नवम्बर की वो रात
नवम्बर की वो रात
18 नवंबर 2016 को मेरी शादी थी।सारी तैयारियां धूम धाम से चल रही थी ।शादी को सिर्फ दस दिन रह गए थे ,आज सुबह से दिन कुछ बेचैन सा था कि अचानक रात 8 बजे समाचारों में खबर आई कि 12 बजे बाद से 500 और 1000 रुपये के नोट नही चलेंगे।
खबर सुनते ही मम्मी पापा के पैरों से जैसे जमीन ही निकल गयी थी।फिर मैने हिम्मत कर के दोनो को समझाया कि ऐसा कुछ नहीं होगा, बस हमें अपने पैसे बैंक में जमा करने हैं।अगले दिन खबर आई कि सिर्फ 2 लाख ही जमा हो सकते हैं। पापा सुबह 9 बजे बैंक गए, सोचा भी नहीं था उस से बड़ी लाइन थी। पांच घण्टे खड़े होने के बाद लंच हो गया और बैंक बंद बैंक में जाने का नम्बर भी नहीं आया।
घर लौट कर सोच था कल काम हो जायेगा लेकिन ऐसे करते चार दिन निकल गए, फिर पांचवे दिन जा कर बैंक में अंदर जाने को मिला कि तभी पापा के आईने में तेज दर्द हुआ और 5 मिंट के अंदर ही बैंक में ही हार्ट अटैक से उन की मौत हो गयी।
आज भी याद कर के रूह सी सर उठती है कि किस तरह सरकार के एक फैसले ने सब को फ़टी जेब हाल में पहुँचा दिया था।
नोटबन्दी में हुई मौतों का कोई मुआवजा भी सरकार द्वारा नहीं दिया गया था।
आखिर कौन था उन मौतों का जिम्मेदार ?
सरकार या आम आदमी खुद जो सरकार के हाथ की कठपुतली है ?
