Omdeep Verma

Tragedy

2.5  

Omdeep Verma

Tragedy

नदी के आंसू

नदी के आंसू

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मेरा नाम जानकर क्या करोगे ' बस इतना जान लो कि मैं नदी जात से हूं। यह हमारी जात इंसान की दी हुई है क्योंकि हमारे इंसान की तरह खुद को नाम, धर्म, जात-पात में बांटने की रिवाज नहीं है। हम सबके नाम तो है जैसे गंगा, यमुना, रावी, चंबल और भी बहुत जो इंसान ने ही दिए हैं। मेरे जन्म की बात करें तो साल तो याद नहीं पर इतना है कि मेरे जन्म के बाद इंसान की सैकड़ों पीढ़ियां बीत गई।

यह गंगा, यमुना सब मेरे परिवार से इनमें से कोई मेरी दादी, कोई मम्मी, तो कोई मासी बहुत बड़ा परिवार हमारा जो पूरी धरती पर अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। क्योंकि इंसान ने हमें जीने के लायक नहीं छोड़ा। फिर भी हम इंसान की खातिर दिन-रात बिना ठहरे निरंतर बहते रहते है। गड्ढों से, पहाड़ों से, झाड़ियों से गिरते-उठते ठोकरे खाते हरदम चलते रहते हैं।'

किसकी खातिर, सिर्फ इंसान के लिए,पशुओं के लिए, हमारे समाज के लिए जो सिर्फ इंसान के काम आता है। भगवान ने बहुत कुछ बनाया, सबको देने वाला बनाया लेकिन भगवान ने ऐसी चीज बनाई है इंसान जिसने कभी किसी को कुछ नहीं दिया।

बस लिया ही है। मेरी जिंदगी में मैंने इंसान जात जितना स्वार्थी कोई नहीं देखा। अगर सृष्टि पर कुछ 'भगवान ना करे कि हो" अनहोनी होती है तो इसका जिम्मेवार सिर्फ इंसान होगा। अगर बात की जाए मेरी तो जीना मेरा भी दूभर हो गया है और मेरा ही क्या मेरे सभी परिवार वालों का जीना मुश्किल है। अब तो बस जीने के नाम पर सांस ले रहे हैं वह भी बड़ी मुश्किल से। इसका कारण सिर्फ इंसान ही है।

इंसान ने मेरे राह रोक लिए बांध बनाकर मेरे अस्तित्व को रोकने की कोशिश की, मेरे अंदर जहर घोला हुआ है। अपने घरों का, शहर का कचरा मुझ में डाल दिया जाता है।मृत पशुओं को डाल दिया जाता है। फैक्ट्रियों के जहरीले केमिकल्स मेरे अंदर डाल दी जाती है।

मेरे शरीर को दर्द दिया जाता है। आजकल मैं बहती कम रोती ज्यादा हूँ। मेरा ही नहीं मेरे सभी परिवार वालों का यही हाल है। कुछ ने तो इस दुनिया से विदाई ले ली और यही हाल रहा तो कुछ वर्षों से हमारा भी नाम निशान मिट जाएगा।

कभी कभी तो ऐसा लगता है कि मुझे अच्छे तो वह नाले जिनको जिस काम के लिए बनाएगा वह बखूबी निभा रहे हैं। और हमें उन नालों से भी बदतर बना दिया। बहुत इल्जाम लगता है कि गुस्से में आकर सब तबाह कर देती है, बाढ़ ले आती है। हां! मैं जानती हूँ।मगर इसमें मेरा दोष नहीं है। इसकी वजह इस धरती पर इंसान नामक प्राणी है। जिसने मेरे रास्ते में मेरे साथी, मेरे दोस्त पेड़ों को काट दिया जिससे मैं मिलती-खेलती आराम से आती थी जब उनको काट दिया तो मैं किसके पास रुकुं।दर्द मुझको भी होता है मगर किसको सुनाऊं। किसको दिखाऊं यह छलकते आंसू। अब तो बस जितने दिन आंखों में आंसू है बह रहे हैं।


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