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Omdeep Verma

Children Stories

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Omdeep Verma

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उम्र का पागलपन या प्यार का

उम्र का पागलपन या प्यार का

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मेरी शहर में नई नई नौकरी हुई।नौकरी का मेरा पहला दिन था और जॉइनिंग फॉर्मेलिटीज भी पूरी करनी थी तो मैं जल्दी तीन बजे उठ गया। सोच रहे होंगे कि तीन बजे कौन सा ऑफिस खुलता है। मैं इतनी जल्दी तो रोज ही उठता हूं क्योंकि मैं अपने शरीर का बहुत ख्याल रखता हूं और मॉर्निंग वॉक पर जाता हूं। मैं जल्दी उठकर मॉर्निंग वॉक पर चला गया। क्योंकि कल ही आया था , जिम का तो पता नहीं था तो सोचा कि आज कुछ देर ज्यादा मॉर्निंग वॉक कर लेता हूं। मैं इधर उधर घूमते घूमते एक गार्डन जो कि मेरे फ्लैट के कुछ दूरी पर था मैं चला गया कि चलो कुछ देर यहां पर घूम लेते हैं। मैं जैसे ही गार्डन में दो चार कदम चला कि आगे की बैंच की और कुछ आवाज आ रही थी, मेरे कदम तो वहीं पर रुक गए और आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हुई और वापस मुड़ लिया। वहां से सीधा रूम में आकर किताबें पढ़ने लगा क्योंकि मुझमें थोड़ा सा डर बैठ गया था।मैं उसे भुलाने के लिए किताबें पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते आंख लगी और आठ बजे खुली। हड़बड़ाहट में जल्दी से तैयार हुआ क्योंकि ऑफिस का पहला दिन था तो थोड़ा जल्दी पहुंचना था और ठीक टाइम के दस मिनट पहले मैं ऑफिस पहुंच भी गया और जॉइनिंग कर ली। शाम को ऑफिस से आते वक्त मैंने जिम सेंटर का भी पता कर लिया अगली सुबह में घूमते घूमते उसी बगीचे में चला गया कि हो सकता है कि मुझे कल यूं ही वहम हो गया हो। आगे बढ़ा ही था कि फिर वही कल वाली आवाज। आज मुझे पक्का विश्वास हो गया कि हो ना हो यहां कुछ और ही है। मैं तो उल्टे पांव है दौड़ लिया और पांच मिनट में रूम पर पहुंच गया।आज पसीने छूट गए थे ना किताबों में मन लग रहा था और ना आंख लग रही थी। करवटें बदलते बदलते बड़ी मुश्किल से जिम जाने का टाइम हुआ।मैं जिम चला गया फिर उसके बाद ऑफिस। उस गार्डन का मेरे अंदर इतना डर बैठ गया कि फिर कभी मैं उस तरफ गया ही नहीं।

बहुत दिनों बाद किसी काम से यूं ही मेरा गार्डन की तरफ से आना हो गया। मैंने देखा कि बहुत से लोग उस गार्डन में बैठे हैं, बच्चे खेल रहे हैं कुछ इधर-उधर घूम रहे हैं ,मुझे लगा कि शायद इन लोगों को पता नहीं है।पास बैंक के बाहर गार्ड खड़ा था।मैं उससे पूछ बैठा " तुम्हें डर नहीं लगता?"

वह बोला "बाबूजी ऐसा क्यों बोल रहे हो?" मैंने कहा "इस बगीचे में भूत रहता है।" इतने में वो हंसते हुए बोला कि "बाबूजी भूत-वूत कुछ नहीं वह तो एक बुजुर्ग आदमी है।" और आगे बताने लगा कि कुछ साल पहले उनके बेटों ने इनको और उनकी पत्नी को घर से निकाल दिया था तो यह दोनों यहां इस गार्डन में रहने लगे दिन में फुटपाथ पर कुछ खाने को मांग लेते और रात को इसी बगीचे में आकर सो जाते हैं। एक साल पहले सर्दियों की रात की बात है ठंडक से दोनों को नींद नहीं आ रही थी तो दोनों इसी बैंच पर (जहां से मैंने आवाज सुनी थी )उस बैंच की तरफ इशारा करते हुए- बैठ कर बातें कर रहे थे ठंड से अचानक उनकी पत्नी लुढ़क गई और भगवान को प्यारी हो गई। उसके बाद यह बस वहीं पर रहते हैं इसी बैंच पर बैठे रहते बातें करते रहते हैं। बहुत से लोग इन्हें अपने घर ले जाने को आए, कई बार वृद्धा आश्रम को बुलाया मगर यह नहीं गए। सर्दी बरसात से बचने के लिए लोग कपड़े दे जाते हैं और आते जाते खाने को कुछ दे जाते हैं। बस यही बैठकर अपनी पत्नी से बातें करना इनकी जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है।"

मुझे आश्चर्य हुआ मैं जाकर उस बुजुर्ग को देखना चाहता था इतने में मेरे दोस्त का फोन आ गया जो आगे खड़ा मेरा इंतजार कर रहा था अब मेरे मन से डर निकल गया था। मैं मॉर्निंग वॉक पर इस गार्डन में रोज चक्कर लगाने लगा। रोज उनकी अपनी पत्नी से बातें चलती रहती है और मैं दूर से होकर निकल जाता हूं ताकि उनकी बातों में खलल ना पड़े ।एक साल से अकेले बेंच पर बैठकर बातें करना उनकी उम्र का पागलपन कहा जाए या प्यार का पागलपन।।


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