निःशब्द
निःशब्द
क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ..... सारे तार उलझ रहे हैं...
मामी सास को अंतिम विदाई देने मेरठ गये थे। वो महीने भर से बिस्तर पर ही मल-मूत्र त्याग रही थी...जितना वो कर्म काट रही थी उतने ही बेटे-बहू अपने कर्म काट रहे थे। सारी उम्र सास-बहू मे छत्तीस का आँकड़ा रहा और अब इतनी सेवा.....
क्या है मानव मन...
कैसे काम करता है ये।
कोई आप को फर्ज निभाने को मजबूर नहीं कर सकता और वो भी इतना घिन्न भरा, खाना भी गले से नीचे ना उतरे, ये तभी मुमकिन है आप दिल से फर्ज निभाना चाहो....
उधर ही बिटिया खड़ी थी, माँ की आँखों का तारा, उनके सुख दुःख सुनने वाली, शोक संत्पत, बेजान....माँ को स्नान कराया जा रहा हैं, अंतिम क्रिया चल रही हैं लेकिन बेटी हाथ भी नहीं लगा सकती अन्यथा माँ को गति नहीं मिलेगी..वो क्या भावना है ? क्या वजह है, जिसके चलते सारे विरोधाभास के बावजूद बहू टूट के सेवा कर रही है और बेटी निर्जीव बुत बन खड़ी रह जाती है.....।।
