पद्मश्री लेडीटार्जन जमुना टुडू
पद्मश्री लेडीटार्जन जमुना टुडू
नाम : श्रीमती जमुना टुडू
पदक, वर्ष व क्षेत्र : पद्मश्री, 2019, सामाजिक कार्य एवं पर्यावरण
जन्म तिथि : 19 दिसंबर, 1980
जन्म स्थान : रांगामटिया, प्रखंड - जामदा, जिला- मयूरभंज, ओडिशा - 757049
जनजाति : संताली
संपर्क : बेड़ाडीह, मुटुरखाम गांव , प्रखंड चाकुलिया, जिला पूर्वी सिंहभूम, झारखंड - 832302
पिता : बाघराय मुर्मू
माता : बबिता मुर्मू
पति : मान सिंह टुडू
जीवन परिचय - ग्लोबल वार्मिंग के युग में संताली समुदाय से यह सीखा जा सकता है कि स्वस्थ जीवन और स्वच्छ वातावरण का मूलमंत्र क्या है। संताली समुदाय धरती की पूजा करता है, संताली पर्वतों को पूजता है, संताली साल सखुआ के वृक्ष की पूजा करता है, संताली जल और चंद्रमा की पूजा करता है, यह समुदाय प्रकृति की पूजा करता है। संताली समाज सेंगल बोंगा के रुप में सूर्य की उपासना करता है। इनके सबसे बड़े देवता हैं 'मारांग बुरु' और देवी हैं 'जाहेर एरा', संताली मिथकों के अनुसार पृथ्वी पर मनुष्य की उत्पत्ति आदि पिता मारांग बुरु और आदि माता जाहेर ऐरा से हुई है।
संताली समुदाय में चौदह मूल गोत्र हैं-हासंदा, मुर्मू, किस्कु, सोरेन, टुडू, मार्डी, हेंब्रोम, बास्के, बेसरा, चोणे, बेधिया, गेंडवार, डोंडका और पौरिया है। इसी महान समुदाय में जन्मी जमुना मुर्मू , जो आज 'लेडी टार्जन जमुना टुडू' के नाम से विख्यात है। छः बहनों में सबसे छोटी जमुना ने ओडिशा के गांव के सरकारी विद्यालय में दसवीं कक्षा तक पढ़ाई की । जमुना के पिता के पास सात-आठ बीघा पथरीली जमीन थी , किन्तु उसपर खेती नहीं हो सकती थी। उनके माता पिता ने कठोर परिश्रम के द्वारा उस पथरीली जमीन को समतल कर वहां पेड़ लगाना आरंभ कर दिया। जमुना भी अपनी बहनों के साथ वहां पौधे लगाया करती, धीरे धीरे एक बड़ा जंगल तैयार हो गया। कहा जा सकता है कि जमुना को वृक्षारोपण एवं वन संरक्षण की प्रेरणा बचपन में ही अपने पिता से प्राप्त हो चुकी थी। जमुना का विवाह वर्ष 1998 में झारखंड के जिला पूर्वी सिंहभूम के मुटुरखाम गांव में मानसिंह टुडू से हुआ।
योगदान - विवाह के बाद जमुना टुडू चाकुलिया प्रखंड के गांव मुटुरखाम में रहने लगीं। पेशे से कृषक परिवार की बहु जमुना प्रतिदिन फल फूल चुनने व जलावन की लकड़ी लाने
आसपास के जंगल में जाया करती। कई बार वे देखती कि कुछ पेड़ काट कर गायब कर दिए गए हैं, तो कभी कुछ पेड़ काटकर वहीं गिराए गए हैं। उनके विचार में आया कि ये पेड़ काटता कौन है? वे सतर्क होकर इस विषय पर दृष्टि रखने लगी। धीरे धीरे उनको समझ में आ गया कि कुछ लकड़ी माफिया ना केवल पेड़ों को काटकर ले जाते हैं, बल्कि अन्य वन संपदा भी काफी मात्रा में चोरी की जा रही है । उन्होंने यह बात अपने घर के अन्य सदस्यों से साझा की। किन्तु किसी ने इन बातो को गम्भीरता से नहीं लिया । जमुना बैचेन रहने लगी, रात को सोते हुए भी उन्हें जमीन पर गिरे हुए पेड़ और पेडों को काटती कुल्हाड़ी व हाथ दिखने लगे । उन्हें ऐसा प्रतीत होता मानो स्वयं वन देवी लहूलुहान होकर पुकार रही है ।
