पछतावा
पछतावा
बड़े अरमानों से विदा कराकर अपनी देवरानी शिखा को लाई थी विभा। विभा का सिर्फ एक भाई था और हमेशा से उसे एक बहन की जरूरत महसूस होती थी। अब जाकर उसकी वो इच्छा पूरी होने वाली थी। अब उसे शिखा के रूप में एक बहन मिल जाएगी, ये सोच वो बहुत खुश थी। क्या पता था कि चार दिन भी ये खुशियां ना चलेंगी।
शिखा और विवेक की लव मैरिज थी,विवेक उसका बहुत ध्यान भी रखता था इस बात का उसे काफ़ी गरूर था। वो खुद में इतनी मसरूफ थी कि उसे बाकी रिश्तों की जरूरत महसूस ही नहीं हुई इसलिए वो विभा से खास बात नहीं करती थी। वैसे भी विभा सबका इतना ख्याल रखती थी कि शिखा को विभा से बहुत चिड महसूस होती थी और उसने धीरे धीरे विभा के साथ इतनी बदतमीजी करनी शुरू कर दी थी जिसके कारण विभा अब उससे दूर रहती थी।
शुरू में विभा को लगा कि उनकी सासू मां शायद शिखा को समझाएं पर जल्द ही उसे समझ आ गया कि उनके बढ़ावे के कारण ही शिखा ज्यादा बुरा बर्ताव कर रही है और वो फूट डालो,राज करो की नीति अपना रही थी। विभा को उनके बर्ताव का गहरा सदमा लगा था लेकिन वो घर को तोड़ना नहीं चाहती थी सो चुप्पी से गुज़ारा चलाने लगी।
कुछ दिनों से विभा को लग रहा था कि शिखा और विवेक में कुछ अनबन सी चल रही है पर वो पूछती भी किस हक से सो चुप रह गई। और उधर दोनों मियां बीवी में झगड़े बढ़ते गए। एक दिन उन दोनों की लड़ाई सबके सामने आ ही गई। और कुछ ही दिनों में विभा को समझ आ गया कि इस लड़ाई को बढ़ाने में भी मांजी का हाथ ज्यादा था वरना बातें तो छोटी छोटी सी ही थी।
लेकिन इस बार विभा चुप नहीं बैठी। उसने अपने पति को सारी बात बताई और उन्हें अपने साथ मिलाया। और फिर दोनों ने मिलकर शिखा और विवेक की लड़ाइयां सुलझानी शुरू की। इतना आसान नहीं था लेकिन वे दोनों इसमें कामयाब रहे।
शिखा अब बहुत शर्मिंदा थी। उसने अपने किए की विभा से माफी मांगी । विभा ने माफ़ भी कर दिया लेकिन शिखा को विभा के हाव भाव से समझ आ गया था कि अब कभी भी उनका रिश्ता बिल्कुल ठीक नहीं हो सकता था। अब शिखा के पास सारी उम्र पछताने के अलावा कुछ नहीं बचा था।