पापा का शॉल
पापा का शॉल
रोहित आज फिर गुस्से में पैर पटकता हुआ मां के पास आकर बोला -"तुम पापा को क्यों नहीं समझाती, हमेशा अपनी शॉल सोफे पर फैला, छोड़ कर चले जाते हैं। मेरे दोस्त यहां आ कर देखेंगे तो क्या बोलेंगे ?”
स्नेहा मुस्कुराते हुए बोली- “तुम्हें तो पता है न, इस शाॅल से पापा को कितना प्यार है। जब भी सर्दी का मौसम शुरू होता है तो वो हमेशा इसे अपने साथ रखते हैं । मैंने कई बार समझाने की कोशिश की पर वो कहाँ सुनने वाले? फिर भी मैं उनसे बात करूंगी ।”
रोहित के जाने के बाद स्नेहा महेश और उसके उस शाॅल के बारे में सोचने लगी। यह शाॅल महेश के पापा की आखिरी निशानी है। जब उनका देहांत हुआ था तो महेश की बड़ी दीदी पापा की ये आखिरी निशानी उसके कंधे पर रखकर खूब रोई थी। अब तो दीदी भी न रही।
अक्सर महेश उस शाॅल को ओढ़ कर बैठते तो कहते, “मुझे लगता है मानो पापा और दीदी दोनों के हाथ के स्पर्श की गरमाहट इस शाॅल में है।”
रोहित की कॉलेज की पढ़ाई खत्म हो गई थी। उसने महेश के बिजनेस में हाथ बटाना शुरू कर दिया । उसकी शादी के बाद उसके दो बच्चे गुड्डी और पप्पू से घर में रौनक बनी रहती थी। जैसे जैसे बच्चे बड़े होने लगे रोहित को घर छोटा लगने लगा। उसने एक बड़ा सा घर ले लिया । घर में नए-नए फर्नीचर बनने शुरू हो गए।
एक दिन रोहित ने आकर पापा से कहा - “आप लोग बड़े घर में चलने की तैयारी शुरू कर दो, इस घर के पुराने फर्नीचर और पुराने सामान कपड़े वगैरह वहां नहीं ले जाना है ।नए घर में सब नई चीजें होंगी। आप लोगों के लिए वहां नए कपड़े आ जाएंगे । आप अपने पुराने कपड़े यहां छोड़ देना। मैं जरूरतमंदों को दे दूंगा।“
महेश और स्नेहा नए घर में जाने की तैयारी में जुट गए । तभी अलमारी में बड़े जतन से रखी शाॅल पर महेश की नजर गई । उन्होंने उसे निकाल अपने कपड़ों के साथ रख लिया । स्नेहा पर नजर पड़ते ही बोल पड़े - “तुम मुझसे इस शाॅल को कभी दूर मत करना। मेरे अंतिम समय में मुझे इसमें ही लपेट कर विदा करना।”
स्नेहा को भी शाॅल से लगाव सा हो गया था। उसे हाथ में लेकर महेश की तरह ही वो भी सुख का अनुभव करने लागी थी। एक दिन बिना किसी को परेशान किए, बिना बताये महेश चिर निद्रा में सो गए। सुबह सबसे पहले स्नेहा ने उनकी मृत्यु की खबर दी ।घर में दुख पसरा था। महेश की अर्थी सज रही थी । रोहित नए कपड़े ले आया जो उसने कुछ दिन पहले ही पापा के लिए खरीदे थे । तभी स्नेहा को महेश की अंतिम इच्छा की याद आई । वह शाॅल लाकर महेश को लपेटने के लिए आगे बढ़ी।
बड़ी तेज़ी से रोहित आया और उसने मां के हाथ से शाॅल खींच ली। रोहित को महेश की अंतिम इच्छा वाली बात स्नेहा ने बताया । रोहित जोर-जोर से रोने लगा और शाॅल को हाथ में लेते हुए कहा -"मैं यह शाॅल नहीं दूंगा, यह मेरे पापा की अंतिम निशानी है।”
स्नेहा चाहती तो थी कि महेश की अंतिम इच्छा पूरी करें, पर रोहित को देख कर उसे लगा अब इसे भी इस शाॅल में अपने पिता के स्पर्श की गरमाहट का अहसास हो चुका है। वह महेश की तस्वीर की तरफ देख कर मन ही मन क्षमा मांगने लगी । उसे महेश आखिरी इच्छा पूरी न कर पाने का दुःख था। आज उसने रोहित को भी उसी स्मृति डोर से बंधते देखा था जो मोहित का उनके पिता के साथ था।
