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Surendra kumar singh

Drama

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Surendra kumar singh

Drama

नृत्य

नृत्य

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ये समुन्दर का उग्र रूप कब तक जारी रहेगा। लहरें तो लग रहा है आकाश को छू लेंगी। चाँद सिरारे सूरज,सबको बहा ले जायेंगी अपनी लहरों के साथ साथ।

मेरी निगाहें इन प्रलयकारी लहरों में उस पारदर्शी क्यूब को ढूंढ रही हैं,जिसमे मनुष्य को बंद कर हमने समुन्दर की सतह पर उतार दिया था।

जमीन का तो दीदार ही नही हो रहा है। दरख़्त,बस्तियां की बस्तियां,पहाड़ सब अपनी जड़ों से उखड़कर लहरों में विलीन हो गये हैं,लुप्त हो गये हैं। चारो तरफ विनाश का तांडव रुकने का नाम ही नही ले रहा है और तुम निगाहें लगाये बैठे हो एक छोटे से क्यूब पर।

भई हमारा क्यूब समुन्दर के गर्भ में डूब नहीं सकता,तैरना उसका गुण है,और पानी की सतह पर बने रहना उसका धर्म। तो वह पानी मे विलीन हो गया होगा मुमकिन नही है। इन ऊंची ऊंची उठती हुयी लहरों के बीच कभी कभी दिखाई पड़ता है,कभी कभी कभी खो जाता है। पानी का दबाव उसे पानी के अंदर कर देता है ,फिर वह सतह पर आ जा रहा है। यही क्रम लगा हुआ है। अंदर बाहर,बाहर अंदर यही क्रम लगा हुआ है।

समुन्दर को जरा शांत होने दो,स्थिर होने दो। अगर क्यूब नष्ट नही हुआ है तो दिख जायेगा। तुम्हे याद है जब पानी बढ़ना शुरू हुआ था,पहले हमारी बस्ती में घुसा, फिर हमारे घर मे,हम लोग मेज पर चढ़ गये, फिर पानी मेज के ऊपर से बहने लगा,फिर हम लोग अपने घर की छत पर चढ़ गये थे। कुछ लोग नाव लेकर हमे बचाने आये थे,बोल रहे थे या मेरी नाव में बैठ जा।

हां हां मुझे याद है। कुछ लोग नाव लेकर कई बार हमारे पास आये थे। मैंने उन लोगों को अपनी ओर आते हुये देखा था। मगर मैंने उनकी आवाज नही सुनी थी शायद। शायद तुम्हे भ्रम हो गया था कि वो लोग तुम्हे बचाने आये थे और तुम्हे अपनी नाव पर आने का निमंत्रण दे रहे थे। जानते हो तब भी मेरा ध्यान क्यूब पर ही था,जिसको मैंने समुन्दर की लहर पर छोड़ दिया था।

लेकिन वो लोग यहां नजर नही आ रहे हैं। एक तो उनकी नाव छोटी थी,दूसरे वे कुछ हड़बड़ी में थे। शायद उनको बाढ़ की विभीषिका का अनुमान नही था। वैसे उनमें उत्साह तो था,लेकिन मुझे लग रहा था कि उनमें क्षमता और धैर्य की थोड़ी कमी थी। अब मुझे लग रहा है वे लोग समुन्दर के गर्भ में समा गये होंगें। हम लोग उनकी नाव में होते तो हम लोगों का हश्र भी उन लोगों जैसा होता।

उत्साह को कम मत समझो,बचाने का प्रयास मनुष्य से स्नेह की गतिविधि थी। बहुत से लोगों को बचाने का उनका निस्वार्थ इरादा था। वे लोग भी हम लोगों की तरह किसी किनारे पर होंगें। यद्यपि सुरक्षा का उनका टाइमिंग गड़बड़ था,सावधानियों में भी थोड़ी कमियां थीं। उनके पास नाव थी,चप्पू थे,उनके। पास आपातकालीन ब्यवस्थाएँ नही थीं।

