STORYMIRROR

sonal johari

Drama Horror Romance

3  

sonal johari

Drama Horror Romance

पार्ट -6, क्या अनामिका वापस आएगी ??

पार्ट -6, क्या अनामिका वापस आएगी ??

10 mins
553

आपने पिछले भाग में पढ़ा कि अंकित अनामिका के पीछे पीछे जा रहा था, कि किसी ने उसे पीछे की ओर खींचा और अगले ही पल वो जमीन पर था ....अब आगे--


जमीन पर गिरते ही होश में आया हो जैसे ...सामने कोई आकृति सी दिखी, अपनी पलकें बार -बार झपका कर देखने की कोशिश की पर कुछ नहीं दिखा, रोशनी भी काफी हल्की थी..वो परछाई सामने आयी ..."आंटी....आप?" अंकित के मुंह से निकला वो भौचक सा उन्हें देखता रहा, आंटी अभी तक हांफ रही थी... उन्होंने हाँफते हुए पुछा

"क्या था ये...,मैं पूछती हूँ.. छत से क्यों कूद रहा था तू sss

अगर खाना लेकर सही वक्त पर नहीं आती तो ..तो हे ईश्वर.. या तो तू..हॉस्पिटल में होता.... या ....नहीं ...नहीं...बता मुझे,... क्या परेशानी है तुझे",...उन्होंने अंकित के दोनों कंधे पकड़कर जोर से झिंझोड़ते हुए पूछा ..इतने में राधेश्याम आ गए ..पास ना जाकर थोड़ी दूरी पर खड़े रहे...उन्हें देखकर सरोज बोली

"बोल...क्या घर के किराए की फिक्र है? अरे ..तुझे बेटा माना है मैंने ..जब तक तेरी मां जीवित है, तुझे इस घर से कोई नहीं निकाल सकता...बोल... कोई और परेशानी है तो बता मुझे"

उन्होंने अपनी आंखें अंकित पर टिकाते हुए पूछा

"मुझे... कोई परेशानी नहीं.. बस्स मुझे लगा कि, मैं किसी को रोक रहा था और ...और

"और ...क्या"

"फिर मुझे लगा किसी ने मुझे पीछे की ओर खींच लिया ...नहीं पता में यहाँ कैसे आ गया...सच" अंकित ने उठने की कोशिश करते हुए कहा तो सरोज बोलीं

"मैंने पकड़ कर खींचा तुझे ...तू तो जैसे कूदने पर आमादा था ....उनकी सांस अब तक तेज़ चल रही थी

"क्या ???कूदने जा रहा था...छत से? मुझे सच में कुछ याद नहीं.. लेकिन ...लेकिन आप ने मुझे बचा लिया माँ" अंकित ने सरोज का हाथ पकड़ते हुए कहा ,तो सरोज उसके माथे पर हाथ रखते हुए बोली "हम्म ..समझ गयी"

"क्या...समझ आया आपको" अंकित ने अपने कपड़े झाड़ते हुए पूछा

"तुझे दिमागी बुखार हुआ है, कल ही सबेरे तुझे डॉ शाहदुल्ला को दिखाउंगी"

"डॉ शाहदुल्ला..?"

"हाँ... एक से एक दिमागी बुखार के बिगड़े केस उन्होंने ठीक किये हैं, तुझे तो चुटकी बजाते ठीक कर देंगे वो, अब ..चल नीचे ..जब तक ठीक ना हो जाये मैं तुझे अकेले नहीं रहने दूँगी" और वो अंकित की बांह पकड़ ले जाने लगीं

"सुनिए तो...मैं यहीं ठीक हूँ, अंकल जी नाराज होंगे...आप तो जानती ही हैं "अंकित ने हाथ छुटाते हुए कहा, तो वो बोली

"मैं भी देखती हूँ, कैसे वो कुछ बोलते हैं..तू चल नीचे"

और अंकित को पकड़ ले जाने लगीं, बैठी हो तो उठने में ही जिन्हें कई बार तो मिनट तक का वक़्त लग जाता है ,वही सरोज ,एक हाथ से अपनी साड़ी की प्लीट्स थोड़ा ऊपर पकड़े और दूसरे हाथ से अंकित को ऐसे खींचे हुए ले जा रहीं थी जैसे वो चार या पांच साल का बच्चा हो ...उसे बेड पर लिटा वो ठंडे पानी की पट्टी रखने लगीं, राधेश्याम मूक दर्शक बनें सब देख रहे थे, वही आंगन में टहलने लगे, सरोज ने कुछ कहना चाहा तो उन्होंने हाथ का इशारा कर उन्हें आश्वस्त किया कि वो जो कर रहीं हैं, उससे उन्हें कोई दिक्कत नहीं

