नयी सोच
नयी सोच
बाल मजदूरी हटाएंगे, खुशहाली फैलाएंगे - का नारा लगाते हुए पूरा हुजूम ढाबे में घुस गया। अंदर काम करते बच्चों को पकड़ कर बाहर लाया गया। कुम्भलाए उदास चेहरे वाले बच्चे डर के मारे कांप रहे थे। "देखो कितना जुल्म करते हो तुम इन बच्चों पर! तुम्हारे डर से जान निकले जा रही है बेचारों की! " हुजूम का नेता दहाड़ा। ढाबा मालिक सिर झुकाए खड़ा था। "बच्चों आज से तुम आज़ाद हो ! जाओ जी लो अपनी जिंदगी!" नेता अपनी मूंछों को ताव देता हुआ गर्व से बोला। "तो क्या आज से काम बंद !" लगभग दस वर्षीय रामू ने हिम्मत करके पूछा । "हाँ आज से काम बंद! जाओ खेलो कूदो, पढ़ने जाओ ! " विजयी मुस्कान के साथ नेता जी बोले । " तो क्या अब खाना फिर से बंद और माँ की दवाई भी ..." इतना कहकर वह बालक फूट फूट कर रो पड़ा। नारों की जगह निस्तब्धता ने ले ली। मूक दर्शकों में से एक व्यक्ति भीड़ को चीरता आगे आया और बोला - "मेरा कार गैराज है। पांच बच्चों की जिम्मेदारी मैं उठा सकता हूँ। सुबह बच्चे स्कूल जाएँ और दिन में ट्रेनिंग ले।" बच्चों के चेहरे खिल उठे। हुजूम का नेता माथे पर आये पसीने को साफ करता हुआ धीमे से बुदबुदाया - "हे भगवान ! आज ये नेक बंदा भेज कर एक बहुत बड़े पाप से बचा लिया आपने!" "बाबूजी सब आप की तरह सहृदय हो तो बच्चों को बाल मजदूरी का दंश झेलना ही न पड़े।" ढाबा मालिक ने हाथ जोड़कर कहा । हुजूम ने उत्साह से नारा लगाया - बाल मजदूरी हटाएंगे, बच्चों को सक्षम बनाएंगे ।