हां वे लोग लहरों का प्रतिरोध कर रहे थे। एक जोखिम भरा काम होता है लहरों के विरुद्ध अभियान। पानी के स्वभाव के साथ साथ ही सुरक्षा मुमकिन होती है। एक इतेफाक भर था उनका हमारे पास आना और सहयोग का ऑफर देना।

अच्छा तो अब लहरों के वेग में कुछ कमी दिखाई दे रही है। समुन्दर का शोर भी थोड़ा शांत हुआ है।

ये समुन्दर का रुद्र रूप बिल्कुल शांत हो जायेगा। इतना शांत और स्थिर हो जाएगा कि तुम। पानी मे अपना प्रतिबिम्ब सरलता से देख सकोगे। माना बहना जल का स्वभाव है,लेकिन तटबंधों को तोड़कर इस तरह का अनियंत्रित प्रवाह कभी कभी होता है। पानी के स्वभाव के अतिरिक्त ढेर सारे बल वहां अपना प्रभाव दिखाते हैं। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण,अनियंत्रित हवाएं, पानी का स्वभाव सब मिलकर तटबंधों को तोड़ डालते हैं औऱ समुन्दर अपने उग्र रूप में आ जाता है।

समुन्दर की प्रकृति होती है वह अपने अंदर प्रविष्ट होने वाले तत्वो को किनारे की ओर उछालता रहता है,मानो कहता है मेरे गर्भ में मत जाओ,किनारे किनारे रहो। किनारे से मुझे देखो,किनारे किनारे ही चलते रहो।

अब सचमुच उग्रता समाप्त हो गयी है। नीला पानी स्थिर हो गया है,शांत हो गया है। हमारी परछाइयाँ समुन्दर की सतह पर पड़ रही हैं और देखो वो कितनी स्थिर हैं। परछाइयाँ पानी पर हमारे निशान की तरह लग रही वो देखो मेरा क्यूब पानी की सतह पर तैरता हुआ दिखाई पड़ रहा है। रंग उसका जरूर बदल गया है। सफेद से बैगनी हो गया है लेकिन उसकी पारदर्शिता में जरा सी भी कमी नही आयी है। देखो उस क्यूब में कैद आदमी स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है। पूरे वातावरण को ध्यान से देखो,चाँद ,सितारे सब नोथ्य मे चले गये हैं। दूर दूर तक नीलिमा ही नीलिमा दिखाई पड़ रही है। प्रकाश का रंग स्वर्णिम नीला हो गया है। समुन्दर खामोश है,हवा खामोश है,पूरा परिवेश स्तब्द्धता में डूब हुआ है। यहाँ पर प्रकाश बहता हुआ दिख रहा है। पानी के बाद अब प्रकाश बहता हुआ दिखायी पड़ रहा है। लग रहा है हम लोग प्रकाश की लहरों में बह रहे हैं। हम लोगों का रंग भी बदला हुआ दिखाई पड़ रहा है। बिल्कुल स्वर्णिम बैगनी। लग रहा है प्रकाश हम लोगों की चमदियों को फाड़कर बाहर निकल रहा है।

वो देखो उस तरफ मेरा क्यूब। क्यूब में कैद खामोश आदमी में अब तो हरकत दिखायी पड़ रही है। स्पष्ट बिल्कुल स्पष्ट दिखाई पड़ रही है। देखो धीरे धीरे वो आदमी नृत्य कर रहा है,उसके पास खड़ी होकर कोई स्त्री उसके नृत्य का अवलोकन कर रही है।

