Juhi Grover

Tragedy Inspirational

3.1  

Juhi Grover

Tragedy Inspirational

नई दिशा

नई दिशा

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     इतवार का दिन था। सुलोचना जी बरामदे में बैठी अचेतन मन से न जाने क्या सोच रही थीं।

     सहसा रीतिका ने घर में प्रवेश किया। उसने सुलोचना जी के चेहरे पर बनते-बिगड़ते भावों को देखा। इतनी चिन्ता उनके चेहरे पर उसने कभी नहीं देखी थी।

    अचानक उसकी हल्की आहट से जैसे सुलोचना जी गहरी नींद से जागी हों।

      "रीतिका ! तुम कब आई?"

      "अभी-अभी ही आई हूँ, आंटी जी।"

      "बैठो, मैं अभी तुम्हारे लिए चाय लेकर आती हूँ।"

      "नहीं, आँटी जी ! मैं चाय पीने नहीं आई हूँ। मैं तो आपकी परेशानी का कारण जानना चाहती हूँ।"

      "कैसी परेशानी? कौन- सी परेशानी?" सुलोचना जी ने रीतिका की बात को नज़र-अन्दाज़ करने की कोशिश की। मगर वे उसकी बात को टाल न सकीं।

     रीतिका सुलोचना जी के बेटे साहिल के साथ कॉलेज में पढ़ती है। साहिल की तबीयत प्राय: खराब ही रहती है और उसका उनके घर आना-जाना लगा ही रहता है। रीतिका साहिल की तबीयत खराब रहने की वजह जानना चाहती थी। मगर कभी उसने अपनी इस इच्छा को ज़ाहिर न किया था।

     थोड़ी देर में सुलोचना जी चाय लेकर आ गईं। 

     सुलोचना जी ने अपनी बात कहनी शुरु कर दी, "आज मैं अपनी ज़िन्दगी की ऐसी कड़वी घटना को तुम्हारे सामने ब्यान करने जा रही हूँ, जिसका मैंने कभी किसी के सामने ज़िक्र नहीं किया और साहिल की ज़िन्दगी और उसकी मानसिकता भी जिससे जुड़ी हुई है।"

     तभी रीतिका ने बीच में ही टोकते हुए कहा, "अगर आपकी बात ऐसी है तो मैं ज़िद्द नहीं करूँगी।"

       "नहीं, तुम्हें आज ये बात सुननी ही होगी। मैं भी कई सालों से छिपे इस तूफान को बाहर निकाल देना चाहती हूँ। इतना बोझ ढोना अब मेरे बस की बात नहीं।"

     सुलोचना जी ने आगे कहना शुरु किया, "साहिल की एक बहन हुआ करती थी-आशा। दोनों भाई-बहन में बहुत प्यार था। साहिल के पिता जी उस समय घर पर ही थे जब उनके पास कुछ लोग आशा का हाथ माँगने आए थे। लड़का अमेरिका में रहता था। हमारी खुशी का ठिकाना ही न रहा और हमने बिना कुछ सोचे-समझे उसकी शादी उस लड़के से कर दी। मगर जब हमें पता चला कि वह लड़का धोखेबाज़ था, तो बहुत देर हो चुकी थी।"

      "मतलब।"

      "आशा, हमारी बेटी! ज़िन्दगी से हाथ धो बैठी थी और उसी समय, उसी समय साहिल के पिता जी को दिल का दौरा पड़ा और वो चल बसे।"

      रीतिका बड़े ध्यान से उनकी बातों को सुनने में लीन थी क्योंकि जब भी वह साहिल के घर आई तो उसे वहाँ ऐसा कुछ भी अनुभव न हुआ था। अब उसे वहाँ ढंग से बैठना भी मुश्किल हो रहा था, मगर फिर भी अपनी ही जिज्ञासा से आतुर वह सुलोचना जी की बातों को सुनती ही जा रही थी और वे भी एक ही साँस में बोले ही जा रही थीं जैसे वे जल्दी-जल्दी अपने सीने से ऐसा पत्थर जैसा बोझ उठा देना चाहती थीं।

       "और अपनी बहन के बारे में सुनने के बाद साहिल अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठा था। डॉक्टरों के इलाज के बाद इसमें कुछ सुधार हुआ है। मगर.........डॉक्टर कहते हैं........"

      "क्या कहते हैं डॉक्टर?"

      "डॉक्टर कहते हैं कि साहिल तब तक इस सदमे से पूरी तरह से निकल नहीं पायेगा, जब तक उसकी बहन उसके सामने न हो। मगर............"

