'नथ'
'नथ'
गाँव मेंं काफी गहमागहमी थी क्योंकि मुखिया जी की बेटी का द्विरागमन था उसे लेने ससुराल से चार-पाँच लोग आये थे पति भी साथ मेंं थे।पति शौकीन मिजाज थे उन्हें थोडा़ सिगरेट आदि का शौक भी था नफासत पसंद भी थे अपने साथ एक बडी़ ही खूबसूरत चाँदी की एस्ट्रे लेकर आये थे जो छोटे जूते जैसा था। किसी काम से वो थोडी़ देर के लिए एस्ट्रे छोड़कर बाहर गये बस घर मेंं तो हंगामा ही मच गया सीधे-सादे
गंवई लोग जिन्होंने कभी एस्ट्रे देखा तक नहीं था उनका अचंभित होना लाजिमी ही था।
इसकी जानकारी लेने के लिये मुखिया जी की पत्नी एस्ट्रे लेकर गाँव की सबसे अक्लमंद महिला के पास गई जिन्हें सब नाम न लेकर ज्ञानी बुआ बोलते थे।जब मुखिया जी की पत्नी ने उन्हें एस्ट्रे दिखाकर अपनी समस्या बताई तो ज्ञानी बुआ खिलखिला कर हँस पडी़ और मुखियाइन से कहा अरे अक्ल के दुश्मन हो तुम सब यह तो नये चलन का नथ है दामाद हम सब की परीक्षा ले रहे हैं हम सब भी मुर्ख नहीं हैं जाओ इसमें जो छेद है उसमें मोटा धागा डालकर बिटिया के नाक में पहना दो उन्हें उनका जबाब मिल जायेगा।मुखियाइन ने घर आकर सबसे पहले यही काम किया।
इधर दामाद जी एस्ट्रे न मिलने पर दुखी थे किसी से पूछ भी नहीं सकते थे ससुराल की बात थी खैर रात में खाना-पीना होने के बाद वे अपने कमरे में सोने गये वहाँ अपने एस्ट्रे की नयी जगह देख ठठाकर हँस पडे़ पूरा घर उनकी हँसी से गूंज रहा था घर बाले डर रहे थे कि कहीं दामाद का दिमाग तो खराब नहीं हो गया?।
नयी दुल्हन एक तो अपने पति के लाये हुये नथ को पहनकर दर्द से परेशान थी उसपर से पति की हँसी ने उसे और दुखी कर दिया वह रोने लगी तब दमाद को अपनी भूल समझ में आयी उन्होंने पत्नी की नाक से एस्ट्रे निकाली और उसे एस्ट्रे के बारे में सब बताया ।
नयी दुल्हन क्या बोलती गाँव कि हँसी कैसे कराती ।पति ससुराल में यह बात नहीं करेंगे इसके एवज में वह ताउम्र उनकी बात मानेगी।
ज्ञानी बुआ का ज्ञान उसे बहुत भारी पडा़ था।इसके बाद गाँव मेंं ज्ञानी बुआ की साख गिर गई थी।