अद्भुत नृत्य है। ऐसा मैंने कभी देखा नही है। हाथ लहरा रहे हैं,पैर लहरा रहे हैं। शरीर गैस के पिंड की तरह हाथ और पैर के समांतर सन्तुलन बनाता हुआ प्रतिपल अपना रूप बदल रहा है। इस नृत्य में अद्भुत लयबद्धता है। लग रहा है नोथ्य में कोई गीत बज रहा है। नर्तक शब्द के बोल से झंकृत हो रहा है। निश्चित संगीत पर लयबद्ध नृत्य कर रहा है।

सुनो,देखो हलचलों की गति के समांतर ध्वनि में उतार चढ़ाव दिखाई पड़ रहा है सुनाई दे रहा है।

ध्वनि नृत्य का ही हिस्सा है नृत्य के कम्पन से ही ध्वनि निकल रही है।

आश्चर्य की बात तो अब देखो

हां हां नर्तक अब स्त्री बन गया है स्त्री औऱ वो स्त्री जो खड़ी होकर पुरुष के नृत्य का अवलोकन कर रही थी,पुरुष बन चुकी है।

सम्भव है दोनों ने अपनी भूमिकायें बदल ली हों। अब देखो संयुक्त नृत्य। दोनों साथ साथ नृत्य कर रहे हैं। नृत्य करते करते दोनों एक ड्सरे के पास आ रहे हैं और दोनों संयुक्त हो गये। मिलकर एक हो गये। लगता है कभी स्त्री नाच रही है कभी पुरूष नाच रहा है। हमने तो क्यूब में एक ही आदमी को बंद किया था।

लेकिन वो आदमी प्रकृतस्थ था,भाव मनुष्य था। संकटकालीन परिस्थितियां प्रलयकारी दृश्य था। प्रकितस्थ पुरूष ने अपना एकाकीपन दूर कर लिया। अपने अंदर की स्त्री को निकालकर बाहर कर लिया। सहकर्मी और सहचारिणी बना लिया।

किंतु अब हम निर्णय नही कर सकते कि नर्तक पुरुष है या स्त्री या दोनों एक ही हैं। हम यह भी निर्णय नही कर सकते कि नृत्य में नेपथ्य से आती आवाजें किन वाद्य यंत्रों की हैं। हम नृत्य को कोई संज्ञा देने की स्थिति में भी नही हैं। हम सिर्फ़ नृत्य देख सकते हैं औऱ संगीत सुन सकते हैं।

थोड़ा करीब चलते हैं क्यूब के वास्तविकता जानने के लिये और स्पष्टता के साथ नृत्य देखने के लिये।

ध्वनि की दिशा में चलते वाद्य यंत्रों का स्वरुप देखने के लिये।

मैं यही से नृत्य और संगीत का आनन्द लूंगा। तुम चाहो तो जाओ करीब। मैं यहीं तुम्हारा इंतजार कर सकता हूँ।

अद्भुत नृत्य चल रहा है, संगीत बज रहा है। हवा समुन्दर,दिशाएं,अकर्षनबद्ध हो नृत्य का अवलोकन कर रहे हैं।

थोड़े अंतराल के बाद

अरे भाई लौट आये क्यूब के पास जाकर।

भई मैने कोशिश की क्यूब के पास जाने की। लेकिन लगा मेरे पैरों से क्यूब सीधी रेखा में बंध हुआ है। जितना आगे बढ़ता क्यूब उतना पीछे सरक जाता। मेरे पैरों की आहट से नृत्य की भंगिमा भंग नही होती लेकिन क्यूब पीछे सरक जाता है।

तुम चल के वहां नही पहुँच सकते। ििनतजार करो यहीं किसी हर चमत्कार का। शायद तुम्हे ढूंढने वाले अपनी टूटी हुई नाव लिये फिर आ जाये तुम्हारे पास। तब तक ध्यान में उस नृत्य का आनन्द लो, जीवन का आनन्द लो औऱ जीवन की नश्वरता पर चिंतन करो। हाँ आश्वस्त रहना सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी बहुत कुछ शेष रह जाता है जीवन के लिये।


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