नक्षत्र :भाग 1
नक्षत्र :भाग 1
परीलोक में बड़ा चिंता का माहौल था। सब चिंतित थे कि आखिर आगे क्या होगा। इस सब में परीलोक के महाराज ने परीलोक के सारे बड़े पदाधिकारी को राज सभा में बुलाया था।
सब लोग राज सभा में उपस्थित थे और महाराज राज सिंहासन पर बैठकर राजसभा की कारवाई आगे बढ़ाते हुए कहते है, " चिंता गहराती जा रही है। पाताल लोक से उन लोगों की गतिविधियों में काफी वृद्धि हो रही है। और तो और वो श्रण भी आने वाला है। कुछ पता नही चल रहा की क्या किया जाये।
तभी एक सभासद उठकर कहता है," यह तय है कि उनकी ओर से निषिका ही होगी। वह काफी काबिल और बुद्धिमान है। उसके बारे में कहाँ जाता है कि उसने न जाने उनके कितने कार्य को बहुत बखूबी से पूरा किया है। उसके बारे में यह भी सूना है की सामने वाले को भनक भी नही लगती और वो अपना काम करके निकल जाती है। "
यह सब बात की बात है पहले पता करना होगा की वह श्रण के लिए क्या करे की पाताल लोक के लोगो को रोक सके।
तभी वहाँ राजगुरु उपस्थित होते है और कहते है कि," यह जानकर क्या कर लो गे? जब के तुम्हारी कोई तैयारी ही नहीं।
सब जानते है जब सारे नक्षत्र मिलकर एक व्यक्ति को चुनेंगे और वह पातालवासी किसी भी तरह उसे अपनी ओर करने की कोशिश करेंगे। अगर वह यह करने में कामयाब हो गये तो उनकी शक्ति बहुत बढ़ जायेगी।
पहले तो हमें तय करना होगा की धरती पर हमारी ओर से उनको रोकने कौन जायेगा। अगर किसी दिमाग में कोई नाम है तो बोल दे। नही तो मैं तनिष्का नाम सुझाता हूँ। "
" क्या तनिष्का? महाराज की बड़ी बेटी। " सारे सभासद अंदर ही अंदर बात करने लगे।
" तनिष्का को मैंने खुद शिक्षा दी है और वो धरती के बारे में बाकी सबसे ज्यादा जानती है और इससे ज्यादा क्या चाहिए। " राजगुरु सभासदो को तनिष्का की खूबियां गिनाते हुए कहते है।
महाराज : पहले तनिष्का को पूछ लेते है।
तनिष्का को राजसभा उपस्थित होती है सबको प्रणाम करती है। और अपनी सहमति दर्शाती है।
तनिष्का उस दिन की तैयारियों में लग जाती है।