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Madhu Vashishta

Action Inspirational

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Madhu Vashishta

Action Inspirational

नफरत

नफरत

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   हमारे एक मित्र सतवीर सिंह पंजाब से अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गए थे। पंजाब में उनके बहुत से खेत थे जो कि धोखे से उनके भाइयों ने अपने नाम करवा लिए थे और इन्हें वहां से पलायन करके दिल्ली आना पड़ा। दिल्ली आकर छोटा मोटा सामान सदर बाजार से लाते थे और फुटपाथ पर ही दुकान लगा लेते थे। धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने एक कपड़े की दुकान भी खोल ली थी। उनकी दो बेटियां और एक छोटा बेटा था। बच्चों की पढ़ाई और खर्च में जब भी कभी उन्हें पैसों की तंगी होती तो वह अक्सर यही सोचा करते थे कि मैंने पंजाब में खेती-बाड़ी करते हुए कभी भी अपने बारे में नहीं सोचा। अपने लिए मैंने कुछ भी नहीं करा अपने भाइयों को बड़ा करने के लिए जो भी मुझसे बना मैंने करा लेकिन मेरे भाइयों ने अंततः मुझे धोखा दे दिया। जितना भी वह परेशानियों से जूझते उतना ही उन धोखेबाज भाइयों के प्रति नफरत उनके चेहरे पर टपकने लगती थी। यूं ही समय बीत रहा था और उनकी मेहनत से उनकी दुकान भी अब अच्छी ही चलने लगी थी। दोनों लड़कियों को तो उन्होंने सरकारी स्कूल में डाल रखा था और छोटे बेटे को उन्होंने इंग्लिश स्कूल में डाल दिया था। वह अक्सर यही कहते थे


कि कुछ समय बाद नाइंथ क्लास से अपनी लड़कियों को भी मैं इंग्लिश स्कूल में ही डाल दूंगा बस थोड़ा सा काम और बढ़ जाए तो अच्छा ही हो जाएगा। इस बीच उन्होंने लोन लेकर एक छोटा सा फ्लैट भी खरीद लिया था।


              इंसान कुछ सोचता है लेकिन विधाता को तो कुछ और ही मंजूर होता है। एक समय दिल्ली में कुछ ऐसा दंगा भड़का कि जिसमें उनकी जान ही चली गई। अब सतवीर भाई साहब की पत्नी दिल्ली में अकेली ही रह गई थी। गांव में सूचना भी कर दी थी लेकिन----। उनके घर पर कुछ पड़ोसी और दोस्त ही थे, पंजाब से कौन आएगा कौन नहीं, भाभी जी को कुछ भी अंदेशा नहीं था। हम सब भी बेहद दुखी होकर भाभी जी को सांत्वना दे रहे थे कि सब ठीक हो जाएगा। अभी तो आप खुद को और बच्चों को संभालो। हालांकि भाभी जी बेहद हिम्मत से काम ले रही थी लेकिन फिर भी। भाभी जी रोते रोते यही कह रही थी कि अब तो पंजाब में भी सबका कलेजा ठंडा हो गया होगा, अब तो कोई उन्हें बोलने पूछने वाला ही नहीं है वह सब तो मुक्ति पा गए। सोचते सोचते ही वह जोर-जोर से रोने लगती थी। मैं मेरी पत्नी और अड़ोस पड़ोस के परिवार भी उन्हें बेहद दिलासा दे रहे थे।


           सुबह उनकी अंत्येष्टि क्रिया होनी थी, अभी शाम तक पंजाब से कोई आया नहीं था, भाभी जी अकेली थी और बेहद परेशान हो रही थी। हम सब रात को फ्लैट में उनके घर में ही रुके हुए थे। भाभी जी ने जिन जिन को पंजाब में सूचना देने के लिए कहा था हमने उन सब को सूचना भी दे दी थी।


     रात के लगभग 1:00 बजे के करीब हमारी कॉलोनी में एक ट्रक आया। उसमें भाभी जी के पंजाब से बहुत सारे रिश्तेदार आ गए थे। सतबीर भाई साहब के दोनों भाई अपने परिवार सहित आए थे और उन्होंने भाभी जी को दिलासा देते हुए कहा आप यह मत सोचिए कि आपका कोई नहीं है ।आप हमारा परिवार हो, और यह भी मत सोचना कि वहां आपकी जमीन नहीं है सब कुछ भाई का वैसे का वैसा ही पड़ा है और उनका सब कुछ उनके पुत्र को मिले, इसकी जिम्मेवारी भी हम लेते हैं। आप चिंता मत करो उसके बाद उन्होंने ट्रक में लदा हुआ खाने पीने का सामान घी, चावल, आटा वगैरा निकाला । साथ में आई औरतों ने घर को संभाल लिया। सतबीर जी के भाइयों ने भाभी जी को बहुत से रुपए देते हुए कहा यह पिछले साल की खेती की कमाई है। 13 दिन बाद वापिस जाते हुए उन्होंने भाभी जी से कहा कि आप अगर पंजाब वापस चलना चाहो तो चल सकती हो लेकिन भाभी जी ने जाने से मना कर दिया उन्होंने कहा कि अब वह यहां ही रह कर बच्चों को पढ़ाना चाहती है और अपनी दुकान संभालना चाहती है। सतबीर भाई साहब के छोटे भाई ने अपने 18 साल के बेटे को भाभी जी के पास ही छोड़ते हुए कहा अब यह आपका ही बेटा है, दुकान के काम में यह आपकी सहायता करेगा और आपको किसी भी चीज की जरूरत हो आप बतलाना।


       पाठक गण आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि अब सतवीर भाई साहब की दुकान एक बहुत बड़े शोरूम में बदल चुकी है और उनका छोटा बेटा भी अब दुकान पर बैठता है। सतबीर भाई साहब के छोटे बेटे का बेटा वह अभी दुकान में उनके बेटे की सहायता ही करता है और कभी अपने आप को उसने मालिक नहीं समझा। उसका भी विवाह हो चुका है और उसने भी कॉलोनी में एक और फ्लैट ले लिया है। उसके बाद भाभी जी की दोनों लड़कियां इंग्लिश स्कूल में भी पढ़ी और दोनों की शादी भी हो गई है।


           नफरत या प्यार यह सिर्फ मन की भावनाएं हैं। परमात्मा ने तो संसार में केवल प्यार देकर ही भेजा है लेकिन अपनी संकुचित मानसिकता से लोग इसे नफरत में बदल देते हैं।



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