वर्ष 2000 आते आते उनका नित्यकर्म बदलने लगा, वे प्रातः कालजल्दी जल्दी अपने घर का काम निपटा कर जंगलो में चली जाया करती। वहां जंगलो में घूम घूम कर पेड़ काटने वाले माफियाओं को ढूंढती और उन्हें वन से खदेड़ती। वर्ष 2002 में अन्य 3- 4 महिलाओं ने जंगलों की पेट्रोलिंग में जमुना का साथ दिया, धीरे-धीरे यह संख्या बढ़कर 60 तक जा पहुंची। नतीजा यह हुआ कि अब पेड़ों की कटाई कम होने लगी और वृक्ष संपदा पहले की अपेक्षा सुरक्षित रहने लगी।
आदिवासी समुदाय प्रकृति की पूजा करता है। यह समुदाय सूर्य, चंद्रमा, पशु, पक्षियों, पर्वत, पेड़ों में ही ईश्वर को ढूंढता है। यह स्वाभाविक गुण जमुना टुडू में भी है। उन्होंने पेड़ पौधों को परिवार के सदस्य सा स्नेह दिया। जब रक्षा बंधन का त्योहार आया, उन्होंने दस वृक्षों को राखी बांधी और उनकी रक्षा करने का संकल्प लिया। उनके आहवान पर उनकी टीम की सभी महिलाओं ने भी दस - दस वृक्षों को राखी बांधी और उनकी रक्षा का संकल्प किया। प्रकृति प्रेमी जमुना टुडू के गांव में यह परंपरा बन चुकी है कि प्रत्येक रक्षा बंधन पर ग्रामीण महिलाएं पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधती हैं और उनकी रक्षा करने का संकल्प लेती हैं।
pan style="font-size:16px" ;="">ऐसा नहीं है कि सबकुछ आसानी से या केवल पेट्रोलिंग करने मात्र से संभव हो गया। इसके लिए बहादुर जमुना टुडू ने काफी संघर्ष किया। धमकियां भी मिली, मार भी सही और केस भी हुये। परंतु निडर जमुना टुडू विचलित नहीं हुई।
वनों की पेट्रोलिंग के दौरान जमुना आए दिन जंगल माफियाओं से भिड़ जाया करती थी। उन लोगों ने पहले तो जमुना को रुपयों का लालच दिया, जब वे नहीं मानी तो उन्हें धमकाया गया। किन्तु जमुना पर तो पेडों को बचाने का जुनून सवार था, वे वनमाफिया के गुर्गों से भीड़ जाया करती और हाथापाई तक कर बैठती। जमुना टांगी* रखा करती थी और निडरता से उसी टांगी को लेकर वन माफिया के उन गुर्गों के पीछे दौड़ लगा देती। जमुना पेड़ काटने वाले अपराधियों को वन के बाहर उन से लड़ी और उनलोगों को खाली हाथ लौटने पर मजबूर कर दिया । एक नहीँ कई बार जमुना लहूलुहान होकर घर लौटीं, पर जंगल की बेटी जंगल में जंगल चोरों से जंग जीत कर लौटी । इसीलिए जमुना लेडी टार्जन के नाम से विख्यात हुई ।
एक बार वर्ष 2007 में अपराधिक प्रवृति के सात लोग हथियार लेकर रात डेढ़ बजे जमुना के घर में घुस गए और जमुना को धमकाने लगे। जंगल बचाने की इस मुहीम को बंद करके को कहा, जमुना ने उस वक्त तो उनकी हाँ में हाँ मिला दी, किन्तु समझदार जमुना ने कानून का सहारा लिया और उन्हें जेल भिजवाने की ठान ली। एक सप्ताह के भीतर ही वो सातों अपराधी ना केवल जेल भेज दिए गए बल्कि उन्हें कारावास की सजा भी हुई। निडर व बहादुर जमुना पर वन माफियाओं की धमकियों और हमलों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा , वरन उनका आत्मविश्वास बढ़ता चला गया ।
गांव में जमुना के घर के बाहर एक ईमली का पेड़ है, वही जमुना का कार्यालय है और वही उनकी सहयोगी महिलाओ के साथ वार्ता करने का मीटिंग प्लेस है। अब जमुना महिलाओं के साथ हर सुबह छह बजे जंगल चली जातीं और दोपहर ग्यारह बजे तक लौट आती, फिर उसी ईमली के पेड़ के नीचे बैठकर बातचीत करती, सबको अगली रणनीति समझाती और अपराह्न दो तीन बजे तक फिर जंगल चली जाया करती थी।