....सुबह ही सरोज ,अंकित को डॉ शाहदुल्ला को दिखा लाई और

थोड़ी देर में ही अंकित को सामान्य लगने लगा, जैसे कुछ हुआ ही ना हो, और वो ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगा , तभी सरोज ने टोक दिया "कहाँ जा रहा हैं, कहीं जाने की जरूरत नहीं..आराम कआज"

"मां ...नई जॉब लगी है ,जाना जरूरी है,...आपने इतना ख्याल रखा है, कि बिल्कुल नहीं लग रहा ...कोई परेशानी थी भी ...जाने दीजिए ना... जल्दी आ जाऊंगा"

"अच्छा ...बहुत जरूरी है क्या? एक मिनट रुक तो .." और सामने आकर उसकी जेब में एक हजार रूपए रख दिये, अंकित ने रुपये देखे तो भावविभोर होकर उसने सरोज की ओर देखा और रुपये लौटाते हुए बोला "आप बहुत अच्छी हैं, लेकिन मुझे पैसों की जरूरत नहीं है"

"खबरदार,जो कुछ बोला,चुपचाप रख ले, और हाँ जल्दी आना शाम का खाना तेरे साथ ही खाऊँगी" सरोज ने झूठ मुठ का डाँटते हुए बोला

"ठीक है माँ" अंकित ने कहा और बाहर निकल गया !


ऑफ़िस पहुँचा तो देखा, गैलरी में राखी चुपचाप अकेली खड़ी थी तो उस ओर ही चला गया, राखी को सिगरेट पीते देख वापस लौटने लगा तो राखी ने आवाज दे दी..

"अंकित, क्यों वापस जा रहे हो ...आओ ना" जब से वो दोनों नीरू के साथ मॉल रोड घूमने गए , तब से,फॉर्मेलिटी खत्म हुई और दोंनो "आप' से "तुम "पर आ गए थे

"कुछ नहीं ऐसे ही"

"कोई लड़का सिगरेट पी रहा होता, तब भी यूँ ही चले जाते"

उसने धुआँ छोड़ते हुए पूछा

"शायद नहीं.."

"वही तो ...लड़के सिगरेट पीये तो कोई प्रॉब्लम नहीं, लड़की पी ले तो... प्रॉब्लम ..सब स्त्री सशक्तिकरण की बात ही करते हैं सिर्फ " उसने ताने वाली हँसी के साथ कहा

".हम्म ...स्त्री सशक्तिकरण ... मतलब...उठाइये तलवार और काट दीजिये वो बेड़ियाँ जो आपको आगे बढ़ने से रोकती हैं, आप को आपकी बिल्कुल निजी इच्छाओं को मारने पर मजबूर करती हैं ..और इसमें खुद के पैरों पर खड़े होना सबसे बड़ी भूमिका निभाता है, सशक्त कीजिये खुद के मन को... ताकि वो बिना डर आपको जीना सिखाये... लेकिन बड़े दुर्भाग्य की बात है ...कि तुम जैसी ही जाने कितनी पढ़ी लिखी लड़कियों ने इसका मतलब ये समझा है, कि अपने सामने वाले लड़के को मार दो उसी तलवार से...

राखी उसे यूँ रौ में बोलते हुए देख रही थी,

रही बात सिगरेट पीने की ..तो ये बुरी लत जरूर है ,लेकिन पाप नहीं ...समझदार हो, पीना चाहो तो बेशक पीयो, लेकिन इसके पीछे अगर ये सोच है, लड़के पी सकते है तो लड़कियां क्यों नहीं...तो खुद की इंसल्ट के अलावा कुछ नहीं... क्योंकि भगवान ने दुनिया भर की खूबियों के साथ लड़कियों को इस दुनिया मे भेजा है, तो मुठ्ठी भर लोगों के बोलने या सोचने से कोई फर्क नहीं पड़ता...वो बेहतर थीं ...और हमेशा रहेंगी 

और जब अंकित गंभीर हो गया तो माहौल को हल्का बनाने के लिए उसने टोका

"हम्म ...अच्छा बोल लेते हैं, संडे को फ्री सेमिनार क्यों नहीं आयोजित करते ..पार्ट टाइम जॉब के लिए भी अच्छा रहेगा,

अहा हा हा ...दोनों हँस दिए,

"अरे ..मैं लेट हो गया, कहीं सर ना आ गए हो और "हाँ ...तुमने पूछा था ना कि ..कोई लड़का यहां होता तो मैं आता लौटता या नहीं 'तो सुनो मैं आता ही नहीं तुम्हें जानता हूं इसलिए आया और तुम अपने में ही खुश दिखी तो सोचा ना विघ्न डालू, इसलिए लौट रहा था...समझी "

राखी ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिलाई और अंकित के जाने तक उसे राखी देखती रही...


