पापा
पापा
पापा यह शब्द उतना ही प्यारा है जितना माँ।
पापा आज हमारे बीच इस भौतिक दुनिया में नहीं है, पर उनके संस्कार, उनकी शक्ति हमेशा साथ है। पापा, मेरे लिए क्या है से ज्यादा, वह क्या थे, महत्व रखता है। क्योंकि वह पापा थे।
जैसे मेरा मानना है माँ, वह माँ होती है जो ना तेरी हो ना मेरी हो पर सबके लिए माँ हो। हाँ, मेरी माँ तो वैसे ही थी, पर मेरे पिता भी वह पापा, जो ना सिर्फ अपने बच्चों के या अपने परिवार के बच्चों के, अपितु हर एक को अपने बच्चे सा प्यार करने वाले।
सभी को स्वावलंबी बनाने में विश्वास रखते थे। वो ना सिर्फ लड़कों को बल्कि हम लड़कियों को भी अपनी दुकान पर बैठाकर व्यापार सिखाते थे। हम बच्चे अपनी दुकान पर बिल बनाने का काम हो या फिर कैश काउंटर संभालने का, पापा हमेशा हमें प्रोत्साहित करते। उन्होंने कभी भी अपने बच्चों और दूसरों के बच्चों में फर्क नहीं किया। और खुद के भाई-बहन के बच्चे हो या पत्नी के भाई बहन के बच्चे सब से एक सा व्यवहार करते।
मुझे याद है, हमारे घर, मामा के बच्चे हो या बुआ के बच्चे सभी को उतना ही प्यार मिलता, जितना हमें, फिर वह चाहे 2 दिन के लिए आए या 2 महीने के लिए। पापा सभी को उतना ही प्यार देते उन्हें व्यापार सिखाते और हमारी माँ उतने ही प्यार से उनके खाने-पीने और बाकी सुविधाओं का ध्यान रखती।
आज की दुनिया में अपने बच्चों के अलावा तो कोई और दिखाई ही नहीं देता। लोगों को मां-बाप तो बनते देखा है पर सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चों के। कई बार तो वह अपने बच्चों को इतना ध्यान देते हैं कि उन्हें हर चीज के लिए खुद पर मोहताज बना देते हैं। हर सुविधा देने के चक्कर में उन्हें आत्मनिर्भर बनने ही नहीं देते। फिर होता ये है कि बच्चे कोई निर्णय स्वयं अकेले नहीं ले पाते, उन्हें माता-पिता की या फिर किसी ना किसी की हमेशा जरूरत महसूस होने लगती है। इसलिए बच्चों को बचपन से ही आत्मनिर्भर बनाना बहुत जरूरी है।
बच्चों की जरूरतें पूरी जरूर करनी चाहिए पर किसी पर मोहताज नहीं बनने देना चाहिए। शुरू में उन्हें थोड़ी तकलीफ हो सकती है पर उनके भविष्य के लिए वह जरूरी है। मुझे गर्व है कि पापा ने हमें इतना आत्मनिर्भर बनाया कि उनके बाद हम ना सिर्फ उन्हें प्यार से याद करते है पर अपने जीवन के हर मुश्किल समय का सामना भी हिम्मत से कर पाते है।
ऐसी कई बातें आज देख कर लगता है क्या ऐसे लोग आज भी होंगे इस दुनिया में जो अपने और पराये में फर्क ना करें। कई बार तो देखते है, फर्ज पूरा करे ना करे पर हक हमेशा जताते रहेंगे बच्चों पर। पापा तो वह जो हक कभी नहीं जताते, पर हमेशा फर्ज पूरा करते रहेंगे, मानो उनकी सबसे बड़ी खुशी ही उसी में हो और वह ना केवल अपने, पर हर बच्चे के लिए जो उनके संपर्क में आये।
इसलिए तो मां बाप बनने के लिए, बच्चे पैदा करना या खुद के बच्चे होना जरूरी नहीं। इस बात को भी कुछ लोग गलत लेते हैं अगर आप के मां बाप नहीं है तो वह हक जताएंगे हमेशा, पर फर्ज निभाने कोई नहीं आएगा।
मां-बाप बनना संस्कार में ही नहीं स्वभाव में भी होना चाहिए। मेरी मां तो ऐसी थी ही, पर पापा वह तो पापा की हर मूर्त में फिट हो, ऐसे थे।
पापा जिसे हम 'दादा' बोलते थे। क्यों बोलते थे, फर्क नहीं पड़ता। हाँ और भी अच्छा लगता है जब वही शब्द हम अपने गुरु के लिए कहते हैं, दादा! मानो जीवन में सब फिर मिल गया हो। क्योंकि उनके साथ होने का एहसास अब हमेशा के लिये है हमारे दिल में।