जमुना ने अपनी सहयोगी महिलाओं को लेकर ग्राम वन प्रबन्धन एवं संरक्षण समिति का गठन किया, जिसकी पंजीकरण संख्या 144/2003 है । 15 महिला और 15 पुरुषों से बनी इस पहली समिति का अध्यक्ष जमुना को ही चुना गया। समिति बनने के बाद जमुना अपने गांव से बाहर दूसरे गावों में भी जाने लगी। धीरे-धीरे इन्होने पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखण्ड में 300 से ज्यादा वन सुरक्षा समितियों का गठन किया। आज भी प्रत्येक समिति से हर दिन चार पांच महिलाएं अपने-अपने क्षेत्रों में वनों की रखवाली लाठी-डंडे , टांगी, कुल्हाड़ी और तीर-धनुष के साथ करती हैं ।
एक बार जमुना वन समिति का गठन करने दूसरे गाँव में गई हुई थी, पीछे से वन माफियाओं ने उनके गांव में 70 हरे भरे पेड़ काट लिए। उनकी वन समिति की महिलाओं को जैसे ही खबर लगी वो वहां पहुंच गयी और जंगल से लकड़ी नहीं उठने दी। दूसरे गांव से लौटकर जमुना ने थाना में सनहा दर्ज करवाई और चार लोगों को तीन महीने के लिए जेल भिजवा दिया।
जमुना ने पेड़ के पत्तो से दोने व पत्तल बनाने की आजीविका से अपनी वन समितियों को जोड़ा है । जमुना अधिक से अधिक पौधारोपण को प्रोत्साहित करती हैँ, स्वयं इन्होंने अपनी सहयोगियो के साथ मिलकर तीन लाख से ज्यादा पौधे लगाए हैँ । जमुना के गांव में बेटी पैदा होने पर 18 ‘साल’ वृक्षों का रोपण किया जाता है। बेटी के ब्याह के वक्त 10 'साल' वृक्ष उपहार में दिए जाते हैं। जमुना ने स्कूल व नलकूप के लिए अपनी जमीन भी दान में दे दी। जमुना टुडू पर्यावरणप्रेमी, बहादुर, समाजिक महिला होने के साथ साथ कुशल संगठनकर्ता भी हैँ ।
बायोग्राफी या उनपर लिखी गई बुक - Lady Tarzan! Jamuna Takes A Stand, English_Author - Lavanya Karthik, Publisher - Ektara Trust
सम्मान एवं पुरस्कार - लेडी टार्जन 'जमुना टुडू ' को पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वर्ष 2017 में दिल्ली में नीति आयोग ने वुमन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अवार्ड द्वारा जमुना को सम्मानित किया । उन्हें गॉडफ्रे फिलिप्स इंडिया लिमिटेड द्वारा 2014 में गॉडफ्रे फिलिप्स नेशनल ब्रेवरी अवार्ड से पुरस्कृत किया गया । उसी वर्ष उन्हें कलर्स टीवी चैनल द्वारा आयोजित भव्य समारोह में फिल्म निर्देशक सुभाष घई ने स्त्री शक्ति अवार्ड प्रदान किया था । वर्ष 2016 में राष्ट्रपति भवन द्वारा भारत की प्रथम 100 महिलाओं का चयन किया गया, इस प्रतिष्ठित सूची में जमुना टुडू का भी नाम था। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने प्रथम कार्यकाल के अंतिम एवं 53 वें एपिसोड में दिनांक 24 फरवरी 2019 को प्रसारित 'मन की बात' में जमुना टुडू की कहानी को राष्ट्र के समक्ष रखा। देश के विभिन्न राज्यों में 5वीं अनुसूची के अंतर्गत चलाए जा रहे विकास कार्यक्रमों के सम्बन्ध में विचार विमर्श हेतू झारखंड के माननीय राज्यपाल द्वारा गठित कमिटी में जमुना टुडू को मनोनीत किया गया है। साथ ही अपर प्रधान मुख्य वन सरंक्षक, कैम्पा, झारखंड द्वारा राज्य प्रतिकरात्मक वनरोपण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण की कार्यकारी समिति में भी उनको मनोनीत किया गया है।
*टांगी - कुल्हाड़ी/फरसा की तरह लोहे का बना एक हथियार होता है।
संदर्भ - i. दैनिक जागरण_ 29 अक्टूबर,2020
ii. The Avenue Mail_ 28th June, 2023