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Nilima Paliwal

Abstract

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Nilima Paliwal

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नजरिया

नजरिया

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 सुबह से ही मुक्ता अपने घर के काम जल्दी-जल्दी कर रही थी । मुकेशजी भी उसे हंसते-हंसते मदद कर ही रहे थे, और कह रहे थे ,#तो #आज से तुम्हारा नया सफर शुरू हो रहा हे ,मेरी तरह । मुक्ता ने कहा, हाँ,पर थोड़ा फर्क है। मुकेशजी ने कहा कैसे ? मैं हर दिन कुछ नया सीखुंगी और आकर आपको बताऊंगी।मुकेशजी हंसने लगे।

मुक्ता अपने नए सफर पर चल पड़ी। स्टार बस का उसका पहला सफर, उसके सीट के पास एक नन्ही बच्ची आकर बैठी। मुक्ता ने बच्ची से पूछा,"आपका नाम क्या है और कहा जा रही हो ?" उसने कहा,"निहाली", मैं समंदर देखने जा रही हूं पारशीवनी में। घोगरा नाम की जगह पर बहुत बड़ा समंदर है मेरी दादी ने मुझे बुलाया है उस समंदर को देखने के लिए। मुक्ता सोचने लगी कितना आसान है छोटे बच्चे को नदी दिखा कर #समंदर का एहसास करा देना।हम नजर तो नहीं बदल सकते पर अपना नजरिया बदल सकते हैं समाज को सुंदर बनाना है तो हमें भी हमारा नजरिया ही बदलना होगा । आज की सीख नजर को नहीं नजरिये को बदलो। मुक्ता हँसते हँसते अपने सफर पर चल पड़ी। 


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