कृष्ण की पटरानी श्री यमुने

कृष्ण की पटरानी श्री यमुने

2 mins
5.4K


उत्तराखंड के गढ़वाल जिला की टिहरी यमुनोत्री का यमुना नदी का उद्गम स्थल है। उत्तरभारत से होती हुई यमुना जी ब्रज क्षेत्र से हो कर इलाहाबाद के संगम में विलीन हो जाती है।

त्रिवेडी संगम में गंगा और सरस्वती नदी के साथ यमुना गुप्त रूप में मिलती है और वहाँ से विलीन हो जाती है।

यह तो यमुना नदी का क्षत्रिय इतिहास है।

पौराणिक मान्यताओं के आधार पर धार्मिक कथा यह है कि यमुना सूर्य देव और संज्ञा की पुत्री थी। सूर्य देव के दो संताने हुई यम (यमराज)और यमुना । जब सूर्य देव की पत्नी संज्ञा तप करने के लिए गयी क्योंकि वो सूर्य देव का ताप सहन नही कर पा रही थी। तो अपनी छाया को सूर्य लोक में छोड़ कर गयी थी। ये बात किसी को ज्ञात नहीं थी। लेकिन जब छाया के शनि और ताप्ती संताने हुई,तो यम और यमुना से उन का व्यवहार बदल गया।

माता से विमाता जैसा व्यवहार से खिन्न हो यम ने यमलोक में रहना शुरू कर दिया, तब यमुना गौ लोक चली गयी और वहाँ से धरती पर आ गयी।

धरती पर यमुना कृष्ण की चौथी पटरानी भी हुई। कृष्ण ने बाल पन की ज्यादातर लीलाए यमुना नदी के तट पर ही की है।

कृष्ण यमुना को कालिंदी नाम से पुकारते थे। जब कृष्ण जन्म के बाद वासुदेव जी कृष्ण को गौकुल ले जाने लगे तब यमुना में उफान आ गया और जल स्तर बढ़ने लगा।

ये देखकर कृष्ण ने अपना पांव नीचे किया,तब श्री कृष्ण के चरण छू नदी का जल शांत हो गया।

एक बार जब यमुना जी से मिलने भाई यमराज आये तो बहन ने उन को तिलक किया और भाई ने वरदान मांगने को कहा,तब यमुना जी ने ये वरदान लिया कि जो भाई बहन आज के दिन मुझ में स्नान करें वो यमलोक को ना जाये।

भाई यम ने बहन यमुना को ये वर दिया कि जो भी भाई बहन कार्तिक मास ,कृष्ण पक्ष की दौज को साथ मे यमुना में स्नान करेंगे वो मेरे लोक को नही आएंगे।

आज भी मथुरा में भाई दौज को सैंकड़ो श्रद्धालु स्नान करते है।

तो यह थी माँ यमुना की कहानी,माँ यमुना जी और कृष्ण को कार्तिक मास बहुत प्रिय है। इसलिए कार्तिक मास में यमुना स्नान करने की प्रथा है।


Rate this content
Log in