मेरी डॉयरी
मेरी डॉयरी
आज छुट्टी थी। छुट्टी वाले दिन की आदत थी कि किसी न किसी जगह की सफाई करनी है। रोज़ की व्यस्त दिनचर्या की वजह से कोई न कोई काम तो छुट्टी वाले दिन पर छोड़ना ही पड़ता था। तो सोचा क्यों न काफी दिनों से बन्द पड़ी अलमारी की सफाई कर ली जाए। सभी ने आराम से उठना था, छुट्टी जो थी। परेशान करने वाला भी कोई नहीं था।
मैंने अलमारी खोली। बहुत बुरा हाल था। किताबें ही किताबें थी और किताबों पर बहुत सी धूल जमी हुई थी। पता नहीं कब से इस अलमारी की सफाई ही नहीं हुई थी। मैंने सारी किताबें बाहर निकाली। झाड़ कर एक तरफ रख दी। फिर अलमारी अच्छे से साफ की। फिर एक एक कर के किताबें रखनी शुरू कर दी। काफी पुरानी किताबें थी। कुछ के तो पन्ने भी पीले पड़ गए थे।
अचानक मेरे हाथ एक डायरी लगी। मेरी ही थी। काफी दिनों से तलाश कर रही थी। बीस साल हो गए थे इस पर लिखते, कभी पुरानी नहीं हुई। यादें बेशक पुरानी हो गई थी, मगर आज वो भी ताज़ा हो गई थी। डायरी में लिखे एक शब्द का अपना ही एहसास था, महत्व था। मैंने पढ़ना शुरू किया। बीते समय का हर लम्हा हर पल याद आया। मेरे चेहरे पर खुशी, दुख, हँसी, आँसू और पता नहीं क्या क्या हाव-भाव आ जा रहे थे। मैं पुरानी यादों में खो सी गई।
अचानक जैसे नींद से जागी। बेटे ने आवाज़ लगाई। मैंने जल्दी से सारी किताबें और डायरी अलमारी में रखी और बेटे के पास चल दी।