पढ़ाई का बोझ
पढ़ाई का बोझ


कॉरोना महामारी क्या आई देश पर आफत आ गई।चारों तरफ लॉक डाउन का पालन किया जा रहा था। रीता को सोनू की चिंता सता रही थी। जो कि अभी कक्षा पांच में हुआ था।
लॉकडाउन की अवधि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। समय बीतता जा रहा था।
रीता बोले जा रही थी बच्चों का भविष्य चौपट हो गया सोनू तुमको कभी पढ़ते भी नहीं देखा। मैं बोल-बोल कर थक गई।
सोनू की आवाज आई... मम्मी आपका फोन देना।
मम्मी फोन देते हुए कभी पढ़ाई भी करेगा या मोबाइल में गेम खेलता रहेगा।
सोनू अचंभित था क्योंकि उसने मोबाइल अपने स्कूल का ग्रुप चेक करने के लिए लिया था। उसे पता चला कि कुछ ही दिनों में ऑनलाइन एग्जाम शुरू है।
उसने यह बात अपने मम्मी पापा को बताई।
सब सोनू की चिंता कर रहे थे कि एग्जाम में क्या होगा। अभी कुछ दिन पहले ही तो जैसे तैसे उसे अपनी किताबें मिली थी। फिर भी वह मोबाइल के द्वारा अपनी पढ़ाई पूरी करने में लगा हुआ था।
जो पढ़ाई वह स्कूल में जाकर करता था। अध्यापिका, अध्यापक द्वारा जो विस्तार से समझाया जाता था। वह उसे एकदम से याद हो जाता था। मगर अब वह छोटे छोटे अक्षरों को आंखे गड़ाकर मोबाइल में घंटों घंटे पढ़ते रहता था। अब पढ़ाई उसके लिए पूरी तरह उबाऊ और बोझा बन चुकी थी। वह बात बात में चिड़चिड़ा हो चुका था।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि सभी उस पर क्यों चिल्ला रहे थे।
तभी अचानक सोनू के पापा की आवाज आई क्या हुआ?
रीता ने सब बातें विस्तार से बताई और कहां सोनू अपना एग्जाम कैसे देगा।
वह पास कैसे होगा। मुझे सोनू की बहुत चिंता हो रही है। रीता एक सांस में बोले जा रही थी।
सोनू के पापा ने रीता से कहा ,रीता तुम सोचो यदि तुम्हें दूर से ही बोला जाए कि तुम आज एक नया पकवान बनाओ जो कभी पहले देखा या सुना ना हो तो क्या तुम बना सकोगी। रीता के समझ में सब आ चुका था बाल मन पर पढ़ाई का बोझ नहीं डालना चाहिए। वह जो अनावश्यक रूप से सोनू की चिंता कर रही थी। वह सभी व्यर्थ था।
रीता ने निर्णय कर लिया था कि जरूरी है, बाल विकास और मैं वह सोनू के साथ समय व्यतीत कर के उसे समय का सदुपयोग करना सिखाऊंगी। रीता सोनू के साथ कभी ड्रॉइंग तो कभी पेंटिंग में उसके साथ रूचि लेने लग गई थी। अब सोनू के दिमाग से पढ़ाई का बोझा जो उतर गया था। अब वह बहुत खुश था।