राव सर आज भी किसी फाइल में उलझे दिख रहे थे, पहले फाइल देखते, फिर कैलक्यूलेटर पर कुछ हिसाब लगाते... पास ही एक प्लेट में फ्रूट्स सैलेड रखा था, देखने से लगता था, काफी देर से ऐसे ही पड़ा है

"सर...गुड मॉर्निंग"

"अंकित,...वेरी गुड मॉर्निंग...आओ बैठो"

"सॉरी सर ..थोड़ा लेट हो गया"

"अरे नहीं भई... मैं ही जल्दी आ गया हूँ अभी तो 9:05 ही हुए हैं...अच्छा मैं गया था, एक एग्रीकल्चर अफसर के साथ..वो तराई वाले बाग़ान में...वो मुस्कुराते हुए बोल रहे थे ..और काफी खुश दिख रहे थे

"तुम्हारी बात सच निकली..सोचता हूँ तुम्हारी सेलरी आज ही फिक्स कर दूं ,क्या कहते हो"

उन्होंने चश्मे में से आंखें अंकित पर टिका दी..और अंकित बस्स मुस्कुराने लगा

"हम्म...अभी ..पैंतीस हजार सेलेरी ,ऑफर करता हूँ तुम्हें...आगे तुम्हारी उम्मीदों से बेहतर बढ़ेगी ,... तुम खुश तो हो ना"?

"बहुत खुश हूं सर, थैंक यू सो मच" अंकित ने खुशी से कहा

"ठीक है...जॉबलेस कब से हो"

"लगभग 6 महीनों से"

"ठीक है ,सादिक को बोलता हूँ... दस हज़ार कैश देगा तुम्हें ,ऑफिस के बाद मिलते हुए जाना उससे" और वो उठकर मीटिंग के लिए जाने लगे,अंकित तो बहुत खुश हो गया, कैसे जान गए सर कि उसे पैसों की जरूरत है, बस्स थैंक यू ...थैंक यू सर बोलता रहा, तो राव सर ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा

"मेहनत करो...बहुत संभावनाएं दिखती हैं तुममें, मुझे ...और हां अब मेरे शेड्यूल पर काम करो कल से"

"ठीक है सर" थोड़ा झुक कर अंकित एक तरफ हो गया और राव सर बाहर निकल गए...अंकित के दिमाग में अपनी माँ की कही बात याद आयी...जब तुम्हें लगे कि तुम्हें वो मिला जिसके तुम लायक नहीं ...तो समझ लेना किसी और की दुआएं तुम्हारे लिए काम कर रही हैं...अंकित ने मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा किया और कहा जिसकी दुआओं ने मेरे लिए काम किया उसे खुश रखना ईश्वर ..और शुक्रिया अनामिका...और सोचा क्यों न आंटी के लिए कुछ लिया जाए यही सोच काम खत्म कर ,एडवांस ले, वो मार्केट चला गया,


राधेश्याम के लिए शर्ट और सरोज के लिए साड़ी खरीद अंकित घर गया और सरोज को साड़ी थमा दी और शर्ट ये बोलते हुए दी

"माँ आप ही उन्हें दे दीजिए ,मुझसे तो नाराज रहते हैं, और ये एक महीने का किराया भी"साड़ी और शर्ट हाथों में लिए आंटी भाव विभोर हो उसकी ओर देखे जा रही थी, पर कुछ बोलते ना बना तो अंकित ने झुक कर उनके पाँव छुए और कहा

"सब आपकी दुआओं का असर है"


हर बार की तरह कदम रखते ही दरवाजा खुद खुल गया, वो सामने ही बैठी थी...कुछ पढ़ने में मगन...बाल बिखेरे जिनमें से पानी की नन्ही नन्ही बूंदे...कालीन पर गिर रहीं थीं... शायद अभी धुले है बाल उसने, सफेद ड्रेस जिसपर हल्की सी नीली रंग की आभा भी थी, और इस ड्रैस में बिल्कुल वैसी ही लग रही थी जैसी सपने में आई थी....वही दरवाजे पर खड़े होकर सुध-बुध भूले उसे निहारता रहा,

"अंकित जी, आज बाहर खड़े रहने का ही इरादा है क्या"?

