आवाज को इतना बदनाम कर दो कि उसकी विश्वसनीयता खत्म हो जाए, किसी भी सुरत में भराया का बाजार, चियाया के हाथ से निकलना नहीं चाहिए "।
भराया के प्रधानमंत्री ने अपने देश में सर्वदलीय बैठक बुलाई, ताकि यह तय किया जा सके कि, वर्तमान परिस्थितियों में देश की दिशा क्या हो। देश के लगभग सभी महत्वपूर्ण राजनीतिक लोग उस बैठक में मौजूद थे। बैठक में काफी शोरगुल था, एक सत्ता केन्द्र के विचार का समर्थन करने वाली पार्टीयाँ कुछ और राजनीतिक दलों के साथ मिलकर चियाया के पक्ष में खड़े थे, तो दक्षिणपंथी दल चियाया से शत्रुता से होनेवाले लाभ हानि का हिसाब कर रहे थे। बाहर समाचार माध्यमों में भी आग लगी हुई थी। चियाया द्वारा पोषित समाचार माध्यम, बातों का लच्छा बनाकर, सरकार के हर कदम की आलोचना कर कर के उसपर चियाया के विरोध में ना जाने का दबाव बना रहे थे। परंतु आम जनता का आवेश अब जन आंदोलन बन चुका था। अपने मृत देशवासियों के लिए न्याय के अलावा जनता को कुछ और स्वीकार न था। इस जन आंदोलन को न तो बिके हुए समाचार माध्यमों से कोई सरोकार था और न ही बिके हुए राजनीतिक दलों से। सत्ता के केन्द्र में बैठक चल रही थी और बाहर दसीयों लाख लोग उनका फैसला सुनने के लिए इकट्ठा हो चुके थे। बाहर के माहौल से अंदर के राजनेता भी अनभिज्ञ न थे। धीरे धीरे बैठक का माहौल बदलने लगा, सबको समझ में आ गया था कि यह जनता दमन से भी नहीं दबने वाली, अब अंदर, एक स्वर मे चियाया का विरोध होने लगा।
चियाया अपने ही फैलाए जाल में फंस चुका था। संपूर्ण विश्व ने उसका बहिष्कार कर दिया था। भालुसा ने एक शाम, आत्महत्या कर ली, जैसा कि आम तौर पर तानाशाह हार के बाद करते हैं। उसके कुछ दिनों के अंदर चियाया के शीर्ष नेतृत्व ने विश्व की संगठित सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। कई महीनों तक चले मुकदमों के बाद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के आदेश पर कईयों को मृत्युदंड तो कईयों को लम्बी अवधि के कारावास की सज़ा हुई।
इसके बाद से वेश्विक व्यवस्था में कोई राष्ट्र अग्रणी या कोई राष्ट्र पीछे न था, बल्कि सारे साथ साथ थे। लम्बे समय तक सबकुछ अच्छा ही चलता रहा, फिर अचानक एक दिन किसी के मन में फिर विश्व विजेता बनने का विचार आया, और एक बार फिर शुरू हो गया बरबादी का खेल।