नया कम्बल

नया कम्बल

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इस बार कड़ाके की ठंड पड़ी थी। शायद हर बार पड़ती है। पर इस बार सूर्या को ज़्यादा सर्दी महसूस हो रही है।13 साल का हो गया है और लंबा भी। लड़के छेड़ते हैं उसे इस लिए माँ को साफ मना कर दिया कि इन सर्दियों में उसके लिए अलग कम्बल का इंतज़ाम कर दे। माँ के कम्बल में अब वो समाता भी तो नहीं। पिछले साल तक तो माँ के साथ ही सोता रहा। सर्दी पता ही नहीं चलती थी। माँ बेटे को चिपटा कर सोती। मज़ाल सर्दी की जो बेटे को सताए!

किस्मत से एक कम्बल मिल गया, घाट पर पड़ा। बहुत ज़्यादा घिसा हुआ था और फटा भी। कोई छोड़ गया होगा। हो सकता है उसका मालिक रहा ही न हो ! पर सूर्या खुश हो गया।

सर्दी बढ़ती जा रही थी। आज तो हाड़ कंपा देने वाली ठंड थी। कमली ने सूर्या से कहा कि उसके पास सो जाए। दोनों कम्बल जोड़ लेंगे। पर किशोर बेटा कहाँ मानने वाला था। दाँत बजते रहे लेकिन पुराना कम्बल लपेटे पड़ा रहा। नये साल की देर रात को एक दानी सज्जन मार्किट के बरामदे में सोए सब जनों को एक एक नया कम्बल ओढ़ा कर गए। कमली ने ईश्वर के उस बंदे का शुक्रिया अदा किया और सूर्या से कम्बल अच्छी तरह लपेट लेने को कहा ताकि कोई चोरी न कर ले। सूर्या ने जवाब नहीं दिया, शायद सो चुका था। पल भर में कम्बल की गर्माहट में कमली भी ऐसी गहन नींद में गयी कि सुबह सूरज चढ़े नींद खुली। देखा तो सूर्या पर नया कम्बल नहीं था। कई आवाज़े लगाई। सूर्या का शरीर बर्फ की तरह ठंडा था। बच्चा सर्दी से लड़ न पाया और ज़िन्दगी की जंग हार गया। नया कम्बल मिलने से पहले ही ... शायद ठंड ...उसे अपने गर्म आगोश में .. ले चुकी थी।



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