      "मगर-वगर कुछ नहीं, आँटी जी। आप इसकी फिक्र न करें। अब साहिल की ज़िम्मेदारी मेरी है।" इतना कहते ही वह तेज़ी से साहिल के कमरे में चली गई।

      साहिल बिस्तर पर लेटे हुए आराम कर रहा था। रीतिका के कदमों की आहट से उसकी नींद खुल गई।

      रीतिका ने साहिल के सामने खुश होने का नाटक किया। साहिल सामान्य व्यक्ति की  तरह बातचीत तो कर सकता था परन्तु कभी-कभी वह आवेश में आ जाता था और खुद भी नहीं जान पाता था कि वह क्या कर रहा है।

      परन्तु रीतिका उसके इस व्यवहार से परिचित न थी, मगर इतना जानती थी कि वह उसकी बातों से उत्तेजित हो कर कुछ भी कर सकता है।

      रीतिका और साहिल अच्छे दोस्त थे मगर रीतिका साहिल को सामान्य व्यक्ति के रूप में जानती थी।

      साहिल ने रीतिका को देखते ही अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरी और कहा, "क्यों, क्या बात है? बहुत खुश लग रही हो।"

       "क्या करूँ, मुझ से रहा ही नहीं जा रहा। आखिर बात ही खुशी की है।"

       "क्या बात है, मैं भी तो जानूँ।"

       "आपको पहले मुझ से एक वायदा करना होगा।"

       "कैसा वायदा?"

       "आपको मेरी एक बात माननी पड़ेगी।"

       "क्यों? कोई जबरदस्ती है?"

       "हाँ है। आपको मेरी बात माननी ही पड़ेगी।"

       "अच्छा, अब बताओ तो सही।"

       "अगले सप्ताह मेरी शादी है और आपको ज़रूर आना है।"

        "ज़रूर आऊँगा। इसीलिए तो तुम्हारा चेहरा इतना लाल हुआ जा रहा है।"

      रीतिका बीच में ही बोल पड़ी, "अमेरिका जो जा रही हूँ।"

      ये शब्द सुनते ही जैसे साहिल अचेतन अवस्था में पहुँच गया हो।

      उसने एक ज़ोरदार थप्पड़ रीतिका के मुँह पर धर दिया। थप्पड़ इतना ज़ोरदार था कि दीवारें भी काँप उठें। उसने मानो अपने मन की सारी भड़ास उसके चेहरे पर उड़ेल दी हो।

      रीतिका ने उसके सामने झूठा गुस्सा दिखाना शुरु कर दिया और कहने लगी, "आपको जलन हो रही है न। मैं आपके पास कभी नहीं आऊँगी।" और बाहर जाने का अभिनय करने लगी।

       साहिल ने रीतिका का हाथ पकड़ कर रोक लिया, मुझे माफ करना, रीतिका। मैं स्वयं पर इतना नियन्त्रण ही न कर पाया था।"

        "आपको कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मैं पहले से ही सब कुछ जानती हूँ।"

         "इतना सुनते ही साहिल की आँखों से अश्रुधारा बह निकली जैसे बरसों से रोया ही न हो।

      रीतिका आवेश में आ गई, " नहीं, आपको अब रोना नहीं है। अपनी ज़िन्दगी को अपनी कमज़ोरी मत बनाओ। इन मुश्किलों और परेशानियों को अपनी ताकत बनने दो। फिर देखना आप क्या नहीं कर सकते।"

        "तुम ही बताओ, अब मुझे क्या करना है। मैंने तुम्ही में अपनी आशा, अपनी बहन को देख लिया है। तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा ही करूँगा, मगर अमेरिका मत जाना।"

      इतना सुनते ही रीतिका हँस पड़ी और कहने लगी, "वह तो मैं मज़ाक कर रही थी। परन्तु आप ने अपनी ज़िन्दगी को मज़ाक नहीं बनाना है। आप को अपनी ज़िन्दगी का एक अहम् कार्य करना होगा और वो है आपकी बहन के हत्यारों को सज़ा दिलवाना।"

         "मगर उन्हें तो मैं जानता भी नहीं।"

         "नहीं मेरा कहने का ये मतलब नहीं है। मैं तो यह कहना चाहती हूँ कि आपकी लाखों-करोड़ों बहनें अभी ज़िन्दा हैं जो हमारी धरती माता की कोख से जन्मीं हैं, आप को उन्हें बचाना है। अब आपका यही मकसद होना चाहिए। आप कमज़ोर नहीं हो। आप ऐसा कर सकते हो।"

         "मैं ऐसा ज़रूर करूँगा। आखिर तुम मेरी बहन हो, तुम्हारी बात नहीं मानूँगा तो किसकी मानूँगा। मगर तुम्हें अमेरिका ज़रूर भेजूँगा।"

       साहिल की इस बात पर दोनों भाई-बहन ठहाका लगा कर हँस पड़े। अब तो साहिल को जैसे नई दिशा मिल गई थी।

       सुलोचना जी को अब अपने अतीत से कोई शिकायत न थी और रीतिका मन ही मन अपनी जीत की खुशी मना रही थी।


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