नफरत या प्यार।
नफरत या प्यार।
विक्की का चौथी बार फोन आया है, कभी वह वीडियो कॉल करता है और कभी वॉइस कॉल, जानकी जी उसका फोन उठाती है और फिर रख देती हैं। दूर फोन रखने उसकी आवाज सुनाई दे रही है मम्मी आप ठीक तो हो। अब कैसी तबीयत है आपकी? आप बोल क्यों नहीं रही। हालांकि जानकी जी का भी मन अंदर तक कचोट रहा था और गुस्से या प्यार के अतिरेक में आंखें उनकी भी गीली थी लेकिन वह कुछ कहना भी नहीं चाह रही थी।
जी हां विक्की जानकी जी का इकलौता बेटा था। पति की मृत्यु के बाद जानकी जी ने पूरी हिम्मत से काम लिया और 13 दिन के बाद पिता का क्रिया कर्म करके उस को कॉलेज जॉइन करने के लिए वापस चेन्नई भेज दिया था। वह चेन्नई के किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता था और वही हॉस्टल में रहता था। जानकी जी और वर्मा जी दिल्ली में सरकारी मकान में रहते थे। पति की मृत्यु के बाद उन्हें मकान भी खाली करना पड़ा। हालांकि अनुकंपा के आधार पर उन्हें सरकारी नौकरी मिल सकती थी लेकिन क्योंकि वह इतना पढ़ी लिखी नहीं थी इसलिए छोटे पद पर नौकरी करना उन्हें स्वीकार नहीं था। वर्मा जी ने अपने जीवन काल में एक अच्छा सा घर दिल्ली में बना रखा था और उनकी पेंशन के पैसे, जानकी जी की जीविका के लिए काफी थे। विक्की भी फाइनल ईयर में ही था और उसकी कैंपस सिलेक्शन गुडगांव में ही किसी कंपनी में हो गई थी जानकी जी उसके आने का इंतजार कर रहीं थी। इस बीच उन्हें सरकारी मकान भी खाली करना पड़ा और अपने दो मंजिले मकान के नीचे वाले फ्लोर को खाली करवा कर उन्होंने अकेले ही वहां पर शिफ्ट भी कर लिया था।
वर्मा जी की मृत्यु और दफ्तर बैंक इत्यादि के कार्य अकेले करते हुए वह बेहद घबरा चुकी थी और थक भी गई थी। लेकिन परमात्मा ने उनकी सुनी और उनका बेटा इंजीनियरिंग करके घर वापस आ गया। शुभ मुहूर्त निकाल कर उसका विवाह भी हो गया था। विक्की के भी जल्दी ही एक बेटा भी हो गया था। एक बार घर में फिर से रौनक हो गई थी। जानकी जी की खुशी का कोई पारावार न था । वह अपने पोते को संभालती हुई उसके साथ खेलती हुई बहुत खुशी महसूस करती थी। उनकी बहू भी उनके बेटे के ही जैसे एक आईटी कंपनी में ही नौकरी करती थी।
खुशी का समय था पंख लगाकर कब निकल गया पता ही नहीं चला, कुछ साल बाद उनकी बेटे की ट्रांसफर हैदराबाद में हो गई थीऔर वह सपरिवार हैदराबाद ही चला गया। जानकी जी को अपना घर छोड़ने की कोई इच्छा नहीं थी इसलिए उन्होंने विकी को कहा कि वह थोड़ा सा घर का इंतजाम कर ले अपने सारे सामान को दो कमरे में रखकर वह नीचे का भी किराए पर दे देंगे और फिर तुम्हारे साथ हैदराबाद आ जाऊंगी। जानकी जी को जब यहां बहुत अकेलापन लगा तो वह भी हैदराबाद ही चली गई।
हैदराबाद में दोनों के आई.टी. वाले ऑफिस साथ साथ ही थे और वही बच्चों के क्रेच की सुविधा भी थी। लेकिन जानकी जी जब हैदराबाद गई तो वह चाहती थी कि उनका पोता मोंटी उनके साथ ही रहे लेकिन विकी और बहु रानी की इच्छा थी कि प्ले स्कूल से खेल कर वह क्रैच में आराम से रह पाता है। ऑफिस में ही उनके खाने-पीने की भी अच्छी सुविधा है इसलिए उन्होंने मोंटी को घर में जानकी जी के साथ छोड़ने से मना कर दिया था।
नया शहर ,नई जगह और वर्मा जी का भी साथ भी नहीं। बच्चे भी खुद में ही व्यस्त थे मानो पास होकर भी पास नहीं। जानकी जी का बिल्कुल हैदराबाद में मन नहीं लग रहा था कि तभी एक दिन विक्की ने बोला कि उसका कनाडा जाने का प्रोसीजर पूरा हो गया है। वीज़ा वगैरा लगकर वह कुछ समय बाद कैनेडा चला जाएगा और सब को बुला लेगा। बहुरानी भी अपनी कागज वगैरह पूरे करने में लग रही थी। विक्की के कनाडा जाने के बाद भी जानकी जी की दिनचर्या में कोई फर्क नहीं आया। अब भी बहु रानी मोंटी को साथ ही ऑफिस लेकर जाती थी और उसने कुछ ऐसा मैनेज कर लिया था कि उसकी भी ट्रांसफर कनाडा में ही हो गई थी। अब वह भी जाने की तैयारी में थी और हैदराबाद में अब किराए का मकान रखने की कोई तुक भी नहीं थी। विक्की कुछ दिनों के लिए इंडिया वापस आया और उसने जानकी जी से कहा कि मैं आपको भी जल्दी ही बुला लूंगा तब तक आप वापिस दिल्ली वाले घर में ही चले जाओ।
और कोई चारा ना देखकर वह अपने दिल्ली वाले घर में वापस आ गई। विक्की अभी ज़िद पकड़े हुए था कि आप तो कनाडा आ ही जाओगी तो क्यों ना हम इस घर का ऊपरवाला फ्लोर बेच दे क्योंकि कनाडा में उन लोगों को पैसों की भी जरूरत थी। विक्की उन्हें यही समझाने की करने की कोशिश कर रहा था कि यूं भी आप इतने बड़े घर को अकेले संभाल नहीं पाओगे और किरायेदारों से किराया मिले ना मिले इस मकान को चाहे तो पूरा ही बेच दो और एक छोटा सा फ्लैट लेकर वह अकेली बहुत सुरक्षा वाले माहौल में रह सकती हैं विक्की यह सब काम बहुत जल्दी करना चाहता था लेकिन जानकी जी इस चीज के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। अब बिना वजह ही दोनों में तनातनी बढ़ रही थी और जाते हुए भी विक्की अपने परिवार के साथ बेहद गुस्सा होते हुए यह कह कर गया कि आपको पैसे और यह घर ही ज्यादा प्यारा है ना अब आप अपने पैसे और घर के साथ में ही रह लो, ना तो आप हमारी चिंता करना और ना ही आपकी हम चिंता करेंगे। जानकी जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वर्मा जी के गाड़ी मेहनत की कमाई को यूं ही नहीं बेचना चाहती थी और आजकल के माहौल में किस पर कितना विश्वास करें उन्हें खुद कुछ समझ नहीं आ रहा था और ना ही वह विक्की को कुछ समझा पा रही थी।
विकी के जाने के बाद ही उन्हें पता पड़ा कि विक्की ने एक प्रॉपर्टी डीलर से बात करके उनके फ्लोर को बिकवाने का पूरा इंतजाम कर रखा था। अब जानकी जी के मना करने पर वह प्रॉपर्टी डीलर भी भुनभुनाता हुआ चला गया।
उसके बाद विक्की और बहु रानी दोनों का कनाडा पहुंचने का भी फोन उनके पास नहीं आया। वह भी हद परेशान हो उठीं थी। ऊपर रहने वाले किरायेदारों की सहायता से और कुछ रिश्तेदारों की मदद से उन्होंने अपने जीवन को आगे बढ़ाने की चेष्टा की। इस बात की पूरी कोशिश करी कि उन पर अकेलापन हावी ना हो जाए। अपनी शारीरिक और मानसिक परेशानियों से वह खुद ही जूझ रही थी कि विक्की का फोन फिर से आया और उसने जानकी जी का हाल पूछते हुए उन्हें जल्दी ही अपने पास बुलाने का आश्वासन दिया और उनसे फिर से ऊपर के फ्लोर को बेचने का प्यार से अनुरोध किया। बातें करते करते उसने मोंटी को भी फोन दिया और मोंटी से कहलवाया कि दादी पापा की बात मान लो ना पिलीज। उन्होंने फोन दूसरी तरफ रख दिया, हालांकि उन की आंखों से अश्रु धारा लगातार जो कि उन्हें भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर कर रही थी, बही जा रही थी लेकिन फिर भी उन्होंने अपने मन पर काबू किया और फोन को वहीं छोड़कर दूसरे कमरे में चली गई। फोन में बच्चों की आवाजें आ रही थी। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनकी आंखों से बहते हुए अश्रु बच्चों के प्रति प्यार के थे, मोह के थे, या कि नफरत के थे । काश आज वर्मा जी होते तो-----। लेकिन यह तो उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि अभी वह अपने घर को बिल्कुल नहीं बेचेंगी। ऐसा सोचते हुए वह अपने आप को भावनात्मक रूप से और मजबूत कर रही थी। थोड़ी ही देर में दूसरे कमरे से फोन की आवाज आनी भी बंद हो गई थी।