अनामिका की आवाज से चौकने के साथ ही झेंप गया अंकित....और अंदर जाकर पास ही के सोफे पर बैठ गया, धुले बाल और उनसे गिरती नन्हीं सी बूंदे पहली बार देखी हो ऐसा नहीं था, लेकिन ना जाने कौन सा समा बंध जाता है ...अनामिका के आस पास होने भर से...

"आप बैठिये...में चाय ले आती हूँ "

"रहने दीजिए ना, जरूरत नहीं है"

"चाय जरूरत के लिए ही पी जाती है क्या "उसने मुस्कुराते हुये कहा तो ...जैसे उसकी जान में जान आयी हो ..शुक्र है ...आज नाराज नहीं

"मेरा मतलब था ,बेकार ही खुद को परेशान करेंगी आप"

"इसमें क्या परेशानी... बस्स अभी आयी" उसके जाते ही अंकित के मन में एक बात कौंधी क्या अब तक अनामिका के माता पिता शादी से वापस नहीं आये...आये तो पूछूंगा..इतने में वो आ गयी ...हाथ में ट्रे लिए ..हमेशा की तरह चाय के साथ कुछ न कुछ लेकर ..ना जाने इतनी जल्दी ये इतनी जल्दी चाय और नाश्ता इतनी जल्दी कैसे तैयार कर लेती है

"अनामिका जी,...अ ...अ ..आपके पेरेंट्स नहीं आये अब तक"

"आपको बताया था, वो कजिन की शादी में गए है, हमारे यहाँ शादियां बड़ी धूमधाम से होती हैं, हफ्ते भर तक तो..बस्स रीति रिवाज ही चलते रहते हैं"

उसने चाय का कप अंकित को देते हुए कहा

"अच्छा..." अनामिका को ऐसे खुद से , खुश होकर बात करते देख बड़ी अजीब सी शांति मिली अंकित को, हाथों में लिए पेपर उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला

"ये देखिए साउथ इंडिया की हिस्ट्री नोट्स...मुझे विश्वास है ये आपको इंटरेस्टिंग लगेंगे...

"हम्म...लगता तो है...आपकी जॉब कैसी जा रही है"

उसने पेज उलटते हुए पूछा

"बताने ही वाला था, बहुत अच्छी...मेरी सेलेरी भी फिक्स कर दी गयी है, आपने सच कहा था, राव सर बहुत अच्छे इंसान हैं... ये सब आपकी वजह से है ,समझ नहीं आता, आपका एहसान कैसे उतारूंगा"

"अर्रे वाह! फिर तो पार्टी बनती है" इसने चहकते हुए कहा

"हाँ... हॉँ क्यों नहीं... आप ही बताइए कब और कैसे पार्टी लेंगी ..मुझे तो बड़ी खुशी होगी"

"डिनर कराएंगे ...अच्छे से हॉटेल में" उसने अंकित के चेहरे पर नजर टिकाते हुए पूछा

"बहुत ही खुशी से...भला... इतनी खूबसूरत लड़की (फिर संभालते हुए) ...मेरा मत ...अ ...मतलब आप मेरे साथ डिनर करने चले, इससे बेहतर मेरे लिए क्या हो सकता है

"ठीक है, अभी तो कुछ दिन ही हुए हैं, आपको बता दूँगी कब चलना है"

"कुछ ही दिन...फिर खुद में बुदबुदाया "कुछ दिन में तो ये हालत हो गयी है...हाँ सही कहा आपने...जब भी मन हो बता दीजिए "...

इतना बोल वापसी की इजाजत ली और वापस घर आ गया


ऑफिस पहुंचा ही था कि राखी सामने से आती दिखायी दी, रोज़ प्रोफेशनल सूट में रहने वाली, आज ..लाल रंग की साड़ी पहने थी,

"अंकित, आज सर ऑफिस नहीं आएंगे" बड़ी खुश दिख रही थी,

"ओह्ह...ठीक है अच्छा" और जैसे ही अपने केबिन की ओर बढ़ा राखी उसके सामने आ कर खड़ी हो गयी,

"कैसी लग रही हूँ"

"हाँ ...अच्छी लग रही हो, क्यों क्या हुआ" उसने ढीले रवैये से कहा

और राखी ने बड़े नाटकीयता से एक गुलाब का फूल उसकी ओर बढ़ा दिया .........क्रमशः



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama