निर्णय
निर्णय
आज की पार्टी में चर्चा का विषय था ‘रितु के बेटे की शादी।’ रितु को बेटे की शादी करनी थी, जिसे मालूम हुआ वो दो सलाह दे जाता। दूल्हे को कैसी दुल्हन चाहिए ये जाने बिना सभी ये बताने लगे कैसी दुल्हन लाओ और दुल्हन का चयन कैसे करो।
हार कर रितु ने कह दिया, “दुल्हन तो दूल्हे की पसंद की है अब कुछ सोचने का नहीं।” रितु का इतना कहना था कि अब लोग सलाह देने लगे कि अब आगे कैसे क्या करनी है कि दुल्हन घर की मान मर्यादा रखे।
सभी अपने अनुसार राय देते रहे और रितु उस पार्टी का मजा भूल अपने अतीत में उतर गई। छोटी थी तभी से वो देखती आई कि लोग बिना मतलब उसकी जिंदगी में दखल देने आ जाते। जब कभी वो उनकी बात काट देती तो लोग अनाप सनाप कुछ भी बोलने लगते - 'जिंदगी का कोई तजुर्बा नहीं और राय दो तो सुनना या मानना नहीं। आदि आदि... और जब वह बड़े का मान रखने के लिए उनकी बात मान लेती तो दूसरे ही क्षण वे ही कहते, ‘कुछ जानती ही नहीं छोटी छोटी बात भी समझानी पड़ती है।’ वो तो परेशान हो जाती।
अकसर लोग उसे चेतना की उदाहरण देते - ‘देखो हर बात पूछ कर करती है तो कभी गलती नहीं होती। उसका हर काम परफेक्ट होता है।’ पर उसने आज ये भी सुना चेतना तो एक दम कठपुतली है। वो तो कोई भी काम अपने दम पर करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाती…
लोगों की इस राय देने की आदत से वो भन्ना चुकी थी अतः जब रमा दी ने अपनी राय उस पर थोपनी चाही तो उसने साफ कह दिया, “मैं अभी मनन कर रही हूँ। मेरी चिंतन पूरी हो जाएगी तब आपलोगों की सुनूँगी।”
चौंक कर रमा दी ने कहा, “कैसी चिंतन.?”
“आजकल मैं जिससे मिलती हूँ वो ही मेरे स्वभाव, रहन-सहन, खान-पान की बातें कर शिक्षा देने लगता है। कहता है ये पुरानी आदतों को छोड़ो। नए जमाने की लडकियाँ ये सब बर्दाश्त नहीं करेंगी। ये रोज-रोज रोटी-चावल खाना, घर में सिलाई कढ़ाई करना, पुराने सामानों को सहेज कर रखना, बात-बात पर शिक्षा देना। अब तुम्हीं बताओ एक दिन में तो ये आदतें छूटेगी नहीं। इन पुरानी आदतों को छोड़ने की कोशिश कर रही हूँ।”
रमा दी उसकी बात को बीच मे ही काट उसे पुनः समझाना चाहा पर आज रितु लोंगों की आदत अच्छी तरह समझ चुकी थी कि वो क्या चाहते हैं और उनसे कैसे निपटना है। अपनी खीज को छुपाते हुए उसने कहना चाहा पर आवाज तख्त थी, खीज तो झलक रही थी, "आपलोग अपनी राय चेतना को ही दिया करें। कठपुतली एक ही ठीक रहती है एक से अधिक होने से आप भी उसमें उलझ जाएँगी।"
कहते हुए रितु वहाँ से चल दी। सदियों बाद आज उसका मन बहुत शांत लग रहा था। उसे एक शुकुन थी कि वो आज़ अपने निर्णय में कामयाब रही।
नोट - प्रायः लोगों की आदत होती है अपनी राय दूसरे पर थोपना । और जब वे नहीं मानते तो उन्हें बाध्य करना। इस मकड़जाल से उबरने पर शुकुन मिलता है।
