नीम की पीड़ा
नीम की पीड़ा


नाली के बगल में यह मासूम पैदा हुआ था। मां का कहीं अता-पता नहीं था। मुझे लगता लगता था इसे किसी पक्षी की बीट के द्वारा त्यागा गया होगा। अभी-अभी इसने बाहरी दुनिया में कदम रखा, उसकी नींद खुल चुकी थी काफी खुश और हरा-भरा नाजुक उंगलियों सा दिखाई दे रहा था। उसका लालन-पोषण हमारे मौसा जी ने किया। वह रोजाना बाहर ( बगीचे ) में जाया करते थे। उसका भी भाग्य अच्छा था कि वह उन्हें दिखाई दे गया। बगीचे में बहुत से पेड़-पौधे थे। वह अन्य लोगों में सबसे छोटा था। वह भोला-भाला तथा वायु के वेग से सहम गया था। उसका नाजुक कलेवर सिमट गया था। तब उन्होंने उसे सहारा देकर उसमें नई जान डाली । शनैः-शनैः बड़ा हो रहा था तथा खाने पीने की उसे चिंता ही नहीं थी, क्योंकि उसके लिए मौसा जी ने पानी तथा भोजन की व्यवस्था नाली के द्वारा कर रखी थी। जिसके कारण वह बेफिक्री से जितना चाहिए था पानी पी लिया करता था तथा तत्त्व जो उसे मिलने चाहिए थे वह गाय तथा भैंस की खाद के द्वारा ले लेता था। इस तरह उसने अपने अन्य दोस्तों को पीछे छोड़ दिया। अब वह एकदम नौजवान हो चुका था उसके सुडौल शरीर को देखकर लता तथा नजदीक के लोग उसे अपने आगोश में भरना चाहते थे, पर वह युवा था वह अपने से छोटी उम्र के लोगों से मिलना तो चाहता था। पर उसकी स्थिति ऐसी हो चुकी थी जैसे तीन मंजिली इमारत नहीं झुकती हो।
अतः वह अन्य लोगों से काफी निराश होकर रह जाता था, हां इतना जरूर था जब हवा के थपेड़े उस पर पड़ते थे तो अपने सिर के बालों को जरूर हिला लेता था। इससे उसे ही फायदा नहीं होता था,बल्कि हम सभी को थोड़ा बहुत फायदा गर्मी में मिल जाया करता था, क्योंकि उसके सिर हिलाने से ठंडी-ठंडी हवा मिल जाया करती थी और अपार आनंद की अनुभूति होती थी । उसके सिर के बाल कभी-कभी हवा के वेग से झड़ जाया करते थे। जब उसके बाल झड़ा करते थे, तो हम सभी को काफी अच्छा लगता था। कभी-कभी हम भी उनके बालों को अपने हाथों से पकड़ लेते थे और कभी-कभी झूला भी झूल लिया करते थे।
बस इतना बढ़ गया कि अपने मित्रों को ही नहीं बल्कि तीन मंजिल घरों को भी पीछे छोड़ दिया। उसके बालों की साल में एक बार डेंटिंग-पेंटिंग की जाती थी, जिससे या तो गंजा या सिर कटा सा
नज़र आता था। ऐसा करना तो नहीं चाहिए था पर उसके स्वास्थ्य को देखते हुए ऐसा करना जरूरी था। उसके साथ जैसा और जो भी किया जाता था। वह न तो नाराज होता था और न ही दुःखी होता था।
एक बार कुछ बंदरों की मंडली घरों के रास्ते से गमन करते हुए उनके बढ़ते हुए सुंदर बालों को देख कर इतने खुश हुए कि चार-पांच बंदर उनके बालों में कूदे और उसके बालों पर लटक कर बुरा हाल कर दिया। इतना बुरा किया कि उसके बाल उलझ गए और इस स्थिति को देखकर हमें उसके बालों को काटना पड़ा। इतना ही न था उसकी खाल एकदम नुच गई थी जिसमें से सफेद रंग का खून निकलने लगा।
और वह हड्डियों का कंकाल नज़र आ रहा था। हम लोगों का मन बहुत उदास हुआ।
इसके बाद से उसका स्वास्थ्य गिरता चला गया। ऐसा गिरा कि अब हकीम या वैद्य भी कुछ नहीं कर सकता था। अब हम सभी चिंतित होने लगे कि अब क्या होगा ? यह बचेगा या नहीं! हम उसे ऐसे तिल-तिल के मरने देना नहीं चाहते थे।
अतः निर्णय लिया गया कि इसे हमारे द्वारा मौत देकर इसके सुडौल शरीर को सुरक्षित रख लिया जाए ।
फिर हम सभी ने ऐसा ही किया। आरी और कुल्हाड़ी लाकर उसको काटना शुरु कर दिया। पर नीम इतना सख्त था कि काटने में पसीने छूट रहे थे। हम छः लोगों ने उसे बारी-बारी से काटा, लेकिन टस से मस नहीं हो रहा था।
अंततः तय हुआ कि इसे रस्सी से बांधकर खींचा जाए ताकि और काटने की जरूरत न हो। इसके बाद हम सभी लोगों ने एक तरफ से उसे खींचना शुरु किया। वह चू-चू करते हुए गिरने की कोशिश कर रहा था मानो वह भी इसी शान्ति की महत्त्वाकांक्षा कर रहा हो। वह अंत में धीरे - धीरे जमीन की गोद में जा गिरा। फिर उसके टुकड़े करके एक-एक कर अंदर कमरे में रख दिए गए। इस तरह उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी गई। 1 वर्ष बाद वह काफी सूख गया तथा धीमे-धीमे सर्दियां आनी शुरू हो गई। जिससे हम सभी ने खूब जलाकर तापा और उससे खाना बनाया ।इस तरह उसका शरीर पंचतत्त्व में विलीन हो गया इस प्रकार उसको जलाकर प्रक्रिया पूर्ण हुई तथा उसकी बची हुई राख के अंशों को आंगन की छोटे बगीचे के खेत में बिखेर दिया गया जिससे उसकी आत्मा को शांति मिल सके। उसकी राख को फेंकते हुए ऐसा लग रहा था कि मानो वह पुनः जन्म ले लेगा।