पदक
पदक
भरा हुआ सभागार, जहां शहर के तमाम आभिजात्य वर्ग के बड़े--बड़े लोग आमंत्रित किए गए थे। सामने सजा हुआ मंच, जहां देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति जी कई मंत्रियों के साथ सुशोभित थे। समय था देश के उन हीरों की कद्र करने का, जिन्होंने समाज के हितार्थ अपना अद्भुत योगदान दिया था। आज उन्हें पद्म पुरस्कारों से अलंकृत किया जाना था।
निश्चित समय पर कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ, एक--एक का नाम लेकर पुकारा जाने लगा, मंच पर वे सभी सम्मानित सदस्य आते, उनका परिचय देने के साथ उनकी उपलब्धियों की जानकारी दी जाती और उनके सम्मान में पदक और प्रशस्ति पत्र दिया जाता।
पांचवें नंबर पर जब पुकारा गया कि आमंत्रित किया जा रहा है "श्री हलधर नाग", तब लोगों ने देखा कि एक अति साधारण वेषभूषा बनियान और सफेद धोती पहने नंगे पांव व्यक्ति को, किसी को कुछ समझ नहीं आया कि यह अति साधारण गवैंया व्यक्ति ने अपने जीवन मे ऐसी क्या उपलब्धि हासिल की है कि पद्म विभूषण से नवाजा जाने वाला है।
यह हमारे समस्त समाज की त्रासदी हैं कि हम अपने गांवों में बिखरे हुए अनमोल मोतियों से अनभिज्ञ ही रहते हैं। जो समाज में महिमामंडित हो, सिर्फ उन्हें ही जानते हैं। हम अपने आसपास बिखरे हुए अद्भुत प्रतिभा की कदर नहीं कर पाते, वे पैकेजिंग के अभाव में तिरोहित हो जाते हैं। जबकि प्रतिभा किसी शिक्षा , या संस्थाओं की मोहताज नहीं होती ?
नैसर्गिक प्रतिभा किसी के भी पास हो सकती है।
परिचय में बताया गया कि हलधर नाग उड़ीसा के रहवासी हैं और कोस्ली भाषा में अद्भूत कविताओं का सृजन करते हैं। अठारह पुस्तकें छप चुकीं हैं। मात्र कक्षा तीन पास श्री हलधर नाग बहुत ही गरीब परिवार से आते हैं, सोलह साल वे होटल में बरतन धोने का कार्य करते रहे, तत्पश्चात बैंक से ऋण लेकर एक शाला के सामने छोटी सी दुकान खोल ली और कलम, कापी बेचते हुए कविता का सृजन भी करने लगे।
पहली कविता एक अखबार में छपने भेजी, फिर कोई भी कविता बिना छपे नहीं रही। अद्भुत याददाश्त के मालिक है हलधर नाग, उन्हें अपनी सारी कविताएं कंठस्थ हैं। वे कविता की संगोष्ठी में अपनी कविताएं सुनाया करते थे।
और मात्र अपनी कविताओं की उत्कृष्टता के बल पर आज पद्म श्री पुरस्कार विजेता घोषित हुए हैं। कक्षा तीन तक पढ़े हुए हलधर नाग की कविताओं पर पांच शोधपत्र जारी हुए हैं।
"आज वह पदक धन्य हो गया जब वह हलधर नाग जैसे विभूषण के हाथों में शोभायमान हुआ।"