सुबह का भुला
सुबह का भुला
हमारे गांव के जमींदार सा जिनके पास जमीन जायदाद की कोई कमी नहीं और एक ही बेटा तो बहुत लाड़ प्यार से पाला।
कोई कमी नहीं आने दी। जुबान से निकलने से पहले हर बात पूरी कर दी जाती थी। और कभी किसी बात के लिए रोका टोका नहीं। पहले ठीक-ठाक था लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता गया वह बिगड़ता गया। अच्छे दोस्तों की संगति छोड़ गांव के कुछ बदमाश लोगों के साथ रहने लगा। पढाई छोड़ दी और धीरे-धीरे उसे नशे की भी लग गई।वह हर तरह का नशा करने लगा और जुआ भी खेलने लगा।
उसको देखकर जमीदार सा चिंता सताने लगी और उन्हें अपनी परवरिश पर गुस्सा आने लगा था। उन्हें डर सताने लगा था की पुरखों की बनाई इतनी जमीन जायदाद को यह नशे में और जुए में ना उड़ा दे। किसी ने जमीदार सा को हिदायत दी किसकी शादी कर दो शायद सुधर जाए।
उनको भी ठीक लगा और उसकी शादी कर दी। शादी के बाद ऐसा सांप सुघां कि उन सब यारों के साथ रहना तो क्या उनसे बोलना भी छोड़ दिया और घर गृहस्ती में ध्यान देने लगा। और जमींदार सा भी पहले की तरह खुश रहने लगे कